चित्रों के माध्यम से टीबी के प्रति अंधविश्वास दूर कर रहे टीबी चैंपियन पुरुषोत्तम

रायपुर, 1 सितंबर। कभी खुद टीबी से पीड़ित रहे टीबी चैंपियन पुरुषोत्तम कहते हैं, मैं समझ सकता हूँ कि जब किसी व्यक्ति को टीबी हो जाती है तो उसपर क्या गुजरती होगी। इसलिए टीबी रोगियों को मानसिक रूप से संबल प्रदान करने के लिए मैंने बहुत सारे चित्र बनाए हैं जो कि यह सन्देश देते हैं कि टीबी मरीज के साथ कैसा व्यवहार किया जाये और टीबी से कैसे निजात मिल सकती है, यह सब मैं उन चित्रों के माध्यम से लोगों को प्रस्तुत करता हूं। लोग मेरे चित्रों के माध्यम से आसानी से समझ जाते हैं और अंधविश्वास की कुरीतियों को खत्म भी कर रहे हैं।

छत्तीसगढ के रायपुर जिला के ग्राम चपरीद आरंग के रहने वाले पुरुषोत्तम साहू को 18 साल की उम्र में टीबी हो गया था। जानकारी के अभाव में झोलाछाप डॉक्टर से इलाज़ कराते रहे 2 से 3 महीने बाद जब खांसी की समस्या ठीक नहीं हुई तो मितानिन के सहयोग से निकट के शासकीय अस्पताल में जाकर बलगम की जांच कराईतो जांच रिपोर्ट टीबी पॉजिटिव आई तब मुझे पता चला कि मुझे टीबी हो गया है। पिताजी को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने मेरे खाना खाने के बर्तन बिस्तर और यहाँ तक की नित्य क्रिया के लिये भी मेरे लिए अलग से व्यवस्था कर दी। पूरा परिवार मुझसे दूर हो गया। यहां तक कि मुझे पूरा परिवार एक अछूत के रूप में मानने लगा था यह कहना है टीबी चैम्पियन पुरुषोत्तम का।

पुरुषोत्तम बताते हैं कि ‘’मैं उस समय टीबी के बारे में ज्यादा नहीं जानता था, बस लोगों से तरह तरह की बाते सुन रखीं थीं ऐसे में बीमारी के कारण मुझे चिड़चिड़ापन होने लगा, मन उदास होने लगा निरंतर नकारात्मक विचार मन में आने लगे। परिवार का भी सहयोग न मिलने के कारण मुझे अधिकतर समय घर के बाहर एकांत में बिताना पड़ता था। जिसके कारण मेरे मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे, एक बार तो मुझे लगा कि गांव के पास बह रही नदी में जाकर अपने प्राण त्याग दिए जाए।“

उन्होंने बताया कि “एक दिन टीबी चैंपियन नोहरी चंद्राकर मेरे पास पहुंचे। उन्होंने मुझे टीबी के बारे विस्तार से बताया साथ ही टीबी रोग के प्रति फैले अंधविश्वासों पर परिवार से परामर्श कर तार्किक रूप से हल भी सुझाया। उसके बाद नोहरी चंद्राकर मुझे सरकारी डॉक्टर के पास लेकर गए | डॉक्टर ने बताया मेरा नियमित रूप से छह महीने तक इलाज चलेगा और इस दौरान मितानिन के माध्यम से नियमित रूप से फॉलोअप भी किया जाएगा। डॉक्टर की सलाह के अनुसार मैंने नियमित रूप से 6 माह तक दवाइयों का सेवन किया तब जाकर मैं टीबी से मुक्त हो सका। टीबी से मुक्त होने के बाद मैंने ठाना कि जिन परिस्थितियों से मैं गुजरा हूँ उनसे और कोई न गुजरे इसलिए मैं टीबी चैंपियन बनकर लोगों को जागरूक करने लगा। मैंने लगभग 70 टीबी मरीजों को अपने चित्रों के माध्यम से सिर्फ यह जानकारी दी है कि टीबी दवाई से ही ठीक होता है, अंधविश्वास से नहीं।