जगदलपुर ।बस्तर के प्रसिद्ध ढोकरा कला को सीखने के लिए तेलंगाना राज्य के कलाकार आसना स्थित बादल अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। ढोकरा कला से जुड़े हुए परिवार के सदस्य पुश्तैनी कला का प्रशिक्षण दे रहे है। ’’ढ़ोकरा शिल्प’’ पीतल धातु में विभिन्न जीव जन्तु की आकृतियों का ढलाई की जाता है। यह छत्तीसगढ़ के सबसे प्रतिष्ठित शिल्पों में से एक है। पीतल धातु में ढलाई से पहले यह अपनी परम्पारिक मोम तकनीक के माध्यम से कलाकृति को बनाया जाता है। यह तकनीक हजारों वर्षो से अपनाकर आगे बढ़ाया गया है। ढोकरा शिल्पकला बस्तर के घढ़वा समुदाय द्वारा व्यापक रूप से प्रचलित है। हस्तशिल्प मे पारंपारिक आभूषण, पशुओं आदिवासी देवी-देवताओं मूर्तियां शामिल है जो बस्तर क्षेत्र मे सबसे लोकप्रीय है।
बस्तर ढ़ोकरा आर्ट (बेलमेटल कारीगरी) 15 दिवसीय प्रशिक्षण लेने के लिए तेलंगाना राज्य से 19 प्रतिभागी लेने के लिए पहुंचे है। जिसका प्रशिक्षण आसना स्थित बादल अकादमी में 2 जून से 17 जून तक आयोजित किया गया है। मास्टर प्रशिक्षिक ग्राम अलवाही के श्री लुदुराम बघेल व पूर्वी टेमरा के श्री मन्नूलाल राम कश्यप के द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षिणार्थियों को 15 दिवसीय शेड्यूल अनुसार प्रशिक्षण के दौरान ढ़ोकरा आर्ट की सभी तकनीकों और बारिकियों की जानकारी दी जा रही है। ढ़ोकरा कला फिनिसिंग एवं माॅडल से मोम तकनीक काॅस्टिंग पर जानकारी एवं मिट्टी का मिश्रण, मिटटी माॅडल बनाने का अभ्यास, माॅडल मे चिकना मिटटी का लेपन का कार्य, माॅडल को चमक बनाने हेतु पेपर से घिसाई का तरीका, माॅडल में मोम चढाने का तरीका, माॅडल मे मोम डिजाईन करने का तरीका, मोम पर मिटटी की पहली एवं दूसरी परत छबाई का तरीका, पितल व मोम गलाने के लिए भट्टी बनाने की विधि, मिट्टी का चाडी मे पितल डालने का तरीका, माॅडल मे कास्टिंग करने का तरीका, कास्टिंग हुए माॅडल से मिट्टी निकालने का तरीका, बने हुए समान का बफिंग एवं फिनिसिंग का कार्य के साथ-साथ ही आंध्रप्रदेश से आये प्रतिभागियों को ढ़ोकरा आर्ट के कार्य से जुडे परिवारों के साथ एवं उनके गांवो मे भ्रमण करावाया जायेगा ताकि इन परिवारों से मिलकर कलाकारों के द्वारा किस प्रकार कार्य किया जाता है उसकी भलीभांति जानकारी से अवगत हो सके।
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