समय से पहले जन्मी शिशु को मिला नया जीवन

0 एनकेएच हॉस्पिटल में हुवा उपचार
कोरबा,09 अगस्त (वेदांत समाचार)। कुछ दिनों पहले कोरबा निवासी श्रुति ने न्यू कोरबा हॉस्पिटल में पहली संतान के रूप में बेटी को जन्म दिया। बच्चे का जन्म सातवें महीने में होने के कारण जहां वह गर्भ में पूरी तरह विकसित नहीं हुआ था वहीं उसे बहुत सी गंभीर समस्याएं भी थीं। बच्चे का वजन भी मात्र 900 ग्राम था। शिशु की हालत को देखते हुए शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ.नागेंद्र बागरी ने लगभग एक महीना बच्चे को जहां इनक्यूबेटर मशीन में रखा वहीं उसके कम वजन और अन्य समस्याओं का उपचार शुरू किया। बच्चे के सामान्य होने पर उसे पारिवार को सौंपा गया। परिवार के लोगों ने डॉ. बागरी तथा उनकी पूरी टीम के प्रति आभार जताया है।


आमतौर पर एक स्वस्थ शिशु का जन्म 36 सप्ताह (9 महीने) में होता है, लेकिन कई बार कुछ प्री-मैच्योर डिलीवरी यानी समय से पूर्व भी कुछ शिशु का जन्म होता है। एनटीपीसी जमनीपाली निवासी श्रुति पूर्णा को दर्द बढ़ने पर आनन-फानन में एनकेएच हॉस्पिटल कोरबा लाया गया। यहां महिला ने 7 माह की शिशु को जन्म दिया। जन्म के दौरान शिशु का वजन केवल 900 ग्राम था, जिसके कारण उसके बचाव में काफी मुश्किलें आईं।


जन्म के बाद बच्चा रोया भी नहीं एवं सांस ठीक से नहीं ले पा रहा था। आक्सीजन की भी अत्यंत कमी के कारण धड़कन बहुत कम थी जिसके लिए रेसिस्टेसन (धड़कन चालू करने के लिए प्रक्रिया) किया गया तथा सांस की नली डालकर वेंटिलेटर मशीन में शिशु को रखा गया। उसके फेफड़े अविकसित होने के कारण पेफड़ों को खोलने की दवा का प्रयोग किया गया। आक्सीजन की कमी के कारण मशीन लगा कर रखा गया था। शिशु को ट्यूब से फीड दिया जा रहा था। धीरे-धीरे स्थिति बेहतर होने पर मशीन हटा दी गयी एवं शिशु को बिना आक्सीजन सपोर्ट के रखा गया। दुग्धपान भी अच्छे से करने लगी जिसकी वजह से वजन में वृद्धि हुई, और बच्ची स्वस्थ होने पर माता-पिता को सौंपी गयी। जब नवजात का जन्म निर्धारित समय से पहले हो जाता है, उन्हें नियोनेटल इंटेन्सिव केयर यूनिट(एनआईसीयू) में रखा जाता है, जहां उनकी खास देखभाल की जाती है।


रेयर केस है, डॉक्टर ने कहा आत्मविश्वास बढ़ा
डॉ.नागेंद्र ने बताया कि हर साल 900 से 925 ग्राम वजन के 5 से 7 बच्चे पैदा होते हैं। हालांकि इनकी जान बची है, इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ा है, उम्मीद जागी है। हम और बेहतर करेंगे।


गर्भ जैसा माहौल दिया तो आया फर्क
डॉ.नागेंद्र ने बताया कि नवजात को प्राकृतिक तौर पर विकसित होने के लिए मां के गर्भ जैसे माहौल की जरूरत थी, इसलिए यूनिट में मौजूद मशीनों की मदद से उसका तापमान सामान्य किया गया। इसके बाद उसके फेफड़े विकसित होने लगे। वजन भी 800 से 1000 ग्राम बढ़ गया। अब बच्ची पूर्ण रूप से ठीक है। यह केस हाई रिस्क प्रेग्नेंसी और प्री-मैच्योर बेबी(अपरिपक्व शिशु) वाले कई दंपत्तियों के लिए आशा की नई किरण की तरह है।