बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए डिजिटल संस्कार जरूरी

रायपुर,08 सितम्बर। हमारे देश में संस्कारों का विशेष महत्व है। इनका उद्देश्य शरीर मस्तिष्क और मन की शुद्धि करना और उन्हें बलवान करना है। जीवन को धर्म के साथ जोड़ने के लिए इंसान के पैदा होने से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार बताए जाते हैं।गर्भ संस्कार से लेकर मृत्यु संस्कार तक डिजिटल संस्कार जोड़ने की पहल नईदुनिया जागरण ने गुरुकुल के माध्यम से की है, जो कि वास्तव में प्रशंसनीय है। जैसे हमारे संस्कार होते हैं, वैसे ही हमारे मन का व्यवहार होता है। हमारे पारिवारिक संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे से बैठ जाते हैं। माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उन्हीं संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं। मानव जीवन को संगठित अनुशासित एवं सुसंस्कृत करने के लिए संस्कारों की व्यवस्था की गई है, ताकि व्यक्ति समाज में रहकर सुखमय जीवन व्यतीत कर सकें।संस्कार के माध्यम से जीवन के हर नए पड़ाव पर व्यक्ति को अनुशासित किया जाता है। 2017 में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 194 देशों की सहमति से गेमिंग डिसआर्डर या मोबाइल गेम डीएडिक्शन को एक मानसिक बीमारी के तहत शामिल कर लिया था और कोविड-19 के बाद तो स्थिति और भी भयावह हो गई है। बहुत से लोग सारा दिन मोबाइल पर गेम खेलते रहते हैं। कोविड-19 के बाद की रिसर्च यह बताता है कि आज के समय में हर तीसरा व्यक्ति मोबाइल एडिक्शन का शिकार हो चुका है।आज जिस तरह खाना-पीना और सोना हमारी नियमित दिनचर्या का हिस्सा है, इसके चलते आक्रामकता, चिड़चिड़ापन, तनाव, अनिद्रा के केस बढ़ते ही जा रहे हैं। इसलिए डिजिटल संस्कार देना भी बहुत जरूरी है। इसका पहला पड़ाव है स्क्रीन टाइम का अनुशासन और अनुशासन का पालन करने से ही बड़े और बच्चों में स्क्रीन टाइम की लत से छुटकारा पाया जा सकता है। 2021 के एक श्ाोध के अनुसार कोविड टाइम में भारतीयों ने औसतन 4.7 घंटे फोन पर बिताया है। मतलब 24 घंटे में से 4.7 घंटे वयस्क व्यक्ति मोबाइल पर गेम सोशल मीडिया पर बिता रहा है तो आप सोचिए कोरोना के बाद बच्चों का स्क्रीन टाइम कितना बढ़ गया होगा?18 माह से छोटे बच्चों को स्क्रीन से दूर रखने की सलाह दी गई है, पर होता यहां है नए बने माता-पिता कुछ ज्यादा ही उत्साह में अपने बच्चों को वर्चुअल माध्यम से लोरी सुनाना शुरू कर देते हैं। परिणाम यह होता है कि बच्चा अपने माता-पिता से भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ पाता है। इतनी छोटी उम्र से अगर आप बच्चों को गैजेट्स पकड़ाते हैं तो बच्चों की आंखों पर असर पड़ता है। नजर और आंखों के रोग होते हैं और कम उम्र में चश्मा लग जाता है।पेरेंट्स को बच्चों के स्क्रीन टाइम (टेलीविजन, कंप्यूटर और वीडियो गेम) को सीमित कर देना चाहिए। उन्हें प्रति दिन अधिकतम दो घंटे तक ही देखने देना चाहिए। बच्चे के कमरे में टेलीविजन न लगाएं। रात के खाने के दौरान टेलीविजन न देखें। टेक्नोलाजी के उपयोग को सीमित करने के लिए अपने सुपरविजन में लिविंग रूम में कंप्यूटर और दूसरी तरह के उपकरणों को बंद कर दें।

प्रोत्साइन और पुरस्कार की नीति अपनाएं
बच्चे स्वाभाविक रूप से मूवमेंट्स के प्रति आकर्षित होते हैं। वे इधर-उधर भागना चाहते हैं। वे अपने पेट्स के पीछे दौड़ते हैं। बच्चो को मोबाइल की जगह बाहर खेलने पर उन्हें उनकी मनपसंद डिश बना कर प्रोत्साहित करें। एंग्जायटी, डिप्रेशन, गुस्सा, एकाग्रता में कमी जैसी मानसिक समस्याएं आम बात हो सकती हैं। यह करियर और रिश्तों को प्रभावित कर सकता है।
समय करें तय
अक्सर ऐसा होता है कि जब बच्चा टीवी देख रहा होता है या फिर आई पैड आदि पर बिजी होता है और आप उसे वह बंद करने के लिए कहती हैं तो उनका यही जवाब होता है कि मम्मी बस दो मिनट और। मम्मी बस पांच मिनट। इस तरह वह काफी सारा वक्त स्क्रीन पर बिता देते हैं। ऐसे में बच्चों के स्क्रीन टाइम को लिमिटेड करने का सबसे आसान तरीका है कि आप बच्चों को गैजेट्स देने से पहले उसमें टाइमर सेट कर दें।
किड्स एप लगाएं
अगर आप बच्चे के हाथ में फोन दे रहे हैं या वह टीवी पर कुछ देख रहे हैं तो यह जरूर सुनिश्चित करें कि वह किड्स फ्रेंडली हो। अगर आपके फोन या अन्य गैजेट में कुछ ऐसा है, जिसे बच्चे को नहीं देखना चाहिए तो आप उस एप में अलग से लाक जरूर लगाएं।
स्क्रीन कब देखें
आपको सिर्फ बच्चे के लिए इतना ही तय नहीं करना है कि वह कितनी देर स्क्रीन पर बिताएगा, बल्कि आपके लिए यह तय करना भी जरूरी है कि वह किस वक्त स्क्रीन के सामने होगा। मसलन, आप सोने से पहले घर में टीवी या फोन ना चलाएं। इससे बच्चे की नींद प्रभावित होती है। साथ ही खाना खाते समय भी स्क्रीन से दूरी बनाए रखें।
घर पर टेक-फ्री जोन बनाएं
स्क्रीन पर अपने बच्चे के समय को कम करने के लिए, सुनिश्चित करें कि आप घर में कुछ जगहों को , खासकर आपके बच्चे के बेडरूम और डाइनिंग रूम में आप स्क्रीन का उपयोग न करें। यह सुनिश्चित करेगा कि आपके बच्चे के खाने और सोने की आदतें प्रभावित न हों।
बच्चे के साथ प्यार से पेश आएं
बच्चे के स्क्रीन टाइम को लिमिटेड करने के लिए उसके साथ सख्ती ना बरतें। बल्कि उसे लंबे समय तक स्क्रीन पर समय बिताने से होने वाले नुकसानों के बारे में बताएं। इससे बच्चा खुद ही कम वक्त स्क्रीन पर बिताने लगेगा।
लेख से हमने यह सीखा
नईदुनिया के गुरुकुल के तहत शैक्षणिक मनोवैज्ञानिक व कैरियर काउंसलर डा. वर्षा वरवंडकर के लेख में न सिर्फ बच्चों बल्कि प्रत्येक वर्ग में स्क्रीन टाइम के अनुशासन को समझाया। लेख के माध्यम से डिजिटल संस्कार के बारे में बताते हुए कहा गया है कि बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए यह कितना जरूरी है, इसलिए स्क्रीन टाइम का सदुपयोग बेहद जरूरी है।