कृष्‍ण भक्‍त‍ि ही नहीं शन‍ि प्रकोप मुक्‍त‍ि का धाम भी है मथुरा, कोकिलावन की पर‍िक्रमा राह बनाती है आसान

उत्‍तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की धरती पर पग-पग में धर्म, संस्‍कृत‍ि, सभ्‍यता की छठा ब‍िखरी हुई है. पूरब से लेकर पश्‍च‍िम और उत्‍तर से लेकर दक्ष‍िण तक उत्‍तर प्रदेश की धरती अपने अंदर कई रहस्‍य, कथा, चमत्‍कार और अलौक‍िकता समेटे हुए है. इसमें आपने मथुरा (Mathura) के बारे में तो आपने सुना ही होगा. दुन‍ियाभर से लोग मथुरा में श्री कृष्‍ण (Lord Krishna) भक्‍ति‍ के ल‍िए पहुंचते हैं, लेक‍िन इसी मथुरा की एक दूसरी पहचान भी है. मथुरा कृष्‍ण भक्‍त‍ि ही नहीं शन‍ि प्रकोप मुक्‍त‍ि का धाम भी है. उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद की कोशी  से 6 किलोमीटर दूर कोकिलावन में सिद्ध शनिदेव का प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर के बारे में प्राचीन मान्यता है कि शनिदेव के रूप में भगवान श्री कृष्ण विद्यमान रहते हैं.

कोक‍िलावन की 3 क‍िलोमीटर पर‍िक्रमा राह आसान बना देती है

मथुरा के कोसी के कोकिलावन में स्थित सिद्ध शनिदेव के मंदिर के विषय में पौराणिक मान्यता प्रचलित है. कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति शनिदेव के प्रकोप से पीड़ित है, वह यहां पर आकर अगर कोकिलावन की 3 किलोमीटर की परिक्रमा  कर लेता है, तो उसके ऊपर से शनिदेव का प्रकोप हट जाता है. इस मान्‍यता के अनुरूप शन‍ि देव से पीड‍़‍ित वन की परिक्रमा करने के ल‍िए पहुंचते हैं. ज‍िसके तहत यहां पर हर शनिवार को भक्तों की भारी भीड़ दर्शन पूजन के लिए आती है.

श्री कृष्‍ण ने शन‍ि देव को कोयल रूप में द‍िए थे दर्शन

इस मंदिर के बारे में कई प्रसंग प्रचलित है. कहा जाता है क‍ि शनि देव ने भगवान श्री कृष्ण के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने शनि देव को कोयल रूप में दर्शन दिए थे. इसलिए इस स्थान को कोकिलावन नाम से भी जाना जाता है. इस कथा के अनुसार मथुरा में भगवान श्री कृष्ण का जब जन्म हुआ, तब स्वर्ग से सभी देवताओं के साथ शनिदेव भी कृष्ण के बालस्वरूप को देखने के लिए आए थे. उस समय नंद बाबा ने भय के कारण शनि देव को दर्शन कराने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि उनकी दृष्टि पढ़ते ही कृष्ण के साथ कुछ अमंगल हो सकता है. फिर शनिदेव ने नंद गांव के पास एक वन  में जाकर तपस्या की. शनि  की तपस्या से खुश होकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कोयल रूप में दर्शन दिया.

यहां दर्शन से शनिदेव की वक्रदृष्‍ट‍ि से म‍िलती है मुक्‍ति‍

इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि अपने आराध्य देव की आज्ञा के अनुसार शनि देव यहां पर विराजमान हैं. इसी कारण जो भी भक्त यहां पर शनि देव के दर्शन करेगा उस पर वक्र दृष्टि नहीं पड़ती है. यहां पर भक्तों को पहले कोकिलावन की सवा कोष की परिक्रमा करनी पड़ती है. फिर वह सूर्य कुंड में स्नान करके शनिदेव की पूजा करते हैं. ऐसा करने से उनके ऊपर शनि का प्रकोप पूरी तरह से समाप्त हो जाता है.

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