Common Digestive Disorders: आपकी सेहत बिगाड़ सकती हैं पाचन से जुड़ी ये समस्याएं, जानें लक्षण और बचाव के उपाय

Common digestive problems: ज्यादातर पाचन संबधी समस्याएं खानपान में गड़बड़ी की वजह से उत्पन्न होती हैं, जिसकी वजह से व्यक्ति को पेट में दर्द, दस्त या असहज महसूस हो सकता है। ऐसे में कई बार पाचन से जुड़ी

Common digestive disorders: हमारा पाचन तंत्र हमारे शरीर को पोषण देने के लिए बना हुआ है। हमारे पाचन तंत्र में कई अंग शामिल हैं, जो भोजन को खाने से लेकर पचाने तक के काम को सुचारू रूप से करने का काम करते हैं। यही वजह है कि पाचन तंत्र हमारे शरीर की कार्य प्रणाली का प्रमुख अंग माना जाता है। सेहतमंद रहने के लिए पाचन तंत्र की देखभाल करना और इसे स्वास्थ्य बनाए रखना हर व्यक्ति के लिए जरूरी है। लेकिन खानपान में गड़बड़ी और बिगड़ी हुई जीवनशैली आज कई रोगों की जनक बन गई है। पाचन संबंधी विकार भी इसी का नतीजा है। ज्यादातर पाचन संबधी समस्याएं खानपान में गड़बड़ी की वजह से उत्पन्न होती हैं, जिसकी वजह से व्यक्ति को पेट में दर्द, दस्त या असहज महसूस हो सकता है। ऐसे में कई बार पाचन से जुड़ी तकलीफ़ों (Other digestive health issues) के चलते हमें पाचन संबंधी विकारों का सामना करना पड़ता है। आखिर कौन सी होती हैं पाचन संबंधी समस्याएं और उनसे निपटने के क्या हैं उपाय, आइए जानते हैं डॉ. अभिनव कुमार ( असोसिएट कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी ऐंड हिपैटोबाइलियरी साइंसेज़, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला) से 

पाचन संबंधी समस्याएं और उनसे निपटने के उपाय-
गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज- जीईआरडी

जीईआरडी यानी गैस्ट्रो इसोफेजियल रिफ्लक्स डिजीज को आम तौर पर हार्ट बर्न भी कहा जाता है। पाचन तंत्र संबंधी यह सामान्य समस्या है। इस रोग में पेट के एसिडिक कन्टेंट (अम्लीय तत्व) भोजन नलिका (इसोफैगस या फूड पाइप) में वापस बहने लगते हैं। भोजन नलिका की भीतरी पर्त एसिड यानी अम्ल को बर्दाश्त करने के लिए नहीं बनी है। ऐसा लंबे समय तक होने पर यह रिफ्लक्स फूड पाइप में सूजन या अल्सर होने की वजह बन सकता है जिससे सीने में दर्द और कई बार कुछ सटकने में भी मुश्किल हो सकती है। जीवनशैली में कुछ साधारण से बदलाव कर जीईआरडी को नियंत्रित किया जा सका है। इन बदलावों में भारी भोजन व अधिक चिकनाई वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से परहेज करना और रात का सोने से कम से कम 3 घंटे पहले कुछ नहीं खाएं। आमतौर पर ओवर द काउंटर मिलने वाली दवाओं से कुछ देर के लिए आराम मिल सकता है लेकिन लगातार बने रहने वाली जीईआरडी से छुटकारा पाने के लिए डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं और कुछ मामलों में सर्जरी की ज़रूरत हो सकती है।

इरिटेबल बाउल सिंड्रोम- आईबीएस (Irritable bowel syndrome)
इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम एक तरह का गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर है। जो बड़ी आंत (large intestine) को प्रभावित करता है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति को पेट में दर्द एवं मरोड़ होना, सूजन, गैस, कब्ज और डायरिया होना इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (IBS) के मुख्य लक्षण है। यदि लंबे समय तक इस समस्या को अनदेखा किया गया तो यह अधिक गंभीर हो सकती है। आईबीएस लंबे समय तक रहने वाली समस्या है और यह कुल आबादी में से करीब 10 से 20% आबादी को प्रभावित करता है। आईबीएस के आम लक्षणों में पेट में असहजता महसूस करना जो कब्ज़ या दस्त के कारण हो सकती है। देखा गया है कि तनाव व बेचैनी एंग्ज़ाइटी के कारण भी आईबीएस के लक्षण हो सकते हैं।

कई लोगों में कुछ प्रकार की चीज़ें जैसे गेहूं, डेयरी उत्पाद, खट्टे फल, बीन्स, पत्ता गोभी, दूध और कार्बोनेटेड पेय पदार्थों के सेवन से उनके आईबीएस लक्षण और गंभीर हो जाते हैं। तनाव व बेचैनी एंग्ज़ाइटी के कारण भी आईबीएस शुरू या गंभीर हो सकता है।  आईबीएस से अपनी दिनचर्या में कुछ सख्त कदम जैसे सोच-समझकर खाना(आईबीएस ट्रिगर करने वाले आम खाद्य व पेय पदार्थ जैसे कार्बोनेटेड बेवरेजेस, कैफीन के सेवन से परहेज़ करना और आईबीएस ट्रिगर करने वाले खाद्य पदार्थों की पहचान कर उनके सेवन से बचना), नियमित तौर पर कम गहनता वाले वेक्टर वर्कआउट्स करें जिससे लगातार बने रहने वाले लक्षणों से पाचन तंत्र को आराम मिलता है, छुटकारा पाया जा सकता है। भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ाना भी दस्त व कब्ज़ की समस्या से जूझ रहे रोगियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। कुछ लोगों को प्रोबायोटिक्स के सेवन से लक्षणों से राहत मिल सकती है। हालांकि, लगातार बने रहने वाले लक्षणों से राहत पाने के लिए डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाएं लेनी पड़ सकती हैं।

डिस्पेप्सिया-(Dyspepsia)-
सरल भाषा में समझे तो डिस्पेप्सिया का अर्थ बदहजमी या अजीर्ण रोग होता है। यह एक चिकित्सा संबंधी स्थिति है जिसकी विशेषता उदर के उपरी हिस्से में बार-बार होने वाला दर्द, ऊपरी उदर संबंधी पूर्णता और भोजन करने के समय अपेक्षाकृत पहले से ही पूर्ण महसूस करना है। इसके अलावा इससे पीड़ित व्यक्ति को सूजन, उबकाई, मिचली जैसे लक्षण महसूस होते हैं।इसे ‘पेट की गड़बड़ी’ भी कहते हैं।
यह किसी ऑर्गेनिक बीमारी जैसे गैस्ट्रिक अल्सर का संकेत हो सकता है या व्यक्ति में मौजूद किसी जीआई विकार के कारण भी हो सकता है। इसके कुछ चेतावनी संकेतों में वज़न घटना, बार-बार उल्टियां होना या हीमोग्लोबीन का स्तर कम बना रहना डिस्पेप्सिया की ऑर्गेनिक वजह का संकेत देते हैं। इसकी जांच के लिए अपर जीआई एंडोस्कोपी भी करानी पड़ सकती है। जिससे डिस्पेप्टिक लक्षणों की वजह का पता लगाया जा सके। जीवनशैली में बदलाव कर इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है जैसे कम चिकनाई वाला भोजन करना और नियमित तौर पर व्यायाम करना। लक्षणों को पूरी तरह समाप्त करने के लिए पेट में बनने वाले ऐसिड को घटाने/न्यूट्रलाइज़ करने वाली दवाओं और प्रो काइनेक्टिक्स लेने की भी ज़रूरत हो सकती है।  

एक्यूट डायरिया (Acute diarrhoea)-
एक्यूट डायरिया, डायरिया का सबसे कॉमन रूप है, जिसमें काफी लूज और पानी जैसा पतला दस्त होता है। यह खाद्य पदार्थों के ज़रिए होने वाले संक्रमण से होता है। एक्यूट डायरिया के अधिकतर मामले किसी एंटीबायोटिक्स के सेवन या अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत के बिना 12 से 48 घंटों की अवधि के दौरान खुद ठीक हो जाते हैं। हालांकि, इस स्थिति के दौरान शरीर को पर्याप्त मात्रा में हाइड्रेट रखना आवश्यक होता है और इसके लिए पर्याप्त मात्रा में ओरल फ्लुइड्स और ओआरएस का सेवन करना चाहिए। आमतौर पर अधिकतर मामलों में रोगी अपने आप ठीक हो जाता है लेकिन इसमें बुखार, मल में रक्त आना और डिहाइड्रेशन जैसे चेतावनी वाले लक्षणों पर ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है क्योंकि ऐसा होने पर एंटीबायोटिक्स लेना ज़रूरी होता है और कभी-कभी हाइड्रेशन के लिए अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ता है जिससे एंटीबायोटिक्स देकर संक्रमण ठीक किया जा सके।