भावी संतान को सुरक्षित पर्यावरण सौंपे – डॉ.संजय गुप्ता

कोरबा, 26 मई (वेदांत समाचार)। इंडस पब्लिक स्कूल के प्राचार्य एवं शिक्षाविद डॉ. संजय गुप्ता का कहना है कि देश में मानसून का मौसम जोर पर है कहीं जम कर बारिश हो रही है । कही आकाश आग उगल रहा है । कहीं सूखा है, कहीं बाढ़ है । कहीं किसान जमीन पर तीन-तीन फसलें उगा रहे हैं । तो कहीं किसान कर्ज के बोझ से आत्महत्या कर रहे हैं । कितनी ही नदिया सुख गई या गदें नालों में मिल गई । जो धरती पहले सोना उगलती थी, वह अब बंजर हो गई है । जिन पहाड़ों पर घरों में पंखें नहीं थे, अब एयरकंडीशनर लगे हुए हैं । शहरों और गांवों में जितनी तापमान जितनी तेज है वह इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य ने विकास की जो अंधी दौड़ शुरू की है उसमें उसने प्रकृति की पूरी तरह से अनदेखी की है । वह प्रकृति से सिर्फ लेता है, देता कुछ नहीं, वह पेड़ काटता है लगाता नहीं । वह जमीन से पानी निकालता है, पर बारिश के पानी को रोकने का इंतजाम नहीं करता है ।


वह बड़े कारखाने लगाता है पर उनसे निकलने वाले रसायनों की ठीक से निकासी का कोई इंतजाम नहीं करता । उसका मकसद प्रकृति की कीमत पर से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना है । वह अपनी संतान को बहुत बड़ी संख्या में धन तो देना चाहता है, लेकिन साथ ही वह उसे ऐसा पर्यावरण सौंपने की व्यवस्था भी कर रहा है । जिसमें तेज बारिश होगी, नदियों में जल नहीं मल होगा । मनुष्य को आक्सीजन के मुखौटै लगाने होंगें । अनेक ऐसी बिमारियों देखने और सुनने में आएंगी । जैसा कि दमा, हैजा, श्वांस रोग, रूबेला इत्यादि रोग मुख्य रूप से सक्रिय हो कर लोगों को अपना ग्रास बना रहे हैं । जन्म लेते ही बच्चों में बहरापन, दृष्टि रोग, अल्पविकास विकृति जैसे लक्षण उत्पन्न हो रहे हैं जो कि भविष्य में भयंकर रूप् ले सकते हैं, जिनका इलाज असंभव भी हो सकता है । हमारे समय के पर्यावरण कि यह वास्तविकता है । वर्तमान की नींव पर ही भविष्य का निर्माण होता है । क्या यह हमारी जिम्मेदारी नहीं कि अपने आने वाली संतान को सुरक्षित पर्यावरण सौंपे क्या हमें नदियों को गंदे नालों में तब्दील होने से नहीं रोकना चाहिए । क्या हमें जहरीले पानी को धरती में रिसने देना चाहिए । प्रत्येक पीढ़ी की यही कामना होती है कि उसकी आने वाली पीढ़ी की जिंदगी आराम से बीते । उसे मुसीबतों का सामना न करना पड़े । पर्यावरण आज हम सबकी चिंता का सबसे बड़ा मुद्दा है । हम कोशिश करें कि विकास के नाम पर प्रकृति का अंधाधुंध दोहन न करें । हमारा प्रयास हो कि वर्षा का पानी बहे नहीं, हम पोखरों और तालबों में उसे सुरक्षित करें ।


ऐसा करने से जल का सतर गिरना बंद हो जाएगा। पर्यावरण के प्रति इस जागरूकता का प्रयास करना उन सबकी जिम्मेदारी है जो यह मानते हैं कि हम अपने आगे वाली पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य देना चाहते हैं । सभी शिक्षा संस्थान पर्यावरण के प्रति शिक्षकों और विद्यार्थियों के अभिभावकों को जागरूक बना कर सार्थक पहल करने का प्रयत्न करें । हमें अपने प्रयासों में सामान्य नागरिकों को भी शामिल करना चाहिए । यदि हम पर्यावरण के प्रति समाज को संवेदनशील बनाकर पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण को राष्ट्रीय चिंता का बड़ा मुद्दा बना पाते हैं तो अपने समाज के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी निभा पाएंगें ।

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