स्नानदान पूर्णिमा लगते ही पितृपक्ष शुरू हो गए। अब 16 दिनों को दादा-दादी, नाना-नानी पक्ष के पूर्वजों का ध्यान-स्मरण किया जाएगा। उन्हें जल देकर तृपण की कामना होगी। शनिवार ब्रह्म मुहुर्त में जलस्रोतों पर मंत्रोच्चारण की गूंज रही। लोगों ने पूर्वजों को जल दिया। वहीं कई घरों में रविवार से को पितृपक्ष शुरू होंगे।पितर पक्ष शुरू होते ही शुभ कार्यों की बेला थम गई। कान छेदन, सगाई, तिलक, गृह-प्रवेश, शादी-विवाह सुजवाने (देखने) के लिए 26 सितंबर यानी शारदीय नवरात्र प्रारंभ होने तक का इंतजार करना होगा। शनिवार को नगर के पानी वाली धर्मशाला, आतिया ताल, लक्ष्मी ताल, पहूंज नदी, पहूज डैम सहित अन्य जलस्रोतों पर मंत्रोच्चारण की गूंज रही। लोग हाथों में कुश, पूजन सामग्री, फल-फूल लिए वहां पहुंचे और आचार्यों के मंत्रोच्चारण पर पूर्वजों को जल दिया। घरों में उनकी पसंद के पकवान चढ़ाए और तृपण की कामना की गई। वहीं घरों में भी देहरी पर रंगोली बनाई गई। पूर्वजों को याद कर भोजन निकाला गया। बाद में उन्हें कौवा और गाय को दिया गया। कई घरों में रविवार पितृपक्ष मनाए जाएंगे और अनुष्ठान होगा। इसको लेकर शहर में बाजारों में पूजन सामग्री, फूल-फल खूब बिके।जिला धर्माचार्य महंत विष्णु दत्त स्वामी के अनुसार शनिवार को स्नानदान पूर्णिमा लग गई है। पितृपक्ष शुरू हो गए हैं। 25 सितंबर को पितृ मोक्ष अमावस्या पर पितर पक्ष का समापन होगा। इन दिनों पूर्वकों का ध्यान, स्मरण करें। घर में बने कच्चे-पक्के पकवान उन्हें याद कर अर्पित करें। प्रतिपदा से पितृपक्ष की तिथिवार तर्पण होगा। इन दिनों शुभ कार्य नहीं होते। वहीं शनिवार सुबह-सुबह जलस्रोतों के मुहाने पर तो कहीं-कहीं रविवार से मंत्रोच्चारण की गूंज होगी। लोगों हाथों में कुश, पूजन की थाली लिए पूर्वजों को याद करेंगे। उनका स्मरण कर पूजन किया जाएगा। घर-घर कुश की झड़ियों से उनका तर्पण होगा।ज्योतिषाचार्य मार्तंड स्वामी के अनुसार 26 सितंबर को ब्रह्ममुहुर्त में घट स्थापना की जाएगी और दुर्गा महोत्सव शुरू होंगे। इसी दिन से शुभ कार्य भी प्रारंभ हो जाएंगे। अन्य ज्योतिषाचार्यों के अनुसार प्रतिपदा से पितृपक्ष की तिथिवार तर्पण होगा। इन दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नहीं होते हैं। कान छेदन, सगाई, तिलक, शादी-व्याह, गृह प्रवेश सबकुछ वर्जित हैं। लोग खरीद-फरोख्त, बड़े लेने से भी संकोच करते हैं। शारदीय नवरात्र शुरू होते ही पंचांग भी खुल जाएंगे। मांगलिक कार्य प्रारंभ होंगे।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सुबह स्नान-पूजन के बाद पितरों को तर्पण के साथ पिंडदान करना चाहिए। हथेली भर अनाज का पिंड (जौ के आटे, खीर या गाय का दूध के खोआ) बनाकर उसे पितरों को अर्पण करना चाहिए। इसके अलावा गंगाजल, कुश, काले तिल, फूल-फल और दूध व उनसे बने पकवान अर्पण करना चाहिए। पूर्वजों के नाम से गाय, कुत्ता, कौवा के लिए भोज निकालना चाहिए। ताकि ऋण कुछ कम हो सके।
पितरों में यह करें
सुबह-सुबह घर-द्वार साफ करें।
मुख्यद्वार पर आटा से चौक बनाएं।
पूर्वजों को कुश या घास की कुश बनाकर पानी दें।
फिर घर में बने पकवान चढ़ाएं।
तोरई या केले के पत्ते पर रखकर भोजन छत पर रखें।
पशु-पक्षियों को भोजन कराएं।
पितरों के नाम से गाय, कौवा, कुत्ता के लिए भोज निकालें।
गरीबों और ब्राह्मणों को कुछ न कुछ दान दें।
शुभ और कोई नए काम की शुरूआत न करें।
पितृस्रोत का पाठ करें। पूर्वजों को याद करें।
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