लंपी वायरस से अब तक 40 हजार से ज्यादा गायों की मौत, जानें पशुओं को निशाना बना रहे इस वायरस के बारे में सब कुछ…

नई दिल्ली, Lampi Virus : कोरोना और मंकीपॉक्स के बाद अब राजस्थान में ‘लंपी’ ने कोहराम मचा दिया है। पशुओं को निशाना बनाने वाले इस खतरनाक वायरस (Lampi Virus) के संक्रमण को देखते हुए प्रदेश सरकार अलर्ट मोड पर आ गई है। गायों के मरने की खबरें राजस्थान और गुजरात से लगातार आ रही हैं. राजस्थान में 2100 और गुजरात में ये आंकड़ा 40,000 के पार जा चुका है. पर अचानक ऐसा क्या हुआ कि इन दो राज्यों में भारी संख्या में गायों की मौत हो रही है?वजह है लंपी स्किन डिजीज (LSD) इसे आम बोलचाल में ‘लंपी’ बीमारी भी कहा जाता है. गुजरात में डिस्ट्रिक्ट कलेक्टरों ने संक्रमित शवों को डंप करने पर प्रतिबंध लगा दिया है, क्योंकि ये बीमारी अत्याधिक संक्रामक है.

केवल गाय नहीं, अब ये बीमारी बैलों और भैंसों में भी फैल रही है. इसका इलाज लक्षणों की बिनाह पर किया जा रहा है. साथ ही, भारत सरकार ने एडवाइजरी भी इशू कर दी है जिसमें पशुधन मालिकों को अपने गौवंश की रक्षा के लिए गोट पॉक्स की वैक्सीन लगवाने की सलाह दी है.

अब समझ लेते है क्या है LSD

लंपी स्किन डिजीज मवेशियों और जल भैंसों में होने वाली एक वायरल बीमारी है. इसकी वजह से पशु कल्याण और उन मवेशियों द्वारा किए जाने वाले जरूरी उत्पादन में भारी नुकसान होते हैं. यह रोग, मुख्य रूप से कीड़ों के काटने से फैलता है जैसे कुछ प्रजातियों की मक्खियां, मच्छर और टिक-टिक यानी किलनी. इस रोग से ग्रसित पशु को बुखार हो जाता है, त्वचा पर गांठ हो जाती हैं. इसकी वजह से मृत्यु भी हो सकती है.

पहला संक्रमण कब –

यह संक्रमण 1929 में पहली दफा जाम्बिया में लंबी को महामारी के रूप में देखा गया. वहीं भारत में LSD का पहला केस रिपोर्ट अगस्त 2019 में देखा गया.

लंपी बीमारी से ग्रसित संक्रमण के लक्षण 

• सर, गर्दन, जननांगों और अन्य अंगों के आसपास की त्वचा पर 50 मिलीमीटर व्यास की सख्त और उभरी हुई गांठें

• शरीर के किसी भी हिस्से पर नोड्यूल

• पशुओं की छाती, जननांगो और बाकी अंगों में सूजन

• आंखों में पानी आना भी LSD का एक लक्षण है

• नाक से ज्यादा तरल पदार्थ और मुंह से अधिक लार का निकलना

• शरीर पर छालों का विकसित होना

LSD फैलता कैसे है और कैसे रोका जा सकता है?

लंपी एक वायरल बीमारी है. ये रोग जानवरों में मच्छरों और मक्खियों के काटने से फैलता है. इसके उपचार के लिए कोई स्पेशल एंटी-वायरल दवाएं उपलब्ध नहीं हैं. मवेशियों की अच्छे से देखभाल ही फिलहाल एकमात्र उपाय है. घावों के देखभाल के लिए स्प्रे इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही, त्वचा संक्रमण और निमोनिया को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाइयों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.

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