कोरबा : ग्रामीण पत्रकार एफआईआर की राडार पर,मिलने लगी धमकियां

कोरबा, 9 मार्च (वेदांत समाचार)। ग्रामीण अंचल के कुछ पत्रकार एफआईआर की राडार पर हैं। इनके विरुद्ध देर-सबेर एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है। कुछ इस तरह की धमकियां इन्हें मिलने लगी है।


दरअसल मामला पटवारियों से जुड़ा हुआ है। कुछ पटवारियों के खिलाफ लिखित में शिकायत अपना काम ना होने से परेशान ग्रामीणों ने की है। इसकी खबर प्रकाशित/प्रसारित होने के साथ-साथ वे लोग जो इस बारे में बात मीडिया तक पहुंचा रहे हैं अथवा किसी न किसी मीडिया का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें अब धमकी दी जा रही है कि एससी-एसटी एक्ट में एफआईआर करा दिया जाएगा। ये लोग मुख्यालय में नहीं रहने, काम करने के एवज में रुपये मांगने, समय पर दफ्तर नहीं खुलने/कार्यालय नहीं आने संबंधी शिकायत व खबर प्रकाशन से नाराज हैं। संबंधित पटवारियों का तर्क है कि आवेदक उनके पास सीधे नहीं आते लेकिन आवेदकों कहना है कि पूर्व से उनके आवेदन लंबित पड़े हुए हैं और निराकरण नहीं हो रहा है। अब लगता है कि पटवारी बदल जाने पर आवेदक को नए सिरे से फिर से आवेदन करने की जरूरत होगी, तब उसकी समस्या का समाधान होगा। इधर सरकार द्वारा सप्ताह में अब 2 दिन का अवकाश देने के साथ ही कार्य अवधि प्रातः 10 से शाम 5:30 बजे तक निर्धारित कर दी गई है लेकिन ग्रामीण अंचल में अक्सर पटवारियों के दफ्तर 11 बजे तक भी नहीं खुल पाते हैं। कुछ ऐसे ही पटवारी दफ्तरों की तस्वीर के साथ जानकारी प्रसारित की गई। खटपट न्यूज़ ने इसे प्रमुखता से सामने भी लाया। दफ्तरों का समय पर नहीं खुलने का सिलसिला जहां सोमवार को देखा गया वहीं मंगलवार को भी कुछ पटवारी दफ्तर समय पर नहीं खुले पाए गए।दूसरी बात यह भी है कि ग्रामीण अक्सर अपने समाधान के लिए/ निराकरण ना होने पर मीडिया से गुहार लगाता है। ग्रामीण अंचल में कार्यरत प्रतिनिधियों के पास अक्सर पटवारियों के नंबर होते हैं और वे मीडिया से जुड़े होने के नाते निडर हो कर(क्योंकि आम ग्रामीण बात करने में झिझकते हैं) ग्रामीण की ओर से यह जानकर उन्हें बताने की कोशिश करते हैं कि पटवारी अपने दफ्तर कब तक आ पाएंगे लेकिन इसका गलत अर्थ निकाल कर अब धमकी-चमकी देना शुरू कर दिया गया है। मीडिया कर्मियों का इरादा भले ही सही हो लेकिन उसे गलत ठहराने की कवायदे होने लगी हैं। पटवारियों का कहना है कि सरपंच या कोटवार के पास भी फरियादी जा सकता है लेकिन सवाल यही है कि कोटवार या सरपंच वह काम नहीं कर सकते जो पटवारी को करना है और पटवारी से यह पूछना कि कब आएंगे, कब तब काम होगा, क्या यह गुनाह हो गया? अपनी छवि अच्छी बनाने के चक्कर में मीडिया कर्मियों को दी जा रही धमकी के अनेक मायने भी निकाले जा रहे हैं। संभवत यह भी मकसद है कि अपने खिलाफ कोई भी शिकवा-शिकायत या खबर छपने न दी जाए और इसके लिए रास्ता है कि मीडिया कर्मियों पर नाहक परेशान करने का और जातिगत एफआईआर दर्ज कराने का काम किया जाए। इस बारे में जिला प्रशासन को संज्ञान लेना चाहिए।