फिल्म के बहाने फिर से चर्चा में कश्मीर का मार्तंड सूर्य मंदिर, जानें क्या है इसकी कहानी

Martand Sun Temple: क्या आपको मार्तंड सूर्य मंदिर के बारे में मालूम है? 80 फीसदी मुमकिन है कि आपको इस मंदिर के बारे में पता नहीं होगा! कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के विस्थापन को लेकर बनाई गई फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ इन दिनों खूब चर्चा में है और इसी बहाने कश्मीर का मार्तंड सूर्य मंदिर भी चर्चा में है. दरअसल, पिछले दिनों जब राजधानी दिल्ली में फिल्म ‘The Kashmir Files’ के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक सवाल के जवाब में इस मंदिर का जिक्र किया और इसकी कहानी बताई. उन्होंने बताया कि मार्तंड सूर्य मंदिर पर कभी पूरा कश्मीर और हिंदुस्तान गर्व करता था. आतंकी दौर में उसे तोड़े जाने से पहले केरल से भी हिंदू दर्शन करने जाया करते थे.

विवेक अग्निहोत्री के मुताबिक, जिस तरह नालंदा विश्वविद्यालय हर कोई पढ़ने ही नहीं जाता था, बल्कि अभूतपूर्व संरचना देखने भी लोग पहुंचते थे, उसी तरह मार्तंड सूर्य मंदिर के साथ भी था. वहां हर कोई पूजा करने ही नहीं जाता था, ​बल्कि मंदिर की शोभा, संरचना और कलाकृतियां देखने भी लोग पहुंचते थे. उन्होंने बताया कि मंदिर को कश्मीर में लोग शैतान की गुफा के नाम से जानते हैं. आइए जानते हैं इस मंदिर की कहानी.

कश्मीर का गौरव हुआ करता था मार्तंड मंदिर

स्थापना कश्मीर के महान राजा ललितादित्य मुक्तिपीड ने की थी. यह मंदिर अनंतनाग से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मंदिर की संरचना 8वीं शताब्दी की बताई जाती है, लेकिन दावा किया जाता है कि यह मंदिर इसके भी कई सौ वर्षों पूर्व से ही था. इस मंदिर की महत्ता मराठी साहित्य ‘मार्तंड महात्मय’ में भी मिलती है. मुस्लिम सुल्तान सिकंदर शाह मीरी ने सैफुद्दीन के साथ मिल कर इसे ध्वस्त करवाने की कोशिश की. हालांकि वह पूरी तरह सफल नहीं हो पाया. मंदिर को ध्वस्त करने में कई बरस लगे.

कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि हिंदू सम्राटों द्वारा बनवाए गए कई मंदिर कश्मीर में हुआ करते थे. सिकंदर शाह मीरी ने कश्मीर से हिंदुओं और उनके सांस्कृतिक प्रतीकों को मिटाने के उद्देश्य से मंदिरों को भी तोड़ना शुरू कर दिया. सिकंदर शाह मीरी ने उनमें से कई मंदिरों को ध्वस्त कर के उन्हीं ईंट-पत्थरों का इस्तेमाल कर मस्जिदें बनवाई. इसी क्रम में सूर्य मंदिर के साथ भी उसने यही करना चाहा.

मंदिर ध्वस्त करने में लग गए कई बरस

कार्कोट राजवंश के बाद उत्पल राजवंश के दौर में भी मार्तंड मंदिर का वैभव भी सु​रक्षित रहा. हालांकि 14वीं शताब्दी आते-आते मुस्लिम प्रचारकों पर विश्वास करने की वजह से हिंदू राजाओं का पतन शुरू हो गया. 14वीं सदी की शुरुआत में कश्मीर के शासक राजा सहदेव थे, जिनके दो विश्वासपात्र थे- लद्दाख में बौद्ध धर्म के राजकुमार रिंचन शाह और दूसरे स्वात घाटी से आए मुस्लिम प्रचारक सिकंदर शाहमीर. इसी दौर में मंगोल आक्रमणकारी डुलचू ने 70 हजार सैनिकों के साथ कश्मीर पर हमला किया और अपनी जान बचाने के लिए राजा सहदेव को जम्मू के किश्तवाड़ जाना पड़ा.

डुलचू ने कश्मीर में हिंदुओं को अपना गुलाम बनाना शुरू कर दिया. हालांकि कहा जाता है कि उस समय आई प्राकृतिक आपदा में वह अपने कई सैनिकों के साथ मारा गया. इधर, मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए कश्मीर पर कब्जा करने का ये मुफीद समय था और उन्होंने ऐसा ही किया.

हिंदुओं का नरसंहार और मंदिरों का विध्‍वंश

सिकंदर शाहमीर ने लद्दाख के राजकुमार को भी कश्मीर की गद्दी से हटा दिया और खुद शासक बन गया. 1417 में इस गद्दी पर बैठा- सिकंदर जैनुल आबिदीन. उसने हिंदुओं से या तो ​इस्लाम स्वीकारने या कश्मीर छोड़कर भागने को कहा. नहीं मानने पर नरसंहार शुरू करवा दिया. जैनुल को बुतशिकन भी कहा गया, जिसका अर्थ होता है, मूर्तिभंजक यानी मूर्ति तोड़ने वाला. जैनुल आबिदीन ने मार्तंड मंदिर पर कई बार हमला किया और 15वीं सदी में इस मंदिर को तोड़कर इसमें आग लगा दी गई.

बताया जाता है कि पूरे एक साल तक मार्तंड सूर्य मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली. इसके बाद उसने इसकी जड़ों को खोद, उनमें से पत्थर निकाल कर लकड़ियां भर दी गईं. इसके बाद लक​ड़ियों में आग लगा दी गई. इस तरह मार्तंड सूर्य मंदिर को ध्वस्त किया गया. अभी भी इस मंदिर के अवशेष मौजूद हैं. एएसआई ने मंदिर के ​जीर्णोद्धार के नाम पर कुछ प्रयास किए, जो कि नाकाफी साबित हुए.

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