रायपुर । खंडेलवाल दिगंबर जैन मंदिर सन्मति नगर फाफाडीह में चातुर्मासिक मंगल प्रवेश के बाद सोमवार को चर्या शिरोमणि आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जिसके पास संकल्प शक्ति का अभाव है वह कभी विकास नहीं कर सकता। कोई भी कार्य करने के लिए संकल्प दृढ़ होना चाहिए। जिनके संकल्प ढीले हैं उनके मस्तिष्क में विकल्प आते हैं, जिनके संकल्प मजबूत हैं वे निर्विकल्प हो जाते हैं। निर्णय के अभाव में दुख होता है। संसार में सबसे दुखी वे लोग हैं जो निर्णय करना नहीं जानते। जिनके जीवन का निर्णय नहीं है,वो दूसरे के जीवन का क्या निर्णय करेंगे। निर्णय विहीन व्यक्ति घर ,परिवार, राष्ट्र नहीं चला सकता तो वह मोक्ष मार्ग पर क्या चल पाएगा। जीवन में एक निर्णय करना पड़ता है। निर्णय के बाद आप को मजबूत होना पड़ता है। जिसे अपने कार्य का विश्वास नहीं, जिसे अपने कार्य का आनंद नहीं वह व्यक्ति कभी आगे नहीं बढ़ सकता।
आचार्य श्री ने कहा कि जीव संकल्प ना करें तो कभी कार्य नहीं हो सकता। प्रमाण की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री ने समझाया कि मैं हूं-मैं हूं मन में बार-बार सोचें तो ज्ञान,वाक्य शब्द,था -अन्यथा दोनों का ज्ञान कराता है। व्यक्ति केवल राग के वशीभूत होकर पर को मैं मानता है। यदि आपने अपने मैं को खोज लिया, तो जो मैं बोलता है वही आत्मा है। भगवंत कहते हैं जिसे हमने ज्ञान कहा उस ज्ञान को खोजते खोजते जब परोक्ष ज्ञान को खोजते हैं तो पर की सहायता दिखाई देती है। अनुमान प्रमाण होता है। धुएं को देखकर अग्नि का ज्ञान हो जाता है। साधन से साध्य का ज्ञान होना इसका नाम अनुमान है। वचनों के,भाषा के माध्यम से व्यक्ति के भाव का बोध होता है। जैसे भाव होंगे वैसे ही भाषा निकलती है। जीवन में लोग दिखावा बहुत करते हैं। सामने कुछ और पीछे कुछ और होते हैं। जीवन से मुखौटे को उतारना होगा असली रूप में आना होगा।
आचार्य श्री ने कहा कि दीपक से आप वस्तुओं को सूने कक्ष में खोजते हो, पहले वस्तु उठाते हो या दीपक को उठाते हो? घोर आश्चर्य है कि लोग सामग्री को जान रहे हैं,लेकिन जिससे सामग्री को जानना है उसे नहीं जान रहे हैं। दीपक से वस्तुओं की खोज कर रहे हैं परंतु जिस ज्ञान से जगत को जाना जाता है, जिस ज्ञान से जगत को पहचाना जाता है, उस ज्ञान को ही नहीं जान पा रहे हो। यही अज्ञानता है। उसे जानों जिससे तुम जगत को जान रहे हो वह ज्ञान है। जो आपके बाहर नहीं है आपके भीतर है,आप ज्ञानमयी हैं।
आचार्य श्री ने कहा कि क्या एक जलते दीपक को उठाने के लिए दूसरा दीपक जलाना पड़ेगा ? जब हम जानते हैं कि दूसरे दीपक की आवश्यकता नहीं पड़ेगी तो स्वयं हमारी आत्मा ज्ञानमयी है। ऐसी निज आत्मा को भगवान बनाने के लिए दूसरी आत्मा की आवश्यकता नहीं है। हमें पहचानना पड़ेगा। आज से अपने आपको अज्ञानी कहना समाप्त कर दो,आप जैसा सोचते हो जैसा विचार आता है वैसा जीवन बनना प्रारंभ हो जाता है।
12 जुलाई को वर्षायोग मंगल कलश की होगी स्थापना
विशुद्ध वर्षायोग 2022 के अध्यक्ष प्रदीप पाटनी, महामंत्री राकेश बाकलीवाल, कोषाध्यक्ष निकेश गोधा, मनोज सेठी,कार्यकारी अध्यक्ष मनीष बाकलीवाल, मनोज पांड्या ने बताया कि 12 जुलाई मंगलवार को सुबह 8:30 बजे विशुद्ध सभागृह का उद्घाटन महावीर प्रसाद ,राजकुमार बाकलीवाल परिवार की ओर से किया जाएगा। ध्वजारोहण चातुर्मास शिरोमणि संरक्षक सुधीर कुमार, रितेश कुमार,नितेश कुमार,अरिहंत कुमार बाकलीवाल परिवार की ओर से किया जाएगा। दोपहर 1 बजे से चातुर्मास वर्षायोग मंगल कलश की विधि-विधान पूर्वक स्थापना की जाएगी। रात्रि 7:30 बजे भजन का आयोजन किया गया है।
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