पहले दिन के खेल के अंत में 98 रन पर नाबाद रहे बल्लेबाज मोहम्मद अजहरुद्दीन (Mohammed Azharuddin) जल्दी सो गये जबकि कानपुर (Kanpur) से कुछ ही किलोमीटर दूर 37 साल का उनके एक कट्टर प्रशंसक मोहम्मद मेराज शम्सी ने पूरी रात अपने बिस्तर पर करवटें बदलते हुए काटी. जब इस बैग निर्माता से रहा नहीं गया तो उसने अगली सुबह भारतीय टीम (Indian Cricket Team) के होटल में अज़हरुद्दीन को फोन किया और 1 फरवरी, 1985 को अपना शतक पूरा करने की विनती की. पहले दिन का खेल खत्म होने के बाद अजहरुद्दीन को कई कॉल आए. सभी का एक ही अनुरोध था: कम से कम दो और रन बना कर अपनी सेंचुरी जरूर पूरी करें.
दरअसल, एक शतक से एक अनोखा रिकॉर्ड उनके नाम हो जाता – टेस्ट में पहली बार खेलते हुए तीन टेस्ट में लगातार तीन सेंचुरी मारने का रिकॉर्ड. 108 साल के टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में कोई भी इस ऊंचाई को नहीं छू पाया था. ये वो जमाना था जब भारत में मोबाइल फोन की शुरुआत अब भी करीब 10 साल दूर थी. उन दिनों प्रशंसक कॉल करते थे और बगैर लाग-लपेट के होटल में कॉल क्रिकेटरों के रूम में ट्रांसफर कर दिया जाता था.
1011वें टेस्ट में बना विश्व रिकॉर्ड
भारतीय क्रिकेट टीम में धमाकेदार एंट्री के केवल दो महीने बाद ही अज़हरुद्दीन अपने पहले दो टेस्ट में दो सेंचुरी मार कर बिल पोंसफोर्ड, डग वाल्टर्स और एल्विन कालीचरण के बाद ऐसा करने वाले चौथे बल्लेबाज बन गए. तीसरी सेंचुरी के साथ वो ऐसा रिकॉर्ड बनाते जो पहले किसी ने नहीं बनाया था जिससे उनके समर्थक परेशान थे.
ग्रीन पार्क में आम लोगों में घबराहट और उम्मीद साफ़ नजर आ रही थी. मगर अज़हरुद्दीन और दूर हैदराबाद में बैठे उनके पिता अजीजुद्दीन बिल्कुल शांत थे. सवाल था कि क्या अज़हरुद्दीन दूसरे दिन दो रन बनाएंगे? क्योंकि भारत पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला में इंग्लैंड से 2-1 से पीछे था और उसे एक जीत की दरकार थी.
फ़ोन पर अपने फैन्स से बात करने के बाद उस रात अज़हरुद्दीन जल्दी सोने चले गए और अच्छी नींद ली. दूसरी सुबह दिन के खेल के चौथे ओवर में अज़हरुद्दीन ने नील फोस्टर की गेंद को लेग साइड की तरफ मार कर दो रन बनाए और टेस्ट क्रिकेट के इतिहास के 1,011वें मैच में इतिहास रचा.
रिकॉर्ड का नहीं था पता, सिर्फ बैटिंग में दिलचस्पी
58 साल के अजहरुद्दीन ने अपने रिकॉर्ड की 37वीं वर्षगांठ पर एक विशेष इंटरव्यू में TV9 को बताया,
“पहले दिन खेलते वक्त मुझे बनने वाले रिकॉर्ड के बारे में पता नहीं था. जब मैं 98 रन बना कर नाबाद लौटा तब लोगों से पता चला कि अगर मैं दो रन और बना देता हूं तो बड़ा रिकॉर्ड बनेगा. मुझे केवल वहां जाकर बल्लेबाजी करने में दिलचस्पी थी. मुझे किसी रिकॉर्ड की चिंता नहीं थी.”
“मैं काफ़ी भाग्यशाली था कि टेस्ट मैच की शुरुआत करते हुए लगातार तीन टेस्ट में मैंने तीन सेंचुरी मारी. मेरे लिए उसके अलावा कुछ भी सोचना महत्वपूर्ण नहीं था. उस वक्त केवल भारत के लिए खेलना मेरे लिए महत्वपूर्ण बात थी,” ऑन साइड के मास्टर रहे स्टाइलिश बल्लेबाज ने कहा.
कोलकाता और चेन्नई में अपने पहले दो टेस्ट में अजहरुद्दीन ने पांचवें नंबर पर बल्लेबाजी की थी. हालांकि, कानपुर में श्रृंखला के पांचवें और अंतिम टेस्ट में उन्हें और दिलीप वेंगसरकर, जो नंबर 3 पर बल्लेबाजी कर रहे थे, से स्थान बदलने के लिए कहा गया. अज़हरुद्दीन ने कहा, “मैं उस स्थान पर बल्लेबाजी करके खुश था क्योंकि नंबर 3 पर दिलीप भाई की जगह लेना मेरे लिए एक बड़ी जिम्मेदारी थी जहां उन्होंने इतना अच्छा प्रदर्शन किया था.”
‘अच्छी फॉर्म में था, रन बनाना आसान था’
इयान बॉथम के दौरे से बाहर होने के निर्णय और ग्राहम गूच और जॉन एम्बुरे पर दक्षिण अफ्रीका के दौरे के कारण बैन के बाद डेविड गावर की इंग्लिश टीम में नॉरमन कोवान्स, नील फॉस्टर, पैट पोकॉक, फिल एडमंड्स और क्रिस काउड्रे शामिल थे. अजहरुद्दीन ने कहा,
“उनका अटैक अच्छा था. कानपुर की पिच पर गेंद घूम रही थी. यहां तक कि कोलकाता में भी, जहां मैंने दिसंबर में टेस्ट डेब्यू पर शतक बनाया था, गेंद काफी घूम रही थी. उन्हें कानपुर में तेज गेंदबाज रिचर्ड एलिसन को टीम में रखना चाहिए था. मगर उन्होंने दो स्पिनर, पोकॉक और एडमंड्स को चुना. चूंकि मैं अच्छे फॉर्म में था, इसलिए मेरे लिए रन बनाना आसान था.”
पांच फीट ग्यारह इंच लंबे बल्लेबाज के जेहन में ग्रीन पार्क के तब के हालात अब तक बिल्कुल साफ हैं. “विकेट डबल पेस्ड था. उस साल फरवरी में भी कड़ाके की ठंड पड़ी थी. औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण कानपुर की हवा में धुआं और धुंध बहुत अधिक थी. दिन में ही अंधेरा लगने लगता था.स्टेडियम में और उसके आसपास बहुत सारे पेड़ थे और कभी-कभी फील्डिंग करते वक्त गेंद को देखना तक मुश्किल हो जाता था. मगर चूंकि मैं अच्छे फॉर्म में था, मैं अच्छा खेलता गया,” अजहरुद्दीन ने पुरानी बातें याद की.
कब हुआ शतक लगाने का यकीन?
अजहरुद्दीन को कब यह विश्वास होने लगा कि वह शतक पूरा कर लेंगे? “मैं बहुत खुल कर खेल रहा था मगर पेस बॉल पर नहीं क्योंकि गेंद काफी घूम रही थी. लगता है 80 के स्कोर के आसपास मुझे एहसास हुआ कि मैं एक और शतक बना सकता हूं. मगर उस वक्त भी मैं दबाव में नहीं आया. शायद इसलिए सब कुछ सामान्य रूप से होता चला गया,” उन्होंने तर्क दिया.
एडमंड्स समेत अंग्रेज गेंदबाजों ने एक वक्त अज़हरुद्दीन समेत भारतीय बल्लेबाजों को बिलकुल बांध दिया. पहले दिन के आखिरी घंटे में अज़हरुद्दीन सिर्फ आठ रन बना सके. वो मानते हैं कि अगर उन्होंने रन रेट तेज कर दिया होता तो वह पहले दिन ही शतक पूरा कर सकते थे. “जब मैं पहले दिन 98 रन पर था तो अगर मैं स्कोरिंग में तेजी लाता तो बेहतर होता,” अज़हरुद्दीन ने कहा.
शतक पूरा करते ही आया खास फोन कॉल
इसके बावजूद उस मुकाम को हासिल कर अजहरुद्दीन काफी खुश थे. “स्टेडियम में मौजूद कई लोग मुझे बधाई देने के लिए मैदान में दौड़ गए. वह एक अविश्वसनीय समय था. हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि बाहर निकलने के बाद मुझे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का फोन आया. लंच टाइम में राजीव गांधी का फोन रिसीव करने के लिए मैं मैदान से प्रेस बॉक्स तक पहुंचा,” उस पल को याद करते हुए अज़हरुद्दीन गर्व महसूस करते हैं. उन्होंने कहा,
“प्रधानमंत्री ने कहा, ‘वेरी वेल डन’ और ‘आपने भारत के प्रत्येक नागरिक को गौरवान्वित किया है.’ उन्होंने मुझे शुभकामनाएं दीं. मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात थी. मैंने एक शतक जड़ा था. लेकिन प्रधानमंत्री का फोन आना बेहद गर्व का क्षण था.”
पिता ने फोन पर क्या कहा?
उसके बाद, अजहरुद्दीन को बधाई वाले कई फोन आए और कई सम्मान समारोहों में उन्होंने हिस्सा लिया.अजहरुद्दीन ने शाम को अपने पिता और परिवार के दूसरे सदस्यों से बात की. “उस समय हमारे पास घर पर टेलीफोन नहीं था. इसलिए मुझे नहीं पता कि मेरे पिता ने मुझसे कहां से बात की. उन्होंने कहा: ‘बहुत अच्छा खेले, बेटे’,” वे अभी भी याद करते हैं . “मैं हमेशा अल्लाह का शुक्रगुजार रहा हूं कि सब कुछ ठीक हो गया. मैंने कड़ी मेहनत की और उसका मुझे परिणाम मिला. मैंने उस मौके पर अपने दिवंगत नाना जी को याद किया. मेरे माता-पिता ने मेरे लिए प्रार्थना की और टीम के सभी खिलाड़ी और कोच बेहद मददगार रहे.”
अजहरुद्दीन के पिता ने बताया कि वे एक छोटे ट्रांजिस्टर पर कमेंट्री सुनते थे. “जब अज़हर 98 रन पर नाबाद था तब मैं घबराया नहीं. मुझे अल्लाह पर भरोसा और विश्वास था. जब अजहर हैदराबाद लौटा और उसे एक खुली जीप में हवाई अड्डे से विट्टलवाड़ी घर तक ले जाया गया तो पूरी गली लोगों से खचाखच भर गई थी,” 92 साल के अज़हरुद्दीन के पिता अजीजुद्दीन ने TV9 को बताया.
कानपुर में अजहरुद्दीन ने 122 (374 मिनट, 270 गेंद, 16×4) और नाबाद 54 रन बनाए. इससे पहले, उन्होंने कलकत्ता में तीसरे टेस्ट में अपने जीवन के पहले टेस्ट मैच में 110 (443 मिनट, 324 गेंद, 10×4) और मद्रास में चौथे टेस्ट में 48 और 105 रन बनाकर सीरीज में कुल 439 रन बनाए थे.
इस जादुई आंकड़े को छूने के सैंतीस साल बाद अज़हरुद्दीन कहते हैं कि वह एक सपने जैसा था. “यह एक सपना जैसा था, एक परी कथा थी. सब कुछ काफी आसान लग रहा था,” उन्होंने याद किया.
‘अजहरुद्दीन लवर्स क्लब’
शम्सी अजहरुद्दीन की जादुई बल्लेबाजी से इतने मंत्रमुग्ध हो गए कि उन्होंने कानपुर में एक ‘अजहरुद्दीन लवर्स क्लब’ बना लिया और उन्हें कई बार सम्मानित किया. “हमारे क्लब बनाने का कारण यह था कि हम अजहर की स्टाइलिश बल्लेबाजी से बहुत प्रभावित थे. साथ ही, वह वास्तव में एक अच्छे और मिलनसार व्यक्ति हैं. वह अपने प्रशंसकों के प्रिय हैं. कानपुर में उसके प्रशंसक उनसे बहुत प्यार करते हैं,” 74 साल के शम्सी ने TV9 को बताया.
31 जनवरी, 1985 की रात शम्सी के लिए सबसे ज्यादा असहज करने वाली रात थी. “मैंने बिस्तर पर बहुत बेचैनी से रात बिताई और अगली सुबह अजहरुद्दीन को उनके होटल के कमरे में फोन करने से मैं खुद को नहीं रोक पाया. मैंने उन्हें पिछली रात की अपनी स्थिति के बारे में बताया और उनसे किसी भी कीमत पर अपना शतक पूरा करने का अनुरोध किया जो अंत में उन्होंने किया भी,” शम्सी ने याद किया.
इस प्रकार, अजहरुद्दीन और उनके कानपुर प्रशंसकों के बीच एक लंबे समय तक चलने वाला बंधन बना. “मैं ग्रीन पार्क गया और रिकॉर्ड बन जाने के बाद अज़हरुद्दीन से मिला. हम करीबी दोस्त बन गए. हालांकि वह मुझसे बहुत छोटे थे. उन्होंने मुझे अपनी शादी में आमंत्रित किया और मैं हैदराबाद में उसमें शामिल भी हुआ. मैंने उन्हें एक विशेष डायल वाली दीवार घड़ी भेंट की,” शम्सी ने कहा.
कानपुर में हुआ खास सम्मान
कानपुर के पूर्व पत्रकार और बिजनेसमैन अनस बक़ाई भी अजहरुद्दीन की स्टाइलिश बल्लेबाजी के कायल हो गए. “जैसे आज विराट कोहली के कई प्रशंसक हैं, उस समय अजहर भाई को लेकर उनके प्रशंसकों में एक अलग ही उन्माद था. उन्होंने प्रशंसकों के क्लब का समर्थन किया और पत्रों के माध्यम से संदेश भेजते रहे. हमें क्लब का सदस्य होने पर गर्व महसूस हुआ. जब उन्हें 1986 में अर्जुन पुरस्कार और 1988 में पद्म श्री पुरस्कार मिला तो उन्हें विशेष रूप से कानपुर में आमंत्रित कर सम्मानित किया गया,” उन्होंने याद किया.
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