HZL Disinvestment: जब बेशकीमती कंपनी को बेच दिया गया था महज 749 करोड़ रुपये में!

नई दिल्ली 08 फ़रवरी (वेदांत समाचार)। हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (Hindustan Zinc Limited) विनिवेश का मामला (HZL Disinvestment Case) एक बार फिर से सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कल ही सरकार ने कहा है कि इस कंपनी को बेचने के मामले में सीबाीआई ने सुप्रीम कोर्ट को गलत सूचना दी थी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की सरकार ने कंपनी के 26 फीसदी शेयर 749 करोड़ रुपये में Sterlite Opportunities and Ventures Limited (SOVL) को बेच दिया गया था। वह भी कंपनी के मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ। एसओवीएल अनिल अग्रवाल से जुड़ी कंपनी है।

क्या है मामला
तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2001 में घाटे में चलने वाली सरकारी कंपनियों के विनिवेश का कार्यक्रम (PSU Disinvestment Programme) शुरू किया था। इसी के तहत हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को बिक्री के लिए रखा गया था। उस पर अप्रैल 2002 में, SOVL ने कंपनी के शेयरों के अधिग्रहण के लिए एक खुली पेशकश की थी। भारत सरकार ने एसओवीएल को हिंदुस्तान जिंक के 26 फीसदी शेयर, मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ 749 करोड़ रुपये में सौंप दिया था। बाद में एसओवीएल ने एचजेडएल के 20% अतिरिक्त शेयर पब्लिक से खरीद लिया। अगस्त 2003 में, एसओवीएल ने कॉल ऑप्शन क्लॉज का उपयोग कर भारत सरकार से पेडअप कैपिटल का 18.92 फीसदी अतिरिक्त शेयर खरीद लिया। इसके साथ ही हिंदुस्तान जिंक में SOVL की हिस्सेदारी बढ़कर 64.92% हो गई। बताया जाता है कि इस तरह से 64 फीसदी शेयर खरीदने में एसओवीएल को महज 1500 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ा। जबकि उस समय इसका बाजार मूल्य करीब एक लाख करोड़ रुपये था। इस कंपनी में अभी भारत सरकार की हिस्सेदारी 29.54% है।

अप्रैल 2011 में हो गया विलय
SOVL का अप्रैल 2011 में Sterlite Industries India Ltd में विलय कर दिया गया था। अगस्त 2013 में सेसा स्टरलाइट लिमिटेड बनाने के लिए स्टरलाइट इंडस्ट्रीज का सेसा गोवा लिमिटेड के साथ विलय हो गया। अप्रैल 2015 में सेसा स्टरलाइट का नाम बदलकर वेदांत लिमिटेड कर दिया गया। इस तरह से अब हिंदुस्तान जिंक अब वेदांत लिमिटेड की सहायक कंपनी है।

117 मिलियन टन रिजर्व मिनरल का खुलासा नहीं
मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक जब सरकार ने महज 749 करोड़ रुपये में इस कंपनी का 26 फीसदी शेयर बेच दिया था, उसी समय उसका वैल्यूएशन 39,000 करोड़ रुपये बैठ रहा था। यही नहीं, बताया जाता है कि डील के वक्त कंपनी के पास 117 मिलियन टन खनिज रिजर्व में था। इसका खुलासा सौदे में हुआ ही नहीं था। बाद में, लंदन मैटल एक्सचेंज ने 117 टन खनिज की कीमत 60 हजार करोड़ आंकी थी।

बामनिया कला माइंस व कायड़ प्रोजेक्ट भी छुपाने का आरोप
मीडिया में ऐसी रिपोर्ट आई थी कि 40 हजार करोड़ रुपए की सिंदेसर माइंस की तरह उदयपुर के पास बामनिया कला माइंस और अजमेर के पास कायड़ प्रोजेक्ट भी टेंडर डॉक्युमेंट में नहीं थे। डील से पहले की बैलेंस शीट बताती हैं कि ये दोनों असेट्स भी कंपनी की थी, जिनकी कीमत नहीं लगाई गई। इनमें से कायड़ प्रोजेक्टर में तो 2002 में ड्रिलिंग भी चल रही थी और बामनिया कला माइंस में स्टरलाइट ने बाद में काम शुरू किया। यह मुफ्त में ही एसओवीएल को मिल गया।

और भी थी संपत्ति
राजस्थान, आंध्रप्रदेश और तत्कालीन बिहार बाद में झारखंड, तीन राज्यों में काम करने वाली हिंदुस्तान जिंक के देश भर में ऑफिस, पावर प्लांट और जमीनें भी थीं। करोड़ों रुपए का स्क्रैप भी था। इसका भी वैल्यूएशन कम करने के आरोप लगे हैं। इन सभी की कीमत करीब 20 हजार करोड़ तक आंकी गई है।