आदिवासियों को बढ़ावा और मांगों की अनदेखीः प्रशासन की घोर लापरवाही, बदहाली में जी रहे 700 लोग, 10 सालों से मदद के नाम पर मिला सिर्फ आश्वासन…

26 मार्च (वेदांत समाचार). जिले में संवरा आदिवासी समाज मूलभूत सुविधाओं के साथ अन्य लाभकारी योजनाओं से वंचित दर-दर की ठोकरे खाते हुए बदहाली की जीवन जीने मजबूर हैं. सरकार आदिवासियों के लिए तरह-तरह की योजनाएं लेकर आती है. विश्व आदिवासी दिवस का त्यौहार मनाती है, लेकिन जिले में आदिवासियों की हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. इनकी समस्या की वजह जिला प्रशासन और उसके जिम्मेदार अधिकारी भी हैं, जो इनकी मांगों की अनदेखी पिछले 10 वर्षों से करता आ रहा है.

बता दें कि, लगभग 115 परिवार के 700 की संख्या में संवरा आदिवासी जनजाति के लोग सालों से अपनी मांगों को लेकर प्रशासन से गुहार लगा रहे थे. इसके बाद भी उनकी मांगों को अनसुना किया जा रहा है. संवरा आदिवासी जनजाति के लोग आज भी अव्यवस्था की मार झेल रहे हैं, जिन्हें मूलभूत जरुरत बिजली, पानी, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है.

वहीं जिले में गर्मी के दिनों मे पानी की समस्या विकराल हो जाती है, जिसको लेकर सांवरा बस्ती के लोग विगत 10 वर्षों से शासन-प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं पर महज आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला.अपनी मांगों की अनदेखी होने से गुस्साए आदिवासियों ने चक्काजाम कर दिया. चक्काजाम के बाद कलेक्टर ने इनकी समस्याओं को देखते हुए पानी की व्यवस्था की, लेकिन वह भी ऊंट के मुंह मे जीरा के सामान.

जानकारी के अनुसार, सवरा आदिवासी जनजाति के लोग पिछले 40 वर्षो से इंदिरा कॉलोनी में रहते थे, लेकिन तालाब सौंदर्यीकरण के लिए इनको वहां से हटा कर, शहर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर जमीन दी गई थी, जहां अपना जीवन यापन कर रहे हैं. इनकी बस्ती मकानों से बनी हुई है, जहां सात्विक जैसे जहरीले जानवरों का खतरा लगातार बना रहता है. वहीं काफी दूर से पानी लाते समय सड़क पार करते हुए बच्चे की दुर्घटना में मौत भी हो चुकी है.

दरअसल, व्यवस्थापित आदिवासियों की समस्या तब और बढ़ गई जब उन्हें जिले से 3 किलोमीटर दूर कुकुर्दी में बसाया गया. अब ग्रामपंचायत इन्हें अपने पंचायत का ना होने की बात कह रहा है और वोट डालने के अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है. आदिवासी लगातार इस बात को लेकर प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद प्रशासन इनकी मांगों पर ध्यान नहीं दे रहा है. वहीं बच्चों की शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो इनके साथ स्कूलों में भेदभाव किया जाता है, जिससे लगभग 100 से अधिक बच्चे स्कूल जाने से वंचित है और उनका भविष्य अंधकार में है.