कोण्डागांव। कोण्डागांव जिला के ग्राम सिंगनपुर, गारका, आंवरभाटा और अन्य में जायद मिर्च फसल में थ्रिप्स कीट से प्रभावित होने की सूचना मिलने पर उद्यान विभाग केअधिकारियों और कृषि वैज्ञानिकों को ने संयुक्त दल ने निरीक्षण कर कीट प्रभाव का अवलोकन किया।
निरीक्षण दल में वैज्ञानिक और प्राध्यापक कृषिकीट शास्त्र कृषि महाविद्यालय कांकेर डॉ. पीयूषकांत नेताम, वैज्ञानिक उद्यान शास्त्र डॉ. सुरेश मरकाम, वैज्ञानिक पादप रोग विज्ञान कृषि विज्ञान केन्द्र कांकेर डॉ. उपेन्द्र नाग, कार्यक्रम समन्वयक कृषि विज्ञान केन्द्र कोण्डागांव डॉ. ओमप्रकाश और उद्यान विभाग से सहायक संचालक कोण्डागांव वी.के. गौतम और प्रभारी उद्यान अधीक्षक डॉ. चंद्रेश धुर्वे शामिल थे।
डॉ. पीयूष कांत ने बताया कि थ्रिप्स वैज्ञानिक नाम सरटो थ्रिप्स डारसैलिस, ब्लैक थ्रिप्स वैज्ञानिक नाम थ्रिप्सपारबीस्पीनस और व्हाइट फ्लाइ वैज्ञानिक नाम बेमेसिया टबेसाइ है। जो मिर्च की फसल प्रमुख कीट है। जो पत्ती मोड़क वायरस का प्रसार का वाहक है। थ्रिप्स की मादा 80 अंडे देती है जो 2 से 4 दिन में फूटता है निम्फ और मादा दोनों पौधे की पत्तियों फूलों और कोमल शाखाओं को खुरचकर रस को चुसती है।
इसके अलावा लाईट ट्रैप (प्रकाश प्रपंच) का उपयोग करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त फसल विविधता अपनाना चाहिए। कृषकों को फसल छति जोखिम से बचने के लिए एक ही फसल को 50 क्षेत्र से अधिक नहीं लगाना चाहिए तथा अन्य फसलों को भी साथ में लगाना चाहिए। एक ही प्रकार का कीटनाशक का प्रयोग लगातार नहीं करना चाहिए तथा दवाइयों के छिड़काव में निश्चित दिनों के अंतराल के ध्यान रखना चाहिए। दवाइयों के छिड़काव के लिए घोल बनाते समय संस्तुत की गई मात्रा का ध्यान रखना चाहिए। दवाइयों का छिड़काव प्रातः 8 बजे से पहले और शाम 4.30 से 8 बजे के बीच करना चाहिए साथ ही कृषक बंधुओं को बाजार में निजी व्यापारियों की सलाह पर ही दवा खरीदने और उपयोग में सावधानी बरतनी चाहिए साथ ही हर बार पक्का बिल अवश्य लेना चाहिए।
इस दौरान वैज्ञानिकों ने कुछ रासायनिक दवाओं जिनका प्रयोग थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए किसानों को करना चाहिए उसके सुझाव भी दिए। जिसमें उन्होंने डाइनोटफ्यूरान 60 मिली.ली प्रति एकड़ अथवा स्पाइनेटोरम 11-7 एस सी ( एग्रोस्टार) अथवा इमिडाक्लोरपीड आधा मिली प्रति लीटर पानी में मिला कर देने का सुझाव दिया।
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