यहां मुर्दे के साथ नहीं जलाया जाता कफन, पौधों की सुरक्षा के लिए करते हैं उपयोग

बालोद। इंसान के जिंदा रहते उनके कपड़ों का उपयोग किया जाता है, और जैसे ही मौत हो जाती हैं तो उसके सारे कपड़ों को लाश के साथ ही जला दिया जाता है. लेकिन बालोद जिले के मचौद गांव में इंसान की मौत के बाद उनके सारे कपड़ों और कफन का उपयोग पौधों को संरक्षित करने के लिए किया जा रहा है.

दरअसल, मचौद गांव में वहां के जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों के सहयोग से लगभग तालाब किनारे और सड़क के आस-पास 3200 पौधे लगाए गए हैं. जिसे सुरक्षित रखने के लिए लकड़ी से बना हुआ ट्री गार्ड लगाया गया है. लेकिन ट्री गार्ड होने के बावजूद बकरियां और अन्य जानवर पौधों को नुकसान पहुंचाते थे. जिसे देख वहां के सरपंच, सचिव व रोजगार सहायक ने कफन से पौधों को ढकने की योजना बनाई.

लाश के साथ कपड़ों को जलाने से एक तरफ जहां पर्यावरण प्रदूषित होता है तो वहीं दूसरी तरफ जमीन को भी काफी नुकसान होता है. इसी बात का ख्याल रखते हुए मचौद गांव के जनप्रतिनिधियों ने कफन का उपयोग पौधों की सुरक्षा के लिए उपयोग में लाने की योजना तैयार की. अब उस गांव और आसपास के गांव में अगर किसी की मौत हो जाती है तो उसके कपड़े और कफन को इकट्ठा कर जलाने के बजाय पौधों को ढकने के लिए किया जाता है. इससे पौधे तक सूर्य की रोशनी भी पहुंचती है और सुरक्षित रहते हैं.

जनप्रतिनिधियों के इस प्रयास को देख ग्रामीण भी सराहना करते हुए उनका सहयोग कर रहे हैं. मचौद गांव के जनप्रतिनिधियों का यह प्रयास अन्य गांव के लोगों के लिए भी एक मिसाल है. अगर हर कोई कपड़ों को जलाने के बजाय पौधों को जिंदा रखने के लिए उपयोग करें तो भविष्य में प्राणवायु की भी कमी नहीं होगी.

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