0. ग्रैंड पैरेन्टस परिवार की जड़ एवं बच्चे फल और फुल- डॉ. संजय गुप्ता ।
0.बच्चे कई बार अपनी दिल की बातें माता-पिता से कहें लेकिन अपने दादा-दादी से जरूर करते हैं-डॉ. संजय गुप्ता
कहते हैं बच्चे की सबसे पहली पाठशाला उसका घर होता हैं और उसके अध्यापक घर के बुजुर्ग। खेल-खेल में हम अपने दादा-दादी से इतना कुछ सीख लेते हैं जिसका एहसास हमें बड़े होने पर होता हैं। जैसे किसी के दादा-दादी ने उन्हें गणित की टेबल याद कराई तो किसी ने घर के बुजुर्गों से अखबार पढ़ना सीखा। इसके अलावा कई लोग ऐसे भी हैं जिनको किताब पढने की आदत अपने दादा-दादी से तोहफे के रुप में मिलती हैं।
दादा-दादी हमें अपने व्यक्तिगत अनुभव से हमें दुनिया की परख देते है जो कि हमें कोई भी पुस्तक या इंटरनेट नहीं दे सकता। अपने दादा दादी से दुर रहने वाले बच्चे दादा दादी दिवस के दिन उनसे मिल सकते है और उन्हें उपहार दे सकते हैं। यह दुर रहकर भी उनमें नजदीकियाँ बनाए रखता है। हम सबको हर साल दादा दादी दिवस मनाना चाहिए और हमेशा उन्हें आदरपूर्ण व्यवहार करना चाहिए ।
बच्चे अपने बड़ों से ही सब कुछ सीखते हैं। जीवन के सबक के बारे में वह किसी किताब से नहीं बल्कि अपने दादा-दादी से सीखते हैं। बच्चे भगवान के आगे हाथ जोड़ना, बड़ों का सम्मान करना, छोटों को प्यार करना सब बातें उनके बड़े ही उन्हें सिखाते हैं। इतना ही नहीं अपने रीति-रिवाज और संस्कृति का ज्ञान भी उन्हीं से प्राप्त होता हैं।
इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में ग्रैण्ड पैरेन्ट्स डे के उपलक्ष्य में इंडस के अभिभावकों व विद्यार्थियों ने शोसल मीडिया पर भी बड़े जोश के साथ मनाया गया । सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे व्हाट्सअप, फेसबुक इत्यादि पर विद्यार्थियों ने अपने माता-पिता के साथ विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप करते हुए तस्वीरें शेयर की । कोई अपने माता-पिता के साथ वृक्षारोपण कर रहा है तो कोई कैरम खेल रहा तो कोई साइकलिंग एवं योगा कर रहा । अनेक विद्यार्थी अपने माता-पिता की आरती उतारते हुए पुष्पार्पित करके हुए दिखे । इस प्रकार नेशनल पैरेन्ट्स डे मनाकर विद्यालय ने सभी को माता-पिता के प्रति ताउम्र सम्मान व समर्पण का भाव रखने का संदेश दिया ।इस अवसर पर प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता जी ने कहा दादा-दादी के साथ रहना अपने आप में एक अनोखा एहसास हैं, वह न केवल ज्ञान के मोतिया बिखेरते हैं बल्कि हमारे जीवन को प्यार और खुशियों से भी भर देते हैं। उनकी आस पास होने की भावना को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। वह लोग बहुत भाग्यशाली होते हैं जिनकी तीन पीढ़ियाँ एक ही छत के नीचे रहती हैं।
बच्चे कई बार अपनी दिल की बातें माता-पिता से साझा ना करें लेकिन अपने दादा-दादी से जरूर करते हैं। उसकी एक वजह यह भी होती हैं कि उन्हें भरोसा होता हैं कि वह उनकी बातों को समझ कर उनकी समस्या को हल कर देंगे और डाँट भी नहीं पड़ेगी।
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