‘लाइलाज नहीं है क्षय रोग’, समझाते हैं टीबी चैंपियन

17 साल की उम्र से सपना लोगों को कर रही टीबी के प्रति जागरूक

रायगढ़ ,21जुलाई। टीबी लाइलाज बीमारी नहीं है, बशर्ते इसका समय से उपचार शुरू कर दिया जाए। इसमें कोई भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए अन्यथा रोग गंभीर हो सकता है। टीबी को मात देकर आज कई लोग टीबी चैंपियन बनकर दूसरों को टीबी से उबारने में मदद कर रहे हैं। टीबी चैंपियन  लोगों को बीमारी से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें जागरूक करने का काम कर रहे हैं। इन्होंने कई ऐसे लोगों का इलाज भी शुरू कराया जो इलाज से कतरा रहे थे।



जूटमिल निवासी 22 साल की सपना मानिकपुरी को क्षय रोग विभाग ने टीबी चैपिंयन बनाया है। सपना के मुताबिक 6 साल पहले मार्च 2016 में उन्हें पता चला कि उन्हें टीबी हुआ है। तब वह 16 साल की थी। शुरुआत में परिजनों ने एक निजी अस्पताल में इलाज करवाया किन्तु महीने भर बाद भी जब आराम नहीं मिला तो सपना की माँ सुमन (मितानिन सुपरवाइजर) ने बेटी को लेकर जिला चिकित्सालय का रुख किया। वहां एक्सरे जांच में टीबी की पुष्टि हुई। सपना घबरा रही थी लेकिन जिला अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों और उनकी टीम ने उनका इलाज शुरू किया। छह माह के नियमित इलाज के बाद उन्होंने टीबी को हरा दिया। इस दौरान उन्हें निक्षय पोषण योजना के तहत 500 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से कुल तीन हजार रुपये भी मिले। सपना अब लोगों को टीबी  के प्रति जागरूक कर रही है और अगर किसी को टीबी हो जाता है तो उसको इलाज के लिए सलाह भी देती हैं। वह टीबी मरीजों के लिए घर-घर सर्वे और जारूकता अभियान में स्वास्थ्य विभाग की टीम का हिस्सा भी हैं।

टीबी से उबरने के बाद सपना  को ट्रेनिंग के लिए रायपुर भेजा गया इसके बाद वह जिले में स्वास्थ्य विभाग के मार्गदर्शन में जनजागरूकता के कार्य में जुटी हैं। सपना बताती हैं: “जब मुझे टीबी हुआ यह पता चला तो मैं बहुत डर गई और खूब रोई। मां का सहारा मिला और मेरे यहाँ की मितानिन दीदी ने पूरा साथ दिया। वह घर आती और दवा की खुराक के बारे में बतातीं। अस्पताल भी साथ ले जातीं। दो महीने के बाद के जांच में  रिपोर्ट नेगेटिव आई पर इलाज 6 महीने चला। मैं ठीक हुई और फिर अपने जैसों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया। 2018 से स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी हूं और अब तक कार्य कर रही। पर टीबी से उबरने के बाद से ही मैंने टीबी के संभावित मरीजों की काउंसिलिंग शुरू कर दी। मेरे परिचित कुछ लोगों को उनके जैसे ही लक्षण दिखे जिनमें खांसी, बुखार, वजन कम होने की समस्या आ गई थी। उन्हें भी जांच की सलाह दी तो उन्हें भी टीबी निकला तो उनका भी इलाज शुरू कराया।“

टीबी रोग को मात देने वालों को मिलता है चैंपियन का दर्जा
जिला क्षय रोग अधिकारी डा. जया कुमारी चौधरी बताती हैं: “टीबी को हराने वाले लोगों को टीबी चैंपियन का दर्जा दिया जाता है। ऐसे लोग अन्य मरीजों को प्रेरित करने का काम करते हैं। टीबी चैंपियनों की समीक्षा बैठक होती है। विभागीय कार्य में उनकी इच्छानुसार सहयोग भी लिया जाता है। टीबी चैंपियनों में बदलाव भी होता रहता है। जागरूक करने वाले रोगमुक्त हुए मरीजों को नया टीबी चैंपियन बनाया जाता है। हाल ही में टीबी के घर-घर सर्वे में टीबी चैंपियंस की मदद ली गई थी।“

बेटी के सेवा कार्य में होने से खुशी है
सपना मानिकपुरी की मां सुमन मानिकपुरी जो जूटमिल क्षेत्र की मितानिन सुपरवाइजर हैं कहती हैं: “छोटी उम्र में बेटी को टीबी हो गया था लेकिन वहां से जैसे वह उबरी है और उसके बाद मोहल्ले के लोगों से लेकर गांव-गांव जाकर लोगों को टीबी के प्रति जागरूक करना इसकी दृढ़ निश्चयता को दिखाता है। यह एक सेवाकार्य है जिसमें मेरी बेटी रम गई है। इस बात की हम सभी को खुशी है।“

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