IPS DIPKA में संचालित समर कैंप में पपेट मेंकिंग एवं पपेट शो से विद्यार्थी दे रहे अपनी हुनर को परवाज

⭕ पपेट शो में विभिन्न भाव-भंगिमाओं के द्वारा कर रहे अपनी कला का प्रदर्शन एवं पपेट मेकिंग में गढ़ रहे अपने सपनों का चरित्र सीख रहे बनाना, राजा-रानी, किसान, गृहिणी इत्यादि ।

कोरबा , 2 मई (वेदांत समाचार) I विश्व के अधिकांश भागों में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में पुतली कला ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । यह पुतली कलाए साहित्यए चित्रकलाए शिल्प कला, संगीत, नृत्य, नाटक जैसी सभी कला शैलियों के तत्वों को आत्मसात् करती है और छात्रों को रचनात्मक क्षमताओं को विकसित करने में सक्षम बनाती है । भारत में पारंपरिक रूप से पुतली कला को भारतीय पुराणों और दंत कथाओं के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लोकप्रिय व सस्ते माध्यम के रूप में प्रयोग में लाया जाता रहा है ।

चूंकि पुतलीकला एक गतिशील कला शैली है जो सभी आयु वर्गों के लिए उपयुक्त है इस संचार माध्यम को स्कूलों में शिक्षा प्रदान करने की सहायक सामग्री के रूप में चुना गया है ।


पपेट जिसे हम हिन्दी में कठपुतली कहते हैं विश्व के प्राचीनतम रंगमंच पर खेला जाने वाला मनोरंजक कार्यक्रम में से एक है । कठपुतलियों को विभिन्न प्रकार की गुड्डे, गुड़ियों, जोकर आदि पात्रों के रूप मे बनाया जाता है । इसका नाम कठपुतली इस कारण पड़ा क्यांकि पूर्व में भी लकड़ी अथवा काष्ठ से बनाया जाता था । इस प्रकार काष्ठ से बनी पुतली का नाम कठपुतली पड़ा । कठपुतली शब्द पुष्ठलिका के संस्कृत शब्द से बना हुआ है । पुष्ठिका लैटिन शब्द प्यूया से मिलकर बना है । जिसका अर्थ होता है छोटी गुड़िया । इस कठपुतली कला का जन्म हमारे भारत देश में हुआ था । विक्रमादित्य की कहानियों में सिंहासन बत्तीसी में बत्तीस कठपुतलियों का वर्णन किया गया है ।


इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में विगत लगभग 10 दिनों से समर कैंप अनवरत रूप से जारी है । यहाँ पंजीकृत विद्यार्थी लगातार विभिन्न कलाओं से पारंगत हो रहे हैं । विभिन्न प्रकार की एक्टिविटीज के अलावा एक सबसे न्यारी एक्टिविटी है पपेट शो एवं पपेट मेकिंग जिसका सभी विद्यार्थी भरपूर लाभ ले रहे हैं । विद्यार्थी विभिन्न रंग-बिरंगे कपड़ो के टुकड़ों को बड़ी कुशलता के साथ काटकर एवं सिलकर एक से बढ़कर एक पपेट बनाना सीख रहे हैं । कोई राजा-रानी बनाता है, कोई देश का किसान, कोई गृहिणी तो कोई भारतीय सैनिक बनाकर पपेट मेकिंग में अपनी कला का प्रदर्शन करता है । पपेट मेकिंग एवं पपेट शो में नाजनीन सिद्दकी, श्रीमती निहारिका जैन, श्रीमती सोमा चौधरी, श्रीमती मधुचंदा पात्रा एवं श्रीमती मोमिता सरकार, श्रीमती रंजीत कौर, श्रीमती सोमा सरकार अपने कुशल मार्गदर्शन से विद्यार्थियों के हुनर को तराशने में अपना निरंतर सहयोग दे रहे हैं । प्रतिदिन विद्यार्थियों को पपेट मेकिंग हेतु समाज में अपना योगदान देने वाले अलग-अलग किरदारों का टास्क दिया जाता है जैसे-नेता, पुलिस, डॉक्टर, किसान, शिक्षक, विद्यार्थी, सफाई कर्मी, वकील इत्यादि । विद्यार्थी सहयोगी शिक्षिकाओं की सहायता से बड़ी कुशलता से पपेट मेकिंग कर अपनी कल्पनाओं को साकार करते हैं । साथ ही पपेट शो में भी विभिन्न कहानियों के माध्यम से अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं । प्रतिदिन विभिन्न किरदारों के साथ एक नई कहानी के द्वारा पपेट-शो की मनोरंजक प्रस्तुति की जाती है । पपेट शो एवं पपेट मेकिंग में विद्यार्थी बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं । पपेट-शो में विद्यार्थी एक विशेष अंदाज में कठपुतलियों के साथ अपनी भावाभिव्यक्ति करते हैं जो कि काबिले तारीफ होती है । रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकड़ों को बहुत ही कलात्मक रूप से जोड़कर एवं सिलकर विद्यार्थी पपेट शो में जानवरों की और अन्य प्रकार की मनोरंजक व शिक्षाप्रद कहानियों की जीवंत प्रस्तुति की जाती है ।


श्रीमती रंजीत कौर ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में पुतली कला का विशेष महत्व है, क्योंकि इसके माध्यम से बच्चों में कल्पना शक्ति, रचनात्मकता तथा अवलोकन कुशलताओं को विकसित करने में सहायता मिलती है । अध्यापकों को बताया जाता है कि कक्षा में सामाजिक समस्याओं के प्रति जागरूकता और शैक्षिक संकल्पनाओं को अभिव्यक्त करने हेतु आसानी से उपलब्ध तथा बेकार सामग्री से सरल पुतलियों का निर्माण करना पाठ्यक्रम का उद्देश्य है । इन सभी पुतलियों का परिचालन प्रत्येक क्रियात्मक सत्र के पश्चात् साथ-साथ सिखाया जाता है । अध्यापक इन विभिन्न प्रकार की पुतलियों की सहायता से शैक्षिक पुतली कार्यक्रम तैयार करते हैं ।

विद्यालय प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता ने कहा कि कठपुतली से लोगों का मनोरंजन होता है । बच्चे कठपुतली के खेल से सबसे अधिक प्रसन्न होते हैं उनमें कठपुतलियों के माध्यम से कहानी सुनने व समझने का जिज्ञासा भाव उत्पन्न होता है । बच्चे शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से ही ज्ञानार्जन में वृध्दि होती है । उन्होंने बताया कि प्राथमिक स्तर पर बच्चों की अपनी एक काल्पनिक दुनिया होती है वे गुड्डे गुड़ियों से आकर्षित होते हैं कठपुतलियों के जरिए वह आसानी से चीजों को समझ जाते हैं। डॉ. संजय गुप्ता का कहना है कि अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने पाया है कि कठपुतलियां भावनात्मक रूप से प्रभाव डालती हैं शांत बच्चे भी बोलना शुरू कर देते हैं।


यह भारत का सबसे प्राचीन खेल है यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय राजस्थान में है । कठपुतली के खेल में हम आसानी से किसी भी सामाजिक बुराई को लोगों के समक्ष जीवंत प्रस्तुत कर एक संदेश दे सकते हैं जैसे-दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, स्वच्छता अभियान इत्यादि । राजस्थान में भाट जाति के लोगों का जीवन यापन आज भी पपेट शो से ही होता है । पपेट शो समाज में जागरूकता फैलाने का प्रारंभ से ही अच्छा माध्यम रहा है । आज भी विश्व स्तर पर इसकी एक अलग पहचान है । कहा जाता है कि भगवान शिव ने काठ की मूर्ति के अंदर प्रवेश करके पार्वती माता का मन बहलाया था तभी से इस कला की शुरूआत हुई थी । आज यह कला जापान, चीन, रूस, इंग्लैड, अमेरिका, श्रीलंका , कनाडा आदि देशों में भी प्रसिध्द हो गई है । इस कला के माध्यम से लोगों को नकरात्मक सकारात्मक सभी प्रकार के संदेशों को पहुँचाने का कार्य किया जाता है । डॉ. संजय गुप्ता ने कहा कि कठपुलियाँ हमें विशेष संदेश देती है जिस प्रकार कठपुतलियाँ धागों में बंधी रहती है उसके बाद भी वह बहुत कुशलता से करती है । हमारा जीवन भी कुछ ऐसा ही है हम बंधन में बंध जाने के बाद बहुत परेशान हो जाते हैं । लेकिन कठपुतलियाँ बंधन में रहने के बावजूद हर कार्य को बहुत सरलता और आसानी से करती है ।

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