बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में तेन्दुओं के साथ हो रहे अत्याचार को रोकने को लेकर दायर की गई एक जनहित याचिका की सुनवाई में आज मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस आर सी एस सामंत की बेंच ने शासन को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है याचिका की अगली सुनवाई 4 हफ्ते बाद निर्धारित की है.
याचिकाकर्ता नितिन सिंघवी की तरफ से बताया गया कि वन विभाग के अधिकारी ही मानव-तेंदुआ द्वन्द बढ़ा रहे हैं। बिना पता लगे कि कोई तेंदुआ प्रॉब्लम एनिमल है कि नहीं, देखते ही पिंजरा लगा देते हैं, उसे पकड़ते हैं, और दूसरे स्थान पर छोड़ देते हैं। यह समस्या को बढ़ाने वाला है। कई किलोमीटर दूर नए जंगल में तेंदुआ अपने को अनजान जगह पर पाकर परेशान हो जाता है, अत्यधिक तनाव, भूख, सदमा और अवसाद में उसे समझ में नहीं आता कि वह क्या करे। ऐसे में नए स्थान पर वह पालतू पशुओं पर हमला करके खा सकता है, मानव तेंदुआ द्वन्द बढ़ सकता है। तेंदुआ को अगर 100 किलोमीटर दूर भी छोड़ा जाएगा तो वह अपने मूल वन में लौटने का प्रयत्न करता है
और अगर कोई बाधा न हो तो वापस अपने मूल वन में पहुच जाता है। कई बार वापस लौटते में आने वाले उन गावों में जहाँ कभी तेंदुआ नहीं देखा गया वहां भी मानव तेंदुआ द्वन्द पैदा हो जाता है। मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जुन्नारदेव में चिप लगाकर छोड़ा गया तेंदुआ वापस संजय गांधी नेशनल पार्क पहुंच गया था।
भारत सरकार ने गाइडलाइंस में कहा है कि तेंदुए को अपने घर से बहुत ही ज्यादा लगाव रहता है इसलिए जिस जगह से वह पकड़ा गया है उस से 10 किलो मीटर के दायरे में उसे छोड़ा जाना प्रावधानित किया गया है। उसे दूसरी नयी जगह छोड़ा जाए तो वह वापस घर लौटने का प्रयत्न करता है, लौटते वक्त आने वाले मानव बसाहट इलाके में द्वंद बढ़ सकता है। भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार तेंदुए को रेडियो कॉलर लगा कर, लगातार मोनिटरिंग करना अनिवार्य है। परंतु छत्तीसगढ़ में बिना रेडियो कॉलर लगाए और दूसरे वन क्षेत्र का अध्ययन किए बिना कई किलो मीटर दूर छोड़ दिया जाता है। छत्तीसगढ़ वन विभाग की मानक प्रचालन प्रक्रिया में भी रेडिओ कालर लगा कर 24 घंटे में छोड़े जाने का प्रावधान है।
डी.एफ.ओ.बिना आदेश के पकड़ते हैं और मनमाने स्थान पर छोड़ देते हैं-
तेंदुआ वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित वन्यजीव है। बिना मुख्य वन्यजीव संरक्षक अर्थात प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) के आदेश के इस को पकड़ना अपराध की श्रेणी में आता है, जिसके तहत 3 से 7 साल की सजा का प्रावधान होता है। कानूनी जानकारी होने के बावजूद वनमंडल अधिकारी मुख्य वन्यजीव संरक्षक की बिना अनुमति के पिंजरा लगाते हैं और तेंदुए को पकड़ लेते हैं और मनमाने स्थान पर छोड़ देते हैं।
सब कुछ होता है मुख्य वन्यजीव संरक्षक की जानकारी में:-
मुख्य वन्यजीव संरक्षक से वनमंडल अधिकारी तेंदुए को पकड़ने के लिए तो कोई अनुमति नहीं लेते परंतु तेंदुए को पकड़ने उपरांत छोड़ने की अनुमति मांगते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि सब कुछ मुख्य वन्यजीव की जानकारी में हो रहा है। तेंदुए पकड़ कर के दूसरे स्थान पर छोड़े जाने के 15 दिन बाद तक मुख्य वन्यजीव संरक्षक तेंदुए को छोड़ने की अनुमती जारी करते रहते है। तेन्दुओं को कानून के विरुद्ध वनमंडल आधिकारियों द्वारा पकडे जाने की पूर्ण जानकारी होने के बावजूद दोषियों के विरुद्ध मुख्य वन्यजीव संरक्षक कोई कार्यवाही नहीं करते।
हाल ही में मुख्य वन्यजीव संरक्षक के आदेश के बिना पकड़े गए तेन्दुओं का विवरण-
12.09.2021 एक नर तेंदुआ और एक मादा तेंदुआ कांकेर से-
बिना यह पता लगाएं कि तेंदुआ प्रॉब्लम एनिमल है कि नहीं और बिना मुख्य वनजीव संरक्षक के आदेश के, वनमंडल अधिकारी कांकेर ने एक नर तेंदुए को और एक मादा तेंदुए को पकड़ा। दोनों प्रॉब्लम एनिमल नहीं पाए गए। पग मार्ग भी नहीं मैच हुए। कांकेर में दोनों का मेडिकल चेकअप कराया गया, दोनों पूर्णता स्वस्थ पाए गए और कांकेर के डॉक्टरों ने लिखा कि यह जंगल में छोड़े जा सकते हैं परंतु उसके बावजूद दोनों को जंगल सफारी रायपुर लाया गया । जंगल सफारी मैं भी मेडिकल जांच में दोनों को स्वस्थ बताया गया तथा जंगल सफारी के डॉक्टर ने दोनों को जंगल में छोड़ने लायक बताया। मादा को वापस कांकेर भिजवा दिया गया जहां उसे बिना रेडियो कालर लगाए सरोना रेंज के कंपार्टमेंट नंबर 124 में छोड़ा गया।नर को बिना किसी आदेश के रायपुर में रख लिया गया जहां 17 सितंबर को सेप्टीसीमिया से वह मर गया।
पदमश्री डॉक्टर के.के शर्मा ने बताया सेप्टीसीमिया होने का कारण-
नर तेंदुए की मृत्यु के पश्चात याचिकाकर्ता ने देश के ख्याति प्राप्त वेटरनरी सर्जन पदमश्री के. के. शर्मा से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि तेंदुए को बेहोश करते वक्त दो दवाइयों के मिक्सचर इंजेक्शन लगाया जाता है। जब बेहोशी से बाहर निकालने के लिए इंजेक्शन दिया जाता है तो वह एक ही दवाई के लिए कार्य करता है, दूसरी दवाई के असर से जब तेंदुआ बाहर निकलता है तब वह बहुत तेजी से पिंजड़े की जालियों से टकराता है, जिससे उसे अंदरूनी चोटें लग जाती है, जोकि सेप्टीसीमिया का कारण बन जाता है और उसकी मौत हो जाती है। गौरतलब है कि कांकेर में पकड़े गए नर और मादा दोनों को बहुत कम अंतराल में दो बार बेहोशी का इंजेक्शन लगाया गया, नर को सेप्टीसीमिया हो गया जिससे उसकी असमय मृत्यु हो गई।
17.09.2021 मादा तेंदुआ कांकेर-
वनमंडल अधिकारी कांकेर ने बिना मुख्य वन्यजीव संरक्षक की अनुमति के और बिना यह पता लगाएं कि कौन सा तेंदुआ प्रॉब्लम एनिमल है, एक मादा को पकड़ा, बेहोश कर जांच कराई और दूसरे दिन उसे बिना रेडियो कालर लगाए उसी कंपार्टमेंट में छोड़ दिया गया जहां पर 12 सितंबर को पकड़ी गई मादा तेंदुआ को छोड़ा गया था।इस प्रकार एक ही कंपार्टमेंट में दो तेन्दुओ को छोड दिया गया जो कि उनकी आपस की वर्चस्व की घातक लड़ाई का कारण बन सकता है।
26.11.2021 और 29.11.2021 गरियाबंद-
वनमंडल अधिकारी गरियाबंद ने बिना यह पता लगाएं कि कौन सा तेंदुआ प्रॉब्लम एनिमल है, सिर्फ इस आधार पर कि उस इलाके में 3 माह में कुछ घटनाएं हुई है, तेंदुए के घूमने के इलाके में पिंजरा लगाया और अलग-अलग तेंदुआ को पकड़ा। वनमंडल अधिकारी द्वारा तेंदुए को पकड़ने के लिए अनुमति मांगी गई थी, परंतु मुख्य वन्यजीव संरक्षण ने अनुमति नहीं दी। उसके बावजूद वनमंडल अधिकारी ने तेंदुए को पकड़ा। 26 नवंबर को पकड़े गए तेंदुए को तो कई किलोमीटर दूर उदंती सीतानदी अभ्यारण में छोड़ दिया गया। परंतु 29 नवंबर को पकड़े गए तेंदुए को, बिना मुख्य वन्यजीव संरक्षक के तेंदुए को बंधक बनाने के आदेश के कानन पेंडारी में आजीवन कैद कर दिया गया।
अगस्त 2019 राजनांदगांव-
वनमंडल अधिकारी राजनांदगांव ने मुख्य वन्यजीव संरक्षक के आदेश के बिना राजनांदगांव से तेंदुआ पकड़ा और यह कहते हुए उसे भोरमदेव अभ्यारण में छोड़ दिया कि मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) रायपुर ने उसे पकड़ने के निर्देश दिए हैं जबकि याचिकाकर्ता को मुख्य वन्यजीव संरक्षक तथा मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) रायपुर ने बताया कि तेंदुआ पकड़ने के कोई भी आदेश उनके द्वारा नहीं दिए गए हैं।
धमतरी डीएफओ ने दिया था सुझाव तेंदुए के शिकार को इंट्रोड्यूस करें और ली थी आपत्तियां-
धमतरी डी.एफ.ओ. ने मुख्य वन्यजीव संरक्षक को पत्र लिख कर के कहा था कि यह उचित नहीं है कि तेंदुए को बार बार पकड़ कर के दूसरे स्थान पर छोड़ा जाए। उन्होंने भी बताया था कि पकड़ने से तेंदुए को सेप्टीसीमिया हो जाता है, जिससे उसकी मौत हो जाती है। धमतरी डी.एफ.ओ. ने कहा था कि धमतरी के पहाड़ी वन क्षेत्रों में शाकाहारी जानवर की उपस्थिति नहीं है परंतु मांसाहारी वन्यप्राणी जैसे तेंदुआ की उपस्थिति दिख रही है, ऐसे में शाकाहारी जानवर को लाकर वन क्षेत्रों में छोड़ा जाना चाहिए। डी.एफ.ओ. ने लिखा था कि वन क्षेत्र में तेंदुआ खत्म हो जाने से वन क्षेत्रों में अवैध कटाई की समस्या बढ़ सकती है, जो कि जंगल के लिए नुकसानदायक है।
याचिकाकर्ता द्वारा बताया गया कि समय समय पर मानव देन्दुआ द्वन्द कम करने के लिए उन्होंने भी कई सुझाव प्रषित किये है।
क्या की गई है प्रार्थना:–
वन विभाग को आदेशित किया जाये कि भारत सरकार की गाइडलाइंस का शब्दतः पालन किया जाये, भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की धरा 11 के प्रावधानों का पालन कराया जाये, तेंदुए को वापस छोड़े जाने पर अनिवार्य रूप से रेडियो कालर लगाया जाये, मानक प्रचालन प्रक्रिया का पालन कराया जाये।
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