जम्मू-कश्मीर में नए आजाद फैक्टर का नुकसान थामने में जुटी कांग्रेस, पार्टी का आकलन, 10 विधानसभा सीटों पर पहुंचा सकते हैं नुकसान

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में गुलाम नबी आजाद के पार्टी बनाने से होने वाले सियासी नुकसान को थामने की कसरत में जुटी कांग्रेस का शरुआती आकलन है कि आजाद सूबे की करीब 10 विधानसभा सीटों पर सीधे कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे। इसकी भरपायी की कोशिशों में जुटी पार्टी ने संकेत दिया है आजाद जैसे दिग्गजों पर अत्यधिक भरोसे से लगे झटके को देखते हुए मौजूदा हालात में जमीन से जुड़े युवा चेहरों पर दांव लगाना ज्यादा मुफीद होगा। आजाद से लगे सदमे के बीच कांग्रेस इसको लेकर थोड़ी राहत महसूस कर रही कि प्रदेश में पहली पंक्ति के उसके कुछ नेता भले आजाद के समर्थन में पार्टी छोड़ रहे हैं लेकिन प्रदेश इकाई का व्यापक ढांचा और कार्यकर्ता कांग्रेस के साथ हैं।कांग्रेस मान रही है कि जम्मू-कश्मीर की सियासत में आजाद की प्रस्तावित नई पार्टी को हल्के में लेने का जोखिम नहीं लिया जा सकता क्योंकि जम्मू में चेनाब वैली के इलाकों, विशेषकर डोडा, किश्तवाड़ और उधमपुर आदि में उनकी परंपरागत पैठ है। इन इलाकों की करीब 10 विधानसभा सीटों पर आजाद कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं। जम्मू इलाके में पहले ही भाजपा की मुश्किल सियासी चुनौती का सामना कर रही कांग्रेस के लिए यह दोहरे संकट की स्थिति होगी।

कश्मीर घाटी में आजाद की नई पार्टी बहुत ज्यादा प्रभाव डाल पाएगी इसको लेकर कांग्रेस को संदेह है। पार्टी का मानना है कि घाटी में उनका आधार शुरू से कमजोर रहा है। साथ ही भाजपा के साथ परोक्ष सांठगांठ की बात घाटी में उनके खिलाफ जाएगी। बावजूद सूबे की सियासत में नए उभर रहे आजाद फैक्टर की चुनौतियों पर पार्टी सूत्रों का कहना था कि मनोहर लाल और पीरजादा मोहम्मद सईद जैसे कुछ एक नेताओं के अलावा पार्टी छोड़ने वाले अन्य नेताओं का ज्यादा प्रभाव नहीं है।सकता है क्योंकि ऐसे जमीनी युवा नेताओं और कार्यकर्ताओं को आगे आने का मौका मिलेगा जिन्हें आजाद और उनके समर्थक यह मौका नहीं दे रहे थे। इसमें यह भी अहम है कि आजाद के साथ कांग्रेस छोड़कर जाने वाले नेताओं में अधिकांश की उम्र 70 साल से ज्यादा है और वे अपने सियासी मुकाम के आखिरी पड़ाव पर हैं। बड़ी संख्या में नेताओं के पार्टी छोड़ने के सिलसिले पर सूत्र ने कहा कि चार सितंबर को आजाद की रैली के दिन तक यह तेज रहेगा और उसके बाद यह ठहर जाएगा।

समझा जाता है कि आजाद के पार्टी छोड़ने से लगे झटके का आकलन कर डैमेज कंट्रोल तेज करने के मकसद से ही कांग्रेस नेतृत्व ने राज्य की पार्टी प्रभारी रजनी पटेल को जम्मू भेजा था। हालात का जायजा लेकर लौटीं पटेल सोनिया गांधी के विदेश प्रवास से लौटते ही इसको लेकर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।आजाद की नई पार्टी के नफा-नुकसान का आकलन करने की इस चिंता के दौरान ही सामने आया है कि नाराजगी के बाद भी हाईकमान को यह गुमान नहीं था कि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस छोड़ देंगे। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि उनके इस्तीफे की चिट्ठी हमारे लिए सदमे जैसी थी। इसका आभास होता तो कांग्रेस नेतृत्व और विशेषकर राहुल गांधी अपनी तरफ से आजाद को समझाने की पहल नहीं करते।

राहुल ने बार-बार कुछ नेताओं के जरिये यह जानने की कोशिश की कि आजाद को आखिर उनसे क्या दिक्कत है लेकिन उन्होंने इसको कभी उजागर नहीं किया। पिछले साल श्रीनगर की राहुल की यात्रा के दौरान वे पहले दिन कार्यक्रमों में नहीं आए तो खुद पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने पांच बार आजाद को फोन किया। तब आजाद अगले दिन खीर भवानी के दर्शन के राहुल के कार्यक्रम में आए। जम्मू की यात्रा के दौरान भी राहुल ने आजाद को तवज्जो देने की पूरी कोशिश की और तीनों मौकों पर उनके आने का इंतजार किया। सूत्रों के अनुसार इस पहल के बावजूद बेरूखी को देखते हुए राहुल गांधी ने एक वरिष्ठ नेता को आजाद के पास भेजकर यह जानने की कोशिश की कि आखिर उनसे उन्हें क्या दिक्कत है पर आजाद ने तब भी स्पष्ट कुछ नहीं कहा। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पार्टी के स्वतंत्रता मार्च के दौरान भी उन्हें पूरा तवज्जो देते हुए राहुल और प्रियंका उनके अगल-बगल चले।

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