अंबिकापुर । 22सितम्बर संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व छत्तीसगढ़ शासन रायपुर द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर के सदस्य, राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने सरगुजा अंचल की 25 नदियों पर शोध पत्र की प्रस्तुति दी।16 से 18 सितंबर तक संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व रायपुर द्वारा “छत्तीसगढ़ की संस्कृति संवाहक सरिताएं“ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में अजय चतुर्वेदी ने सरगुजा अंचल की नदियों का सामाजिक, आर्थिक,सांस्कृतिक, एवं धार्मिक महत्व विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत कर सरगुजा अंचल को गौरवान्वित किया।
उन्होंने अपने शोध पत्र में बताया कि सरगुजा अंचल की नदियां तीन अपवाह तंत्र में प्रवाहित होती हैं । सरगुजा अंचल की संपूर्ण अपवाह तंत्र गंगा नदी बेसिन एवं महानदी बेसिन पर आधारित है। उत्तर की ओर बहने वाली नदियां सोन नदी में मिलकर पाटलिपुत्र के समीप गंगा में एकीकृत हो जाती हैं। तथा दक्षिण की ओर बहने वाली नदियां महानदी में अपवाहित होती हैं। ब्राह्मणी अपवाह तंत्र में मात्र एक शंख नदी है। यहां की रेण, कनहर गोपद, बनास, महान, बाकी आदि नदियों के तट पर विभिन्न कालों में संस्कृतियां आबाद रहे। प्रमाण स्वरूप इनके तटवर्ती क्षेत्रों में प्राचीन नगरों, बसाहट, स्मारक आदि के भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं। नदियां भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की संवाहक हैं। इसके बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हिंदू धर्म के जन्म से मृत्यु तक के सभी धार्मिक और सामाजिक संस्कार नदी तट पर ही संपन्न होते हैं। हमारी सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है। ऋषि-मुनियों ने भारत में नीर, नारी और नदियों को पोषक माना है। इसलिए नदी को मां का दर्जा दिया गया है।
भगवान श्रीराम के वनवास काल का छत्तीसगढ में पहला पड़ाव उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के भरतपुर तहसील के सीतामढ़ी हरचौका को माना जाता है। इनका वन गमन परिपथ नदी ही रही। देश की विभिन्न सभ्यता, संस्कृतियों के पोषक, प्राचीन यात्रा पथ और व्यापार मार्ग, सांस्कृतिक विनिमय में तथा सामाजिक आर्थिक एवं धार्मिक क्रियाकलापों के केंद्र के रूप में नदियों की भूमिका सर्वविदित है। सरगुजा अंचल में नदी तट पर बसे प्राचीन स्थल और जलप्रपात महत्वपूर्ण पर्यटन के केंद्र के रूप में प्रसिद्व हैं।
यहां महेशपुर, देवगढ़, खोपा, सारासोर, रामेश्वर नगर, डीपाडीह, सततहला, कलचा भदवाही, सीतामढ़ी हरचौका, बिल द्वार गुफा आदि प्राचीन स्थल पुरानी संस्कृति को बखान करती हैं। जो नदी तट पर बसे हैं। नदियों के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं व्यवसायिक महत्व को देखते हुए इन्हें बचाने की जरूरत है। इन नदियों को प्रदूषण रहित बनाने के लिए, नदियों में विसर्जित किए जाने वाले अस्थि कलश,कक्न,नाल और प्रतिमाओं के विसर्जित करने पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। नदियों का संरक्षण और गंदगी से बचाना हमारा कर्तव्य है। क्योंकि जल है तो कल है। और जल ही जीवन है।
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