पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) ने 33 साल पुराने रोड रेज केस में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हलफनामा दाखिल किया है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगी. इसमें उन्होंने अपने खिलाफ पुनर्विचार याचिका को खारिज करने की मांग की है. हलफनामा में सिद्धू ने कहा है कि फैसले पर पुनर्विचार के लिए कोई वैध आधार नहीं है. कोई हथियार बरामद नहीं हुआ, कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी. घटना को 3 दशक से अधिक समय बीत चुका है. पिछले 3 दशकों में उनका बेदाग राजनीतिक और खेल करियर रहा और सांसद के रूप में बेजोड़ रिकॉर्ड है.
सिद्धू बोले कि उन्होंने लोगों के भले के लिए भी काम किया. जिन लोगों को आर्थिक मदद की जरूरत थी, उनकी मदद के लिए परोपकार के कार्य किए. उन्होंने कहा कि वो कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं. उनको आगे सजा नहीं मिलनी चाहिए. अदालत ने 1000 रुपये जुर्माने की जो सजा दी थी, वही इसके लिए काफी है. सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि सिद्धू को जेल की सजा दी जाए या नहीं. जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल की स्पेशल बेंच सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट पीड़ित परिवार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करेगा.
क्या था मामला
बता दें कि 15 मई, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को 1988 के रोड रेज मामले में मात्र 1,000 रुपये के जुर्माने के साथ छोड़ दिया था. इसमें पटियाला निवासी गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने सिद्धू को स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दोषी ठहराया था और उन्हें 3 साल की जेल की सजा सुनाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 30 साल से अधिक पुरानी घटना बताते हुए 1000 जुर्माने पर छोड़ दिया था. भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (जान बूझकर चोट पहुंचाने के लिए दंड) के तहत अधिकतम एक साल की कैद या 1000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में सिद्धू को दोषी ठहराए जाने पर लगाई रोक
अभियोजन के अनुसार, सिद्धू 27 दिसंबर, 1988 को पटियाला के शेरनवाला गेट चौराहे के समीप सड़क के बीच खड़ी जिप्सी में बैठे थे और संबंधित बुजुर्ग एवं दो अन्य पैसे निकालने के लिए बैंक जा रहे थे. जब वे लोग चौराहे पर पहुंचे तब मारुति कार चला रहे गुरनाम नामक एक व्यक्ति ने सिद्धू से जिप्सी को बीच सड़क से हटाने को कहा. इस पर दोनों पक्षों में गर्मागर्म बहस हो गई. निचली अदालत ने सितंबर 1999 में सिद्धू को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया था. शीर्ष अदालत ने सिद्धू की अपील पर कहा था कि गुरनाम सिंह की मौत की वजह के संबंध में मेडिकल साक्ष्य ‘बिल्कुल अस्पष्ट’ हैं. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 2007 में सिद्धू को दोषी ठहराए जाने पर रोक लगा दी थी.
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