हमारे देश में आजादी के बाद से जितनी भी सरकारें बनी है सभी ने गरीबों के हितों को ध्यान में रख कर ही कल्याणकारी योजनाएं बनाई है और उसे क्रियान्वित भी किया है। इसके बावजूद देश से गरीबी हटने का नाम ही नहीं ले रही है। गरीबी का गोरख धंधा वाकई अजीबो गरीब है। स्थिति यह है कि मर्ज बढ़ता ही जा रहा है ज्यों-ज्यों इसकी दवा की जा रही है। दरअसल गरीब होने के अपने अलग फायदे है।
यही वजह है कि लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठने को तैयार ही नही है। जो लोग गरीबी रेखा (Fake Poor Identity) से ऊपर उठ भी गए है वे भी गरीबी रेखा के नीचे बने हुए है और कथरी ओढक़र घी खा रहे है। देश में ऐसे फर्जी गरीबों की भरमार हो गई है। जिन लोगों के पास अपने पक्के मकान है, खेतीबाड़ी है घर में टीवी, फ्रीज, वाशिंग मशीन और बाईक जैसी विलासिता की चीजे है वे भी सरकारी आंकड़ों में गरीब बने हुए है। ऐसे लोगों को सिर्फ अपने क्षेत्र के पंच या पार्षद को भेंट पूजा अर्पित करनी पड़ती है और वे उनका बीपीएल कार्ड बनवा देते है।
बीपीएल कार्ड बन जाने से साधन संपन्न लोग भी गरीबों को मिलने वाली तमाम सुविधाओं का लाभ उठाने लगते है। किसी भी शासकीय उचित मूल्य की दुकान में चले जाओं एक व दो रूपए किलों मिलने वाले चांवल को लेने के लिए लोग एक एक लाख रूपए की बाईक में आते है कोई कोई तो कार में भी आता है। सिर्फ चांवल ही नहीं बीपीएल कार्डधारियों को पांच लाख रूपए तक के मुफ्त इलाज की भी सुविधा मिलती है और स्कूलों में बच्चों को फीस भी कम देनी पड़ती है।
ढाई-ढाई लाख रूपए की लागत से मुफ्त मकान भी बनते है। इसके अलावा और भी कई सुविधाएं बीपीएल कार्डधारियों को मिलती है। यही वजह है कि लोगों में बीपीएल कार्डधारी बनने की या बने रहने की होड़ लगी हुई है। अब समय आ गया है कि ऐसे फर्जी गरीबों की पहचान की जाए और उन्हे दी जाने वाली रियायतें तत्काल प्रभाव से बंद की जाए।
होना तो यह भी चाहिए कि जो संपन्न लोग अब तक बीपीएल कार्डधारी (Identification of Fake Poor) बने हुए है और तमाम योजनाओं का लाभी उठाते रहे है उसकी भरपाई उनसे कराई जाए और जो ऐसा न करें उनके खिलाफ फर्जीवाड़ा का प्रकरण दर्ज कर कानूनी कार्यवाही की जाएं। जब तक ऐसे कड़े कदम नहीं उठाए जाएंगे तब तक भारत को गरीबी के अभिशाप से मुक्ति नहीं मिल पाएगी।
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