भारत देश के झारखंड में स्वर्ण रेखा नदी बहती है नदी की धाराओं में छोटे-छोटे के कण मिलते हैं। लोगों की मान्यता है की इस नदी के अंदर बहुत सारा सोना हो सकता है लेकिन अभी तक इसकी खोज नहीं हो सकी है। वैज्ञानिकों के द्वारा कई बार इस नदी का शोध किया गया हैं। इसके बाद भी इस रहस्य का पता नहीं लगाया जा सकता है। उनका कहना है कि स्वर्ण नदी कई प्रकार के चट्टानों से टकराकर बहती है। जिसके कारण इसका पता नहीं लगाया जा सकता है। स्वर्ण नदी आदिवासी लोगों का आय का सूत्र है। यहां के आदिवासी दिनभर में दो से तीन सोने के का कण नदी से निकाल लेते है। सोना गेहूं के आकार का होता है जो बाजार में एक सोने कण कीमत 100 रुपए से 200 रुपए तक का होता है। इस सोने को आदिवासी बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं।
क्या है स्वर्ण रेखा नदी का इतिहास
स्वर्णरेखा नदी का इतिहास महाभारत काल के समय का है कहा जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडव यहां आकर रह रहे थे। तब इस निर्जन इलाके में रानी द्रौपति को प्यास लगी थी तो अर्जुन ने बाण माराकर इसी स्थल से पानी निकाला था जो आज भी मौजूद है। समय के साथ नदी का नाम स्वर्णरेखा नदी पड़ गया है। स्वर्णरेखा का उद्गम नाम रानीचुआं है।
कितनी है स्वर्ण रेखा नदी की लंबाई
स्वर्णरेखा नदी की लंबाई 474 किलोमीटर है झारखंड के राजधानी रांची से 16 किलोमीटर दूर गांव नगड़ी,(पांडु) रानीचुआं से निकलकर स्वर्णरेखा नदी किसी दूसरी नदी से नहीं मिलती है बल्कि दर्जनों छोटी-बड़ी नदियां स्वर्णरेखा में आकर मिलती है। उड़ीसा, पश्चिम बंगाल से होते हुए बालेश्वर नामक जगह पर बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है।
क्यों निकलता है स्वर्ण रेखा नदी में सोना
स्वर्णरेखा नदी से सोना निकलना वहां के लोगों के लिए आम बात है। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि नदी के आसपास के इलाके में संभवत सोना(gold) के कोई खदान है और नदी उन तमाम चट्टानों के बीच से होकर गुजरती है इसलिए घर्षण की वजह से सोने के कण इसमें घी जाते हैं। हालांकि अब तक इसका सटीक प्रमाण नहीं मिल पाया है। कुछ जानकार लोगों का यह कहना है कि स्वर्णरेखा नदी की सहायक नदियां कांची और करकरी है। मुमकिन है कि करकारी नदी से बहकर सोने के कण स्वर्णरेखा में मिल जाता है।
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