निजी स्कूलों के शिक्षकों को अब पूर्व प्रभाव से मिलेगा ग्रेच्युटी का लाभ, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया आदेश

नई दिल्ली। देशभर के गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के शिक्षकों के लिए बड़ी खुशखबरी है। सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूलों के शिक्षकों को ग्रेच्युटी का लाभ देने के कानून को पूर्व प्रभाव से लागू करने पर अपनी मुहर लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों की याचिकाएं खारिज करते हुए ग्रेच्युटी का भुगतान (संशोधन) कानून, 2009 के प्रविधानों को पूर्व की तिथि तीन अप्रैल, 1997 से लागू करने को वैध ठहराया है। कोर्ट ने याचिकाएं खारिज करते हुए स्कूलों को आदेश दिया कि वे छह सप्ताह के भीतर कानून के मुताबिक शिक्षकों को ब्याज सहित ग्रेच्युटी का भुगतान करें। कोर्ट ने कहा कि ऐसा न होने पर शिक्षक पैसा पाने के लिए उचित फोरम में जा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर देशभर के गैर सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों पर होगा। शिक्षकों को ग्रेच्युटी कानून का लाभ तीन अप्रैल, 1997 की तिथि से मिलेगा। ऐसे बहुत से शिक्षक होंगे जो नौकरी छोड़ चुके होंगे या रिटायर हो गए होंगे, उन सभी को पूर्व तिथि से ग्रेच्युटी कानून का लाभ मिलेगा। निजी स्कूलों के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला बड़ा झटका है। शिक्षकों के हक में यह अहम फैसला जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने निजी स्कूलों के संघ और स्कूलों की अलग से भी दाखिल याचिकाओं को खारिज करते हुए 29 अगस्त को दिया। इंडिपेंडेंट स्कूल फेडरेशन आफ इंडिया और बहुत से अन्य निजी स्कूलों ने याचिकाएं दाखिल कर कानून को सही ठहराने वाले देश के विभिन्न हाई कोर्टो जैसे इलाहाबाद हाई कोर्ट, गुजरात हाई कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट, बांबे हाई कोर्ट, पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसलों को चुनौती दी थी। इसके अलावा बहुत से स्कूलों ने सीधे सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल कर ग्रेच्युटी का भुगतान (संशोधन) कानून, 2009 की धारा 2(ई) और 13ए की वैधानिकता को चुनौती दी थी जिसमें शिक्षकों को ग्रेच्युटी का लाभ पहले की तिथि तीन अप्रैल, 1997 से देने का प्रविधान था।

निजी स्कूलों की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल, रवि प्रकाश गुप्ता की मुख्य दलील कानून को पहले की तिथि से लागू करने को लेकर थी। स्कूलों की दलील थी कि वे पहले की तिथि से लागू कानून के मुताबिक शिक्षकों को ग्रेच्युटी देने में असमर्थ हैं। उनका कहना था कि एक ग्रेच्युटी फंड होता है जिसमें प्रतिवर्ष 15 दिन का ग्रेच्युटी का पैसा जमा होता है, लेकिन पूर्व तिथि से कानून लागू करने के लिए उनके पास ग्रेच्युटी फंड का पैसा नहीं है। अचानक आए आर्थिक भार का अंतत: असर छात्रों पर पड़ेगा। यह भी कहा कि सरकार कानून को पूर्व तिथि से लागू नहीं कर सकती।

केंद्र सरकार ने कानून को सही ठहराते हुए कहा कि ग्रेच्युटी कानून में एजुकेशन इंस्टीट्यूशन को तीन अप्रैल, 1997 से नोटिफाइ किया गया था, इसलिए संशोधन कानून उसी पूर्व तिथि से लागू किया गया है और किसी भी कानून को पूर्व तिथि से लागू करने का सरकार को अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूलों की सारी दलीलें ठुकराते हुए याचिकाएं खारिज कर दीं। कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर मामलों में कानून पर रोक का आदेश नहीं दिया गया था, लेकिन कुछ मामलों में तीन अप्रैल, 1997 से कानून लागू करने पर रोक लगाई गई थी। कोर्ट ने कहा कि जिस भी मामले में रोक आदेश दिया गया था, वे सभी रोक आदेश समाप्त किए जाते हैं। कोर्ट ने फैसले में माना कि पूर्व तिथि से संशोधन लागू करके सरकार ने विधायी भूल के कारण शिक्षकों के साथ हुए अन्याय को दूर किया है।

यह है मामला

सरकार ने तीन अप्रैल, 1997 को ग्रेच्युटी एक्ट के दायरे में शिक्षण संस्थाओं को भी नोटिफाइ किया था जिसके मुताबिक 10 से ज्यादा कर्मचारियों वाले शिक्षण संस्थानों को कानून के मुताबिक कर्मचारियों को ग्रेच्युटी का भुगतान करना था, लेकिन कुछ निजी स्कूलों ने कानून में दी गई परिभाषा का हवाला देते हुए कहा कि इस परिभाषा में शिक्षक नहीं आते क्योंकि न तो वे स्किल या नान-स्किल कर्मचारी हैं और न ही वे प्रबंधन व प्रशासन में लगे कर्मचारी हैं इसलिए शिक्षक ग्रेच्युटी पाने के हकदार नहीं हैं।

निजी स्कूलों की याचिका का मामला हाई कोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अहमदाबाद प्राइवेट प्राइमरी टीचर्स एसोसिएशन मामले में 2004 में दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून में दी गई कर्मचारी की परिभाषा में शिक्षक शामिल नहीं हैं, लेकिन विधायिका इस चीज को सुधार सकती है। इस फैसले के बाद सरकार ने 2009 में संशोधन कानून पारित किया था और शिक्षकों को ग्रेच्युटी का लाभ 1997 से दिया था। इस संशोधित कानून को निजी स्कूलों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।