कोरबा, 29 मई (वेदांत समाचार)। ऊर्जानगरी के प्रसिध्द ख्यातिलब्ध प्राचार्य इंडस पब्लिक स्कूल दीपका एवं शिक्षाविद डॉ. संजय गुप्ता ने बताया कि आज समाज में परंपरागत मूल्य एक-एक कर के नष्ट हो रहे हैं क्योंकि उनमें से अधिकांश का परिस्थितियों के साथ तालमेल उनमें से अधिकांश का परिस्थितियों के साथ तालमेल नहीं बैठ रहा । दूसरी ओर उनका स्थान लेने नए मानवीय मूल्य विकसित नहीं हो रहे । इसलिए समाज में अवव्यस्था और अराजकता लगातार बढ़ रही है । परिवार और समाज के अस्तित्व को इससे नई चुनौतियां मिल रहीं है । इसलिए श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों का विकास हमारे समय की एक बड़ी आवश्यकता है ।
यदि इस आवश्यकता को हमने महसूस नहीं किया तो भविष्य में अच्छे परिणाम देखने को नहीं मिलेंगें शांति, सदभाव और सौहार्द्र को गहरी ठेस पहुंचेगी । इससे मानवीय सरोकार ही प्रभावित होंगें । इसलिए एक समता मूलक, शांति पूर्ण समाज बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हम पढ़ाई-लिखाई को केवल रोजगार दिलाने के माध्यम के रूप में न देखें, न समझें । इसकी बजाय हम यह मानना शुरू करें कि शिक्षा रोजगार दिलाने के साथ-साथ अच्छे संस्कारों का बीजारोपण भी करती है । शिक्षा की प्रारंभिक दौर में किया गया संस्कारों का यह बीजारोपण विद्यार्थियों को बड़े होते-होते एक बेहतर और जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए प्रेरित करता है । इसलिए यह आवश्यक है कि हम आत्म-ज्ञान, आत्म-सम्मान और आत्म-नियंत्रण जैसे श्रेष्ठ मानवीय गुणों को अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का अनिवार्य हिस्सा बनाएं । आत्म ज्ञान जहां बच्चों को अपने भीतर झांकने, अपना आत्म विश्लेषण करने के साथ-साथ आध्यात्मिकता के लिए प्रेरित करता है । वहीं उन्हें अपने समाज और देश के विषय में भी सोचने-समझने की प्रेरणा देता है । आत्म सम्मान व्यक्ति के भीतर आत्म गौरव का भाव विकसित करता है । व्यक्ति अनेक प्रकार के कुंठओं से मुक्त होने का रास्ता खोजने में सक्षम होता है । उसका भविष्य में रीढ़ विहीन व्यक्ति होने से रोकेगा इसलिए आत्म सम्मान की भावना जब विद्यार्थियों में शिक्षा के माध्यम से उत्पन्न होगी तो वे मुक्त भाव से एक बेहतर दुनिया के बनाने के काम में लगेगें । आत्म नियंत्रण वस्तुतः एक प्रकार का संयम ही है । आत्म नियंत्रण के द्वारा मनुष्य अपनी आवश्यक इच्छाओं पर अंकुश लगाने में सफल होता है । इससे उसका विवेक सुदृढ़ होता है । वह भौतिक मूल्यों को अपनाने का निर्णय सोच-समझकर कर करता है । यदि विद्यार्थी जीवन के प्रारंभिक दौर में ही आत्म नियंत्रण को अपनी एक स्वाभाविक प्रवृत्ति के रूप में विकसित कर लें तो संभवतः भविष्य में वे बहुत सारी अप्रिय स्थितियों से स्वयं को बेहतर निकाल सकते हैं । वस्तुतः इन तीनों श्रेष्ठ मानवीय गुणों को शिक्षा में समाहित करने में हम भविष्य की अनेक ऐसी समस्याओं से बच सकेगें जो सामाजिक दृष्टि से बहुत द्यातक हो सकती है । इसलिए इंडस ग्रुप और आर्य समाज अपने संस्थानों के द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षा के माध्यम से ये गुण, संस्कार के रूप में देने का प्रयास कर रहे हैं, इसलिए हम देखते हैं कि हमारे विद्यार्थी भविष्य के सफल नागरिक होने के साथ-साथ अपने-अपने क्षेत्र के नायक भी सिध्द हो रहे हैं । हमें इन गुणों और मूल्यों के प्रति और गंभीर दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है ।
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