रायपुर। पानी को कितना पिलाेए मक्खन नहीं निकलेगा। वैसे ही कोई व्यक्ति किसी भाव को कितना भी पिलोए, सांसरिक सुख उसे नहीं मिल सकता। अब सवाल यह है कि सुख मिलेगा कहां, तो जान लीजिए कि सुख और आनंद आपके अंदर ही है। यह बातें शुक्रवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी स्नेहयशा ने कही।
इन बातों को सार बताते हुए साध्वी स्नेहयशा ने कहा कि एक बार एक व्यक्ति क्रोध में आकर दूसरे व्यक्ति को बुरा-भला कह देता है। इस पर दूसरे व्यक्ति ने सोचा कि वह किसी और को यह कह रहा है और वह अपनी मस्ती में मगन था। वहीं पहले व्यक्ति के शब्दों से तीसरा व्यक्ति दुखी हो गया। उस बात को वह हमेशा सोचता रहता था और उसके मन में नकारात्मक भाव पैदा होने लगे। वहीं दूसरा व्यक्ति अब भी अपनी मस्ती में मगन था आैर यह बात वह भूल भी गया था। इससे हमें यह संदेश मिलता है कि सुख और दुख मान्यताओं के आधार से मिलता है। ठीक वैसे ही हम भगवान की वाणी को नहीं समझते या फिर समझने की कोशिश नहीं करते। हम ऐसा ही सोचते है कि वे दूसरे को बोल रहे है और ऐसा सोच कर हम अपने आप को ही ठगते है।
गारंटी किसी की नहीं, इसके भरोसे न रहें :
साध्वी स्नेहयशा ने बताया कि एक बार की बात है एक पंखा बेचने वाला सड़क पर जोर-जोर से कह रहा था कि पंखा ले लो, सिर्फ 50 रूपए में। एक बार यह पंखा ले लोगे तो यह कभी खराब नहीं होगा, आजीवन चलेगा। इस पर एक व्यक्ति ने उससे यह पंखा खरीद लिया। जैसे ही घर के अंदर उसने वह पंखा चालू किया, उसकी तीनों पंखुड़ियां टूट कर बिखर गई। वह बहुत क्रोधित हुआ और उस पंखे वाले को खोजने निकल गया। पंखा वाला नहीं मिला। कुछ दिनों बाद वह पंखा वाला फिर से उसी सड़क से निकला। उसकी आवाज सुनकर वह व्यक्ति उसके पास गया और बोला कि तुमने तो इस पंखे की आजीवन खराब नहीं होने की गारंटी दी थी पर यह पंखा तो एक मिनट भी ठीक से चल नहीं पाया और इसकी तीनों पंखुड़ियां बिखर कर गिर गई। इस पर पंखे वाले ने पूछा कि आपने पंखा कैसे चालू किया कि वह टूट गया। उसने पूछा क्या अापने पंखा टेबल पर रखा था। व्यक्ति ने कहा कि हां, फिर भी पंखा नहीं चला। इस पर पंखा वाले ने कहा पंखा टेबल पर तो रखना पर पंखा नहीं अपना सिर घुमाना था। साध्वीजी कहती है उस पंखे वाले की बातों में आकर जो भी वह पंखा लेता है, उसे भगवान की बातों पर विश्वास नहीं है। वैसे ही भगवान महावीर जानते थे कि कब वे घर छोड़ेंगे, कब उनके माता-पिता का निर्वाण होगा और कब उनका निर्वाण होगा और उन्हें कब और कितना राजपाट मिलेगा। फिर भी वे अपने राह पर चलें।[
चातुर्मास में करें जीवन की प्लानिंग :
साध्वी स्नेहयशा ने कहा कि चातुर्मास के इन चार महीनों में हमें प्लानिंग करना है। हम शादी के पहले कैसे प्लानिंग करते है। ऐसा तो नहीं होता कि शादी के दिन ही सब तैयारियां हो जाए। शादी की तारीख निकालने की प्लानिंग से लेकर शादी की प्लानिंग, भवन और बैंड-बाजा की बुकिंग, जरूरी सामानों की खरीदारी आदि करते है। ऐसे हम इसलिए करते है ताकि सब काम शादी के दिन आसान हो जाए। 6 महीने तैयारी करने के बाद भव्य समाराेह होता है और लोग बहुत अच्छी बातें कहते है, तारीफ करते है। जबकि शादी के बाद बहु का सास के साथ सामंजस्य नहीं होना और अन्य विवाद शुरु हो जाते है। कुछ शादियां ऐसी होती है कि एक साल प्लानिंग करने के बाद वह 6 महीने भी नहीं टिक पाती है। ऐसा वाक्यों को देखकर व्यक्ति के मन में वैराग्य आ जाता है। कई बार वह यह सोचता है कि ऐसा तो फलाने के साथ हो गया, मेरे साथ नहीं होगा। और जब यह वाक्या उसके साथ भी घटता है तो वह सोचता है एक बार ऐसा हो गया अब दोबार नहीं होगा। फिर भी पूरी तरह उसे सांसरिक सुख नहीं मिलता। साध्वीजी कहती है कि अब इन चार महीने हमें खुश रहने की प्लानिंग करनी है।
चातुर्मास के मुख्य लाभार्थी सराेज देवी धर्मपत्नि स्व. वीरचंद डागा, पुत्र विवेक कुमार डागा, पुत्रवधु दीपिका डागा, पुत्र यश कुमार डागा, पुत्रवधु सोनल डागा, पौत्री कु. जैनीशा, कु. जीविशा, कु. लियासी, पौत्र हर्ष वीर डागा है। साथ ही सह लाभार्थी शिवराज, जय कुमार, विजय कुमार बेगानी, शांतिलाल, दुष्यंत कुमार पींचा हैं।
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