बारिश का पानी बचाकर दूसरे गांवों के लिए मिसाल बना बांदा का गांव, जखनी मॉडल को पीएम मोदी ने भी सराहा

उत्तर प्रदेश 20 मार्च (वेदांत समाचार)। के बांदा जिले का जखनी मॉडल इन दिनों खूब चर्चा में है. दरअसल बारिश के पानी को रोकने की वजह से गांव में जलस्तर काफी बढ़ गया है, साथ ही गांव में समृद्धि भी आई है. गांव में पानी की किल्लत दूर होने की वजह से फसल भी काफी अच्छी हो रही है. खेतों को सिंचाई के लिए पानी आसानी से उपलब्ध हो (Save Water) रहा है, जिसकी वजह से धान, गेहूं, तिलहन और सब्जियों की अच्छी फसल हो रही है. वहीं पिछले एक दशक में गांव में आपराधिक घटनाओं में भी कमी आई है. आसपास के सैकड़ों गांव समेत देश के हजारों गांव जखनी (Jakhani Model) की तरह परंपरागत समुदाय आधारित जल संरक्षण के तरीके को अपना रहे हैं.

जल शक्ति मंत्रालय, नीति आयोग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, लघु सिंचाई विभाग जखनी के जल ग्राम (Jal Gram) की विधि को पूरे देश में प्रसारित कर रहा है. जखनी जल ग्राम के नायक जल योद्धा उमा शंकर पांडे अपने 20 किसान साथियों के साथ बगैर प्रचार-प्रसार के परंपरागत वर्षा जल अभियान में समुदाय के साथ निरंतर लगे हुए हैं. वह पिछले 25 सालों से संघर्ष में जुटे हुए हैं आज लाखों लोग उनके इस जल संरक्षण मंत्र अपना रहे हैं.

रोल मॉडल बना जखनी गांव

सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड में जखनी गांव दूसरे इलाकों के लिए रोल मॉडल बन गया है.परंपरागत तरीके से समुदाय के आधार पर बगैर किसी सरकारी अनुदान के गांव के किसानों, मजदूरों और नौजवानों ने मिलकर सूखे बुंदेलखंड में देश का पहला जल ग्राम बनाया है. सभी ने मिलकर देश में जल ग्राम विधि को जन्म दिया है. भारत सरकार के जल मंत्रालय ने देश के प्रत्येक जिले में दो जल ग्राम चिन्हित कर जल संरक्षण के लिए जखनी मॉडल पर बनाने की घोषणा की है.नीति आयोग ने अपनी वाटर मैनेजमेंट रिपोर्ट में जखनी को देश का मॉडल स्वावलंबी गांव माना है.

जिला प्रशासन बांदा ने 470 ग्राम पंचायतों में जखनी मॉडल लागू किया है. कृषि उत्पादन आयुक्त ने यूपी के एक लाख गांव के लिए यह मॉडल उपयुक्त माना है. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इस मॉडल की सराहना की है. गांव में पिछले एक दशक में चोरी, डकैती और महिलाओं के साथ अप्रिय घटनाओं में भी पहले की अपेक्षा कमी दर्ज की गई है. साथ ही गांव तरक्की के रास्ते पर अग्रसर हो रहा है. गांव में कई स्कूल खुद गए हैं. किसी भी बड़ी बीमारी से भी गांव पूरी तरह से मुक्त है. साथ ही सभी धर्मों के बीच आपसी भाईचारा है. गांव के किसान और मजदूर भी अपने काम में निरंतर लगे हुए हैं.

पारंपरिक तरीके से दूर हुई पानी की किल्लत

बादा के जखनी गांव में पानी की किल्लत दूर होते ही हर तरफ समृद्धि छाई हुई है. गांव के जिन लोगों के पास एक समय में खाने के लिए खाना तक नहीं था, वह आज ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल और जीप के मालिक बन गए हैं. बांदा के छोटे से गांव में आज 50 से ज्यादा ट्रैक्टर और हार्वेस्टर मशीनें है. गांव के लोगों के पास आधुनिक और परंपरागत दोनों तरह के कृषि यंत्र मौजूद हैं. एक समय था जब गांव में सिर्फ 150 बीघे में सामान्य धान और 500 बीघे जमीन पर सिर्फ एक बार फसल होती थी. किसान भाग्य भरोसे रहते थे. लेकिन पानी कि किल्लत दूर होते ही गांव की 2572 बीघा जमीन पर बासमती धान और 2572 बीघा जमीन पर खरीफ की फसल पैदा हो रही है. साथ ही सब्जियों की फसल भी आज बहुत अच्छी है.

बांदा का जखनी मॉडल इस कदर चर्चा में है कि आसपास के कई गांव जखनी की तर्ज पर खेती कर रहे हैं. बांदा का जखनी गांव आज पानी की किल्लत से जूझ रहे दूसरे गांवों के लिए भी रोल मॉडल बन गया है. खास बात ये है कि सरकार ने जल संरक्षण के लिए गांव पर कुछ भी खर्च नहीं किया है. गांव के लोगों ने खुद मेहनत करके सूखे बुंदेलखंड को हरियाली में बदल दिया है. गांव में पैदा हो रहा बासमती धान विदेशों में भी निर्यात किए जा रहे हैं.

बाजार में बांदा के बासमती धान की मांग

देश की सबसे बड़ी चावल की नरेला मंडी में बांदा के बासमती धान की मांग सबसे ज्यादा है. खबर के मुताबिक 10 साल पहले पूरे बुंदेलखंड में 1 किलो बासमती धान भी पैदा नहीं होता था, लेकिन जखनी के किसानों की मेहनत से बांदा में धान की अच्छी फसल हो रही है. जखनी के किसानों द्वारा पैदा किए गए बासमती धान की मांग बाजार में सबसे ज्यादा है. वहीं जखनी में प्याज की फसल भी बड़ी मात्रा में हो रही है. पिथले साल जखनी के किसानों ने 5000 हजार कुंटल से ज्यादा प्याज पैदा की थी.