बिलासपुर I बिलासपुर से महज 15 किलोमीटर दूर स्थापित NTPC देश के कई राज्यों को बिजली देकर रोशन कर रहा है, लेकिन इससे प्रभावित गांव राखड़ का दंश झेल रहे हैं। प्लांट की स्थापना के लिए ग्रामीणों की जमीन ली गई, उन्हें नौकरी और बुनियादी सुविधाएं देने का वादा और दावा किया गया, पर वो पूरी तरह से फेल हो चुका है। धूल और राख के गुबार से पटे इन गांवों में हर कुछ धुंधला है। पिछले दिनों प्लांट के निरीक्षण के लिए आई NGT यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की टीम भी इस पर सवाल खड़े कर चुकी है।
पिछले दिनों NTPC टीम आई तो उसे रुटीन निरीक्षण का नाम दिया। टीम ने इस दौरान सीपत NTPC और उससे जुड़े गांवों का दौरा किया था। इसके बाद पत्रकारों की टीम भी राखड़ बांध और उससे प्रभावित गांवों में पहुंच गई। NTPC ने ग्राम रलिया, रांक और उसके आसपास तीन राखड़ डैम बनाए हैं। तीनों डैम राखड़ से पट चुके हैं और ओवरफ्लो हो रहे हैं। इसका दुष्परिणाम ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। यहां राख लेकर जाने वाले भारी वाहनों से ही गुबार उड़ता है। हल्की सी हवा भी चलती है तो डैम से राख उड़कर ग्रामीणों के घर और किचन तक पहुंच जाती है।
पांच मिनट की हवा में दिखा नजारा
ग्राम सुखरीपाली में तेज हवा चलने लगी। देखते ही देखते गांव और आसपास का इलाका राख के गुबार से भर गया। सामने से आ रही गाड़ियां भी इस डस्ट में ओझल हो गईं। पेड़-पौधे और मकान तक नजर नहीं आ रहे थे। जब तक हवा कम हुई, तब तक राख लोगों के मुंह तक पहुंच चुकी थी। कपड़े और चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि किसी कारखाने से आ रहे हैं।
आंधियां चलने पर खाना फेंक देते हैं ग्रामीण
ग्राम सुखरीपाली की छाया सोनवानी बताती हैं कि अभी जिस तरह से हवा चल रही है, यह स्थिति रोज होती है। गर्मी के दिनों में हमारे भोजन में राख हो जाती है। ऐसे में या तो खाने को फेंकना पड़ता है या फिर जानवरों को खिला देते हैं। बांध से राख हमेशा उड़ती रहती है, क्योंकि यहां से उसे लेने के लिए भारी वाहनों की आवाजाही चलती रहती है। राख के कारण ग्रामीणों का रहना, खाना और पानी पीना भी मुश्किल हो गया है।
राख से प्रभावित हैं 20 गांव
राखड़ डैम से प्रभावित रांक, रलिया और सुखरीपाली के साथ ही कौड़िया, एरमशाही, नवागांव, मुड़पार, हरदाडीह, गतौरा सहित 20 से अधिक गांव हैं। इन गांवों के लोग राखड़ डैम के चलते नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। आंधी चलने पर आसपास के गांव में राख उड़ने से महज दस फीट की दूरी में देखना मुश्किल हो जाता है।
राख से हो रही बीमारी और फसलों को भी हो रहा नुकसान
बिहारी सिदार ने बताया कि राख के कारण शरीर को बहुत ज्यादा नुकसान होता है। आंख में डस्ट चली जाती है। जब खाना खाते हैं, तब उसमें राख आ जाती है। बाहरी हवा सांस लेने के लायक नहीं है। नाक-मुंह धोने पर राख का डस्ट निकलता है। इससे आंखों की परेशानी सांस, दमा, अस्थमा, एलर्जी जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं।
सांस लेने में दिक्कत हो रही है
संतोष कुमार पटेल ने बताया कि राखड़ के कारण ग्रामीणों को कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। क्षेत्र के ज्यादातर ग्रामीणों को अस्थमा, खांसी, सर्दी के अलावा सांस लेने में परेशानी हो रही है। सीने में दर्द होने की शिकायतें भी आ रही है। उसने बताया कि स्थानीय जनप्रतिनिधि और NTPC प्रबंधन की मिलीभगत के चलते ग्रामीणों को कोई सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।
सुविधाएं देने किया था वादा, लेकिन अब उल्टा हो रहा है
ग्रामीणों ने बताया कि जब NTPC का प्लांट स्थापित हो रहा था, तब अफसरों ने गांव के विकास का सपना दिखाया था। बिजली, पानी, नाली के साथ ही सभी बुनियादी सुविधाओं के साथ अस्पताल की व्यवस्था करने का वादा किया था। अब प्लांट लगने के बाद राखड़ बांध बना दिया गया है, जिससे ग्रामीणों की समस्याएं बढ़ गई हैं। गांव का विकास तो दूर ग्रामीणों को पीने के लिए साफ पानी तक नहीं मिल रहा है।
आंधी-तूफान को रोकना हमारे बस में नहीं
NTPC की जनसंपर्क अधिकारी (PRO) नेहा खत्री का कहना है कि राखड़ बांध प्रभावित गांवों में प्रबंधन की ओर से सुरक्षा के उपाय किए जाते हैं। राख न उड़े इसके लिए मिट्टी की परत से पटाई की जाती है। इसके साथ ही स्प्रिंकलर लगाकर डेम में पानी का छिड़काव किया जाता है। गर्मी के मौसम में आंधी-तूफान आने पर राख का उड़ना स्वाभाविक है, इसे रोकना किसी के बस में नहीं है।
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