जांजगीर चांपा के प्रेम मंदिर में वृंदावन धाम की तर्ज पर होगी पांच देव की प्राण-प्रतिष्ठा

जांजगीर चांपा,14 फरवरी (वेदांत समाचार)। वैसे तो 14 फरवरी को प्रेम दिवस के रूप में मनाने की होड़ मची हुई है. युवा वर्ग पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण का इस दिवस को वैलेंटाइन डे के रूप मानते है, लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार 14 फरवरी तेरस को तिथि को होने से बहुत पुण्य तिथि माना जाता है. इस तिथि को जांजगीर चांपा जिला के खोखसा ओवर ब्रिज के पास वृंदा वन धाम के तर्ज पर प्रेम मंदिर में पांच देव की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. इस अवसर पर जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी पुरी महराज भी शामिल होंगे और धर्म सभा को संबोधित करेंगे.

जांजगीर चांपा जिला के खोखासा रेलवे फाटक के पास वृंदावन धाम प्रेम मंदिर के तर्ज पर श्याम प्रेम मंदिर का निर्माण किया गया है. मंदिर में खाटू वाले श्याम बाबा के साथ तिरुपति बालाजी, सालासर बालाजी, जीण माता और शिव पार्वती की मूर्ति स्थापित किए जाने की तैयारी शुरू हो गई है. मंदिर के आचार्य झम्मन प्रसाद शास्त्री ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए पांच देवों की पांच दिन तक होने वाली पूजा आराधना की विधि विधान पर चर्चा की.

उन्होंने बताया कि सनातन धर्म की रक्षा, संस्कार, शिक्षा और आध्यात्म के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए धार्मिक स्थल को महत्व पूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के लिए हिंदू धर्मावलांबियों को समय देने की जरूरत है. अगर कोई लालच और झूठ फरेब से हिंदुओ को धर्म परिवर्तन करने की कोशिश करता है तो हिंदुओ को चाहिए की रोज मंदिर जाकर 1 रुपए का दान करें. उस एकत्र राशि का शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले जरूरत मंद को सेवा कर गरीब, लाचार लोगों के धर्म परिवर्तन से रोकने के लिए आह्वान किया. साथ ही सरकार की नीतियों को भी इसके लिए जिम्मेदार बताया. सरकार कोई भी हो धर्म के नाम पर राजनीति नहीं करने की बात कही.



14 फरवरी को होगा देवी देवता का प्राण प्रतिष्ठा


वृंदा वन के तर्ज पर जांजगीर में बने प्रेम मंदिर में 14 फरवरी को देवी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. इसके लिए मंदिर को कोलकाता के गुलाब, गेंदा और सेवंती फूलों से सजाया जा रहा है. आचार्य झम्मन प्रसाद शास्त्री ने बताया कि जिस तरह लोग पश्चिमी सभ्यता को अपना रहे है और अपने धर्म को भूलते जा रहे है. यहीं लोगों के कष्ट का मूल कारण है. पश्चिमी सभ्यता में न तो संस्कार है और न ही सत्कार है. फूहड़ता से भरा हुआ है. उन्होंने कहा कि अगर अपना जीवन धन्य करना है तो ईश्वर से निश्छल प्रेम करने का आह्वान करें.