अब इंडिया गेट पर नहीं जलेगी अमर जवान ज्योति की लौ, क्या आप जानते हैं कितने साल पुराना है इसका इतिहास

दिल्ली के इंडिया गेट (India Gate) पर जल रही अमर जवान ज्योति  (Amar Jawan Jyoti) की लौ अब इंडिया गेट पर दिखाई नहीं देगी. आप अगर इंडिया गेट कभी गए हो या फिर तस्वीरों में देखा होगा कि इंडिया गेट पर एक स्मारक बना है, जिसमें एक लौ जलती रहती है और एक राइफल टंगी रहती है. अब ये हटा दिया जाएगा और इस लौ को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (National War Memorial) पर जल रही लौ में विलय किया जाएगा. यह लौ करीब 50 साल से इंडिया गेट पर जल रही है.

आप भी कई सालों से इस लौ को देख रहे हैं, लेकिन क्या आप इस अमर जवान ज्योति का इतिहास जानते हैं. आखिर कब इसकी शुरुआत की गई थी और किस याद में इसे बनाया गया था. अमर जवान ज्योति के युद्ध स्मारक में विलय होने से पहले जानते हैं कि अमर जवान ज्योति की क्या कहानी है…

कब बना था इंडिया गेट?

अमर जवान ज्योति के बारे में जानने से पहले आपको बताते हैं कि आखिर इंडिया गेट ही क्यों बनाया गया था. इंडिया गेट स्मारक ब्रिटिश सरकार द्वारा 1914-1921 के बीच अपनी जान गंवाने वाले ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों की याद में बनाया गया था. करीब अपने फ्रांसीसी समकक्ष के समान, यह उन 70,000 भारतीय सैनिकों को याद करता है, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के लिए लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी थी. स्मारक में 13,516 से अधिक ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम हैं जो पश्चिमोत्तर सीमांत अफगान युद्ध 1919 में मारे गए थे.

इंडिया गेट की आधारशिला उनकी रॉयल हाइनेस, ड्यूक ऑफ कनॉट ने 1921 में रखी थी और इसे एडविन लुटियन ने डिजाइन किया था. स्मारक को 10 साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने राष्ट्र को समर्पित किया था.

क्या है अमर जवान ज्योति की कहानी?

इंडिया गेट तो आजादी से पहले बन गया था और भारत को आजादी मिलने के बाद एक और स्मारक इसमें जोड़ा गया और वो है अमर जवान ज्योति. अमर जवान ज्योति बहुत बाद में जोड़ा गया था. दिसंबर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सैनिकों की देश को याद दिलाने के लिए मेहराब के नीचे ज्योति दिन-रात जलती है. बता दें कि 3 दिसंबर से 16 दिसंबर, 1971 तक भारत और पाकिस्‍तान के बीच युद्ध चला था. इस युद्ध में भारत के कई जवान शहीद हुए थे.

जब 1971 युद्ध खत्‍म हुआ तो 3,843 शहीदों की याद में एक अमर ज्‍योति जलाने का फैसला हुआ. तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को (भारत का 23वां गणतंत्र दिवस) अमर जवान ज्‍योति का उद्घाटन किया. यह काले रंग का एक स्मारक बना हुआ है, जिस पर अमर जवान लिखा हुआ है. इसके साथ ही इस पर L1A1 सेल्फ लोडिंग राइफल भी सीधी रखी हुई है, जिस पर एक सैनिक हेलमेट भी लगा हुआ है. साथ ही एक लौ जल रही है और वो आज तक लगातार जल रही थी. रिपोर्ट्स के अनुसार, 1971 के 2006 के बीच, ज्‍योति जलाने के लिए LPG का इस्‍तेमाल होता था और उसके बाद से सीएनजी इस्‍तेमाल की जानी लगी.

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