कोरबा, 24 मई (वेदांत समाचार)। ऊर्जानगरी के प्रसिध्द ख्यातिलब्ध प्राचार्य इंडस पब्लिक स्कूल दीपका एवं शिक्षाविद डॉ. संजय गुप्ता ने बताया कि आज की भागदौड़ भरी दुनिया में सफलता और असफलता के बीच चोली-दामन का साथ है । कभी एक सीमा तक प्रयास करने पर सफलता प्राप्त होती है तो कभी उसी सीमा तक प्रयास करने पर असफलता हाथ मिलती है । मनुष्य इसे भाग्य का दोष मान कर अपनी दुनिया में विचरण करने लगता है । वह असफलता के कारणों को खोजने की बजाय भाग्य पर दोष मढ़ना शुरू कर देता है । इससे उसको मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है । यह एक हकीकत है कि आज की दुनिया में भीषण प्रतिस्पर्धा है ।
प्रत्येक व्यक्ति जल्द से जल्द सफलता प्राप्त करना चाहता है। उसकी गति, उसके लक्ष्य और उसके प्रयासों में तालमेल न होने से असफलता प्राप्त होती है । इन तीनों के बीच समुचित तालमेल से मनुष्य सफलता को वरण करता है । यदि मनुष्य भाग्य की बजाय इस तालमेल के अभाव को अपनी असफलता का कारण मानना शुरू कर दे तो उसे मानसिक व्यधि का सामना नहीं करना पड़ेगा । वह असफलता से बाहर निकल कर नए सिरे से फिर अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रयास करेगा । इसलिए जहां असफलता या अन्य कारणों से उत्पन्न अवसाद मनुष्य को अनेक मानसिक व्यधियों का शिकार बनाता है । वहीं साहस मानसिक व्याधियों पर नियंत्रण का मार्ग प्रशस्त करता है ।
इस संदर्भ में इतिहास के पन्नों को पलटने की आवश्यकता है । भारत ने एक लंबे संघर्ष के बाद विदेशी शासन से मुक्ति प्राप्त की । संघर्ष की इस प्रक्रिया में अनेक आंदोलन हुए । कुछ आंदोलन अपने अंतविरोधी के कारण सफल नहीं हुए । कुछ को विदेशी शासकों ने अपने लाठी और गोली से सफल नहीं होने दिया । इस संघर्ष के नायकों ने नए आंदोलन के लिए अपनी असफलताओं से सबक सीख कर पूरे साहस के साथ नई शुरूआत की, फिर कभी सफल हुए तो असफल । उन्होने हर बार-बार नए साहस का परिचय दिया और दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति को पराजित कर विजय प्राप्त की । यह संघर्ष उन लोगों को अपने जीवन में एक जीवित मिसाल के रूप में रखना चाहिए । यह मिसाल उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में शायद मदद करें ।
हम कुछ हकीकतों से वाकिफ हो कर भी नावाकिफ होने का ढोंग करते हैं । यह ढोंग हमारे साहस की कुंठित करता है । हमें इस ढोंग से बच कर कमजोरी नहीं उसकी शक्ति होती है । जो व्यक्ति अपनी खामियों को स्वीकार करता है । वहीं व्यक्ति सफलता के शिखर तक पहुंचता है । ढोंग करने वाला व्यक्ति छल और कपट की मदद से कुछ अर्जित नहीं कर पाता । शून्य पर आउट होने वाला खिलाड़ी, अपने आउट होने के कारणों को जब समझ जाता है तब अगलीबार यह विरोधी टीम के सामने संकट पैदा कर देता है ।
यदि व कारणों को नहीं समझ पाता तो उसके शून्य पर आउट होने का खतरा बराबर बना रहता है । इसलिए अवसाद से बचने के लिए सदैव साहस को अपना कवच बनाएं । साहस के बूते पर ही सफलता का वरण करना आसान है । हम सब किसी भी धर्म, जाति, समाज या देश के लोग हों अवसाद को अपने जीवन में स्थान न दें ।
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