Liquid Biopsy Test से शुरुआत में ही कैंसर का लगा सकेंगे पता, शोधकर्ताओं का दावा

कैंसर का प्रारंभिक चरण में पता चलना कठिन होता  इसलिए जब रोग बढ़ जाता है और फिर उसका इलाज ज्यादा जटिल हो जाता है। इन समस्याओं से निपटने के लिए लगातार शोध हो रहे हैं। इसी क्रम में माउंट सिनाई के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि एक सामान्य ब्लड टेस्ट, लिक्विड बायोप्सी  से इस बात का एक दृढ़ पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि फेफड़े के कैंसर रोगियों पर इम्यूनोथेरेपी का असर होगा या नहीं। इसके साथ ही यह पूर्वानुमान या आकलन इन्वेसिव ट्यूमर बायोप्सी तकनीक से होने वाली जांच की तुलना में ज्यादा विश्वसनीय होगी। यह अध्ययन ‘एक्सपेरिमेंटल एंड क्लीनिकल कैंसर जर्नल’  में प्रकाशित हुआ है।

लिक्विड बायोप्सी से पीडी-एल1 बायोमार्कर की जांच

लिक्विड बायोप्सी से पीडी-एल1 बायोमार्कर की जांच की जाती है। यह एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो एक प्रकार के इम्यूनोथेरेपी को निशाना बनाता है, जिसे चेकप्वाइंट इन्हीबिटर कहते हैं। यह रोगी के इम्यून सिस्टम के हमले में मदद करता है और कैंसर कोशिकाओं को मारता है। यह अध्ययन दर्शाता है कि फेफड़े के कैंसर रोगियों में पीडी-एल1 बायोमार्कर की जांच रोगी के ब्लड टेस्ट से हो सकती है और इससे रोगी के जीवित बचने के बारे में ज्यादा सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इस तरह की जांच मौजूदा प्रचलित लंग कैंसर बायोप्सी से पीडी-एल1 की जांच से अधिक विश्वसनीय होती है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि ब्लड में पाया जाने वाला बायोमार्कर ईवी पीडी-एल1 कोशिकाओं की बाहरी पुटिकाओं (वेसिकल) से आते हैं, जो ट्यूमर कोशिकाओं से मिलते हैं। इसलिए ब्लड में बाह्य कोशिकाओं की पुटिकाओं में पीडी-एल1 की कम मात्रा से यह पता लगाया जा सकता है कि नान-स्माल-सेल वाले कौन से लंग कैंसर के रोगी को इम्यूनोथेरेपी से फायदा होगा।

माउंड सिनाई में इकाहन स्कूल आफ मेडिसिन में हीमैटोलाजी एंंड आन्कोलाजी के प्रोफेसर तथा इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक क्रिश्चियन रोल्फो ने बताया कि इस टेस्ट के परिणाम उन रोगियों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं, जिनमें अभी तक कोई विश्वसनीय बायोमार्कर नहीं पाया गया है और इससे इम्यूनोथेरेपी के होने वाले असर का भी पूर्वानुमान मिलेगा। उन्होंने बताया कि यदि इसकी पुष्टि व्यापक स्तर पर होती है तो यह प्रोटीन ऊतकों के पीडी-एल1 का विकल्प हो सकता है। यह इम्यूनोथेरेपी ले रहे कैंसर रोगियों की जांच का एक मानक तरीका हो सकता और इलाज के दौरान बिना किसी विशेष चीरफाड़ के बार-बार जांच को दोहराना आसान होगा।

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