0.सीईओ,उप संचालक पंचायत व जिला अंकेक्षक की हुई है शिकायत
कोरबा,15 सितम्बर। कोरबा जिले के विभिन्न ग्राम पंचायतों में पदस्थ सचिवों का तबादला पर एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष दीपक वर्मा ने सवाल उठाते हुए शिकायत की है। शिकायत में जांच कहां तक पहुंची है यह तो अभी रहस्य के गर्भ में हैं लेकिन तबादला के मामले में शासन के द्वारा जारी निर्देश का पूरी तरह उल्लंघन कोरबा में जरूर हुआ है।
एनएसयूआई अध्यक्ष दीपक वर्मा ने कलेक्टर से की गई शिकायत मेंकहा है कि जिला पंचायत कोरबा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (CEO) व उप संचालक पंचायत सुश्री जूली तिर्की एवं जे.एस.पैकरा जिला अंकेक्षक(ऑडिटर) के द्वारा गलत तरीके से रिपोर्ट तैयार करके नोटशीट प्रस्तुत कर लगभग 128 सचिवों का स्थानांन्तरण किया गया है। इसके फलस्वरूप पंचायतों में स्थिति बिगड़ सी गई वहीं छत्तीसगढ़ शासन की स्थानांतरण नीति का जमकर उल्लंघन तीनों अधिकारियों के द्वारा किया गया है। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा जारी कार्यालयीन पत्र क्रमांक/ एफ-01-01/2016 / एक/6 नवा रायपुर 11 जून 2016 के तहत जारी स्थानान्तरण नीति में स्पष्ट उल्लेख है कि 15 जून से 15 जुलाई 2022 तक जिला स्तर पर तृतीय श्रेणी एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के स्थानांन्तरण जिले के प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से कलेक्टर द्वारा किये जा सकतें हैं। प्रभारी मंत्री के अनुमोदन के उपरान्त स्थानांतरण आदेशानुसार प्रसारित होंगे। स्थानांतरण प्रस्ताव से संबंधित विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी द्वारा तैयार किया जाकर कलेक्टर के माध्यम से प्रभारी मंत्री को प्रस्तुत किये जाते हैं। प्रभारी मंत्री के अनुमोदन उपरान्त जिले के कलेक्टर द्वारा आदेश प्रसारित किया जाता है
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। तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों के मामले में उनके संवर्ग में कार्यरत् कर्मचारियों की कुल संख्या के अधिकतम 10 % एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के मामले में अधिकतम 5 % तक स्थानान्तरण किया जा सकता है।परस्पर सहमति से स्वयं के व्यय पर किये स्थानान्तरणों की गणना उक्त सीमा हेतु नहीं की जायेगी।दीपक वर्मा ने कहा है कि उक्त स्थान्तरण नीति के अलावा यदि सचिवों के विरूद्व शिकायत है तो उस शिकायत की जॉच हेतु समिति का गठन किया जाना चाहिए तथा समिति के प्रतिवेदन के आधार पर ही स्थानांन्तरण प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से किया जाना है जबकि जिला पंचायत सीईओ ने शासन के नीति का उल्लंघन करते हुए लगभग 128 सचिवों का स्थानांन्तरण किया है। यह तबादले तक किये गए जब मनरेगा के तहत ग्राम पंचायतों में कार्य करने वाले रोजगार सहायक अपनी आंदोलन पर थे और मनरेगा संबंधित कार्यों की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत सचिवों को दी गई थी। जबकि सचिवों का नियम विरूद्व थोक के भाव में स्थानांन्तरण पश्चात नवीन पदस्थापना कर मनरेगा के तहत कार्यों पर निर्भर मजदूरों के साथ अन्याय किया गया था,वही पंचायतों में चल रहे रोजगार मूलक कार्य प्रभावित हुआ। जिला में कुल सचिवों में से लगभग 36% सचिवों का स्थानान्तरण कियाजबकि छ.ग. शासन के द्वारा स्थानान्तरण पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा था। सूत्रों के माध्यम से यह भी आरोप लगाया है कि सचिवों के ट्रांसफर में करोड़ों रुपया का लेनदेन हुआ है। इन तीनों अधिकारियों के कृत्यों से शासन-प्रशासन की छबि धूमिल हुई।खुद ही थपथपवा रहे अपनी पीठ जिला पंचायत से लेकर जनपद क्षेत्र में जिस तरह की गतिविधियां हो रही हैं उसमें अधिकारी तो सवालों के घेरे में हैं ही लेकिन कहीं ना कहीं जुगत लगा कर अपनी पीठ थपथपवाने से बाज नहीं आ रहे।
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ग्राम पंचायत बरीडीह में मनरेगा योजना से निर्मित लगभग 13 लाख रुपए के तालाब को राख से पटवा देने के मामले में कार्यवाही की फाइल जहां अब तक दबी हुई है वहीं कुछ जनप्रतिनिधियों के दबाव और इशारे पर काम किया जा रहा है। यह वही जनप्रतिनिधि हैं जिनके द्वारा अवैध रूप से रेत खोदने के कारण बड़े-बड़े गड्ढे निर्मित हुए और भरे पानी मे डूबने से 3 बच्चों की मौत हो गई। इन्हीं गड्ढों को पाटने की आड़ में तालाब को भी राख से पटवाने का कुचक्र रचा गया। सरकार के पैसे की बर्बादी तो हुई बल्कि सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन का भी सरासर उल्लंघन यहां हुआ है। इसी ग्राम पंचायत साजापानी के रोजगार सहायक लखन कंवर के द्वारा फर्जी बिल वाउचर लगाकर लाखों रुपए की गड़बड़ी सत्यापित हुई है लेकिन इस मामले में भी कार्यवाही/एफआईआर दर्ज न कराकर लीपापोती की जा रही है।जिला पंचायत के सूत्र बताते हैं कि अब सचिवों का तबादला के मामले में घिरने के बाद एक सोची-समझी रणनीति के तहत अपना शाबासी पत्र लिखवा लिया गया। यह विडंबना ही है कि आंखों देखी गलतियों पर भी पर्दा डालने का काम जिले के अधिकारी कर रहे हैं और शीर्ष स्तर तक बात पहुंचाए जाने के बाद भी किसी तरह पर से संज्ञान नहीं लिया जा रहा है। ऐसे में सरकार की छवि को तो पलीता लगना ही है जिसके लिए इस तरह की कार्यशैली के अधिकारी पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं।
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