स्थानीय उद्योग प्रबन्धन द्वारा एनजीटी के निर्देशों का पालन नही करने से बदतर हो चुके है हालात
रायगढ़ । जिले के औद्योगिकरण के बाद आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या गम्भीर होते चली गईं। जिले में स्थापित उद्योग स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों और जिम्मेदार विभाग की लापरवाही का भरपूर फायदा उठा रहे हैं। प्रतिवर्ष अपने उद्योगों से निकलने वाले हजारों लाखों टन राखड़ का नियमानुसार निस्तारण करने के बजाए नदी,नालों के किनारे,किसानों के खेतों के अलावा जंगलों और सड़क के किनारे अवैधानिक रूप से जमा कर रहे हैं। इसकी वजह से जिले के अधिकांश गांवों में प्रदूषण की गम्भीर समस्या उतपन्न हो गई है।
यहां वहां अव्यवस्थित ढंग से फेंका/ जमा किया गया फ्लाई एस हवा में घुल कर न केवल घरों और खेतों में फैल रहा है बल्कि बड़ी मात्रा में नदी नाले और तालाबों के पानी मे मिल कर उसे जहरीला तथा उपयोग हीन बना रहा है। इसके साथ ही हवा और पानी में राखड़ फैलने से बड़ी संख्या में लोगों को गंभीर जानलेवा बीमारियॉं भी हो रही हैं।
यही वजह है कि फ्लाई एस के व्यवस्थित निस्तारण को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बेहद सख्त निर्देश जारी किए है। परन्तु विडम्बना देखिए कि स्थानीय उद्योग पतियों के अलावा जिला प्रशासन से लेकर पर्यावरण विभाग तक को राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्दशों की कतई चिंता नही है। परिणामस्वरूप शहर के बाहर निकलने वाले तमाम रास्तों पर राखड़ के पहाड़ देंखने को मिल रहे हैं।
जिले में सबसे बुरी हालत तमनार विकास खण्ड की है। यहाँ के हालात बताते हुए जनचेनता के राजेश त्रिपाठी का कहते है कि जिंदल पावर तमनार द्वारा निकलने वाले फ्लाई एस को गारे 4/2 गारे 4/3 के कोयला खदानों के ओभर बर्डन के ऊपर फ्लाई एस को डाला जा रहा है जिससे गांव में सरसमाल झिका बहाल डोगामहुआ एवं अन्य आसपास के गांवों में हवा चलने पर यह फ्लाई एस(राखड़) उड़कर लोगों के घरों के अंदर तक पहुंच रहा है। जिसका बुरा असर सरस माल के ग्रामीणों के स्वास्थ्य और जीवन शैली पर पड़ रहा है। ग्रामीण फ्लाई एस को इस तरह डंप करने का विरोध कर रहे हैं।
उन्होंने जिला पर्यावरण संरक्षण मंडल रायगढ़ एवं जिला कलेक्टर रायगढ़ से अनुरोध किया है,कि प्रशासन तत्काल ओवरबर्डन के ऊपर ड़ाली जाने फ्लाई एस पर रोक लगाएं।अन्यथा आने वाले दिनों में मजबूर होकर ग्रामीण बड़ा विरोध प्रदर्शन करेंगे। जिसकी पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी। वही त्रिपाठी का कहना है कि स्थानीय उद्योगपति और उनका प्रबन्धन इस कदर बेलगाम हो गया है उनके द्वारा उनके उद्योग से प्रति वर्ष निकलने वाले करीब 24 लाख मिट्रिक टन जहरीला राखड़ यहां वहां डंप कियॉ जा रहा है जिसकी वजह से न केलव जिले में नदी तलाब का पानी जहरीला और प्रदूषित हो गया है बल्कि जंगल के लाखों पेड़ पौधे नष्ट होने लगे है। हालत इतने बदत्तर हो चुके है कि जिले भर के करीब दो दर्जन गांव रहने लायक ही नही बचे हैं। यहां सांस लेना मतलब फेफड़े का कैंसर और दमा जैसी बीमारियों को दावत देने जैसा हो गया है।।
प्रशासन और राजनीतिक निष्क्रियता के चलते आज जिला मुख्यालय रायगढ़ के वातावरण में भी जहरीली राख घुल मिल गई है। जिले के पूर्वांचल में स्थापित उद्योग msp ने तो आसपास के दर्जनो गांवों में इस कदर प्रदूषण फैलाया है कि ग्रामीणों का जीवन नर्क से बदतर हो चुका है। पूर्वांचल के जंगल फ्लाई एस के कृत्रिम पहाड़ों से ढँक चुके है। एम एस पी के द्वारा फ्लाई एस की अवैध डंपिंग की वजह से बड़े पैमाने पर जंगल नष्ट हो चुके है। आज भी जंगलों की बर्बादी का दौर जारी है। कमोवेश ऐसे ही कुछ हालत उद्योग पार्क पूंजी पथरा का भी है।। औद्योगिक प्रदूषण और राखड़ की आवैधानिक डंपिंग ने स्थानीय लोगो के लिए हालात बाद से बदतर कर दिए है।। भयंकर प्रदूषण से परेशान ग्रामीणों के द्वारा जब भी प्रशासन से अनुरोध कियॉ जाता है तो उनकी तरफ से महज खाना पूर्ति के लिए एक जांच टीम भेज दी जाती है। फिर जांच टीम की की रिपोर्ट कहाँ जाती है क्या कार्यवाही होती है यह कभी सामने नही आ पाता है।
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