सेंट्रल जेल में 4 साल से बंद है बंगाल के मुर्शिदाबाद का नूर मोहम्मद, परिवार वालों ने मान लिया था मृत

पश्चिम बंगाल (West Bengal) के मुर्शिदाबाद (Murshidabad District) जिले बोरवा थाना के नूर मोहम्मद पिछले पांच सालों से लापता थे. परिवार वालों ने काफी खोजखबर ली. थाने में शिकायत भी दर्ज कराई गयी, लेकिन जब वह नहीं मिले, तो परिवार वालों ने हार मान ली और उन्हें मृत मान लिया, लेकिन अचानक ही परिवार वालों को जानकारी मिली कि उनका पिता मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल (Muzaffarpur Central Jail) में बंद हैं और जीवित हैं. इसके बाद परिवार वालों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह पिछले चार साल से मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं. नूर मोहम्मद के पुत्र जलील खान अपनी पत्नी बच्चों के साथ मुजफ्फरपुर पहुंच चुके हैं. जेल में बंद अपने पिता से विडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मुलाकात भी की. मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल के उपाधीक्षक सुनील कुमार मौर्य ने कहा कि नूर मोहम्मद जेल में ही है. अधिवक्ता और उसके परिजन मिलने आए हुए थे. इधर, अधिवक्ता ने कहा कि अब जमानत की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार परिवार वाले पांच साल से जिसे मृत समझ रहे थे. वह मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में बंद है. घरवालों ने तो मृत मानकर आस ही छोड़ दी थी. लेकिन, अचानक से उनकी जिंदगी में भूचाल आ गया. जब पता लगा कि वे जीवित हैं और जेल में बंद हैं. पिता को जिंदा देखने के बाद परिवार के लोग खुशी से झूम उठे. अब नूर मोहम्मद के जमानत की प्रक्रिया शुरू की जा रही है.

बच्चा चोरी के आरोप में किया गया गिरफ्तार

दरअसल, चार साल पूर्व जिले के हथौड़ी थाना की पुलिस ने उसे बच्चा चोरी के मामले में गिरफ्तार कर जेल भेजा था. इसके बाद से वे जेल में ही हैं. आजतक कोई भी खोजखबर लेने नहीं गया. क्योंकि परिजन को उनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी, वे लोग तो उन्हें मृत समझकर जीवन जीने लगे थे. अधिवक्ता होमा परवीन ने बताया कि DLSA (जिला विधिक सेवा प्राधिकार) द्वारा उन्हें तीन महीने पूर्व नूर मोहम्मद के केस की पैरवी करने को कहा गया था. इसके बाद उन्होंने केस से सम्बंधित कागजातों को खंगाला. इसमे सबसे बड़ी परेशानी थी कि नूर मोहम्मद के राज्य का नाम नहीं लिखा हुआ था. इसके बाद वे जेल में उससे मिलने गयी, लेकिन, उसकी भाषा न तो वे समझ पा रही और न उनकी भाषा को नूर समझ रहा था. फिर भी वह जो बोल रहा था. उसे वह डायरी में लिख रही थी. इस दौरान वह रोने भी लगा था.

अधिवक्ता की मदद से परिजनों को मिली जानकारी

अधिवक्ता ने बताया कि उन्होंने और भी कई माध्यम से जानकारी जुटाई उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह कौन सी भाषा बोल रहा है. किसी ने त्रिपुरा, तो किसी ने असम और पश्चिम बंगाल का भाषा बोलने की बात बताई. वहीं कुछ ने कहा कि वह आतंकवादी है, लेकिन, उन्होंने खोजबीन जारी रखा. अधिवक्ता ने इसके बाद इंटरनेट पर खंगालना शुरू किया. इसी दौरान उसके सही पता मिल गया. इसके बाद उन्होंने वहां के प्रशासन से संपर्क किया. फिर बोरवा थानेदार से बात की. वहां से उसके घर का सही पता और परिजन का मोबाइल नम्बर उन्हें मिल गया.

मृत पिता की जानकारी मिलते ही खुशी से झूम उठा परिवार

अधिवक्ता ने नूर के परिजन से बात की और पूरी घटना से अवगत कराया. पिता के जीवित होने की बात सुनते ही जलील खान की आंखों में आंसू आ गए, इसके बाद वह अपने बच्चों और परिवार संग मुजफ्फरपुर आया. अधिवक्ता से मुलाक़ात की. इसके बाद जेल पर जाकर पिता से मिला. नूर के बेटे ने बताया कि पांच साल पहले उनके पिता घर से भटक गए थे. वे मानसिक रूप से स्वस्थ्य नहीं थे. हो सकता है कि वे भटक कर मुजफ्फरपुर पहुंच गए हो. यहां से पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

[metaslider id="122584"]
[metaslider id="347522"]