जबलपुर,19 (वेदांत समाचार)। बिजली कंपनी हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर बिजली सप्लाई बेहतर बनाने का दावा करती है लेकिन आंकड़ों की तस्वीर कुछ और बयां करती है। लाइन लास नियंत्रण में नहीं आ रहा है। जिसका खामियाजा आम उपभोक्ता को महंगी बिजली खरीदकर भुगतना पड़ता है। जबलपुर जिले में करीब 463 बिजली वितरण ट्रांसफार्मर की जरूरत है ताकि बेहतर सप्लाई उपभोक्ताओं को मिल सके, लेकिन योजना मंजूर होने के बाद भी कई जगह ट्रांसफार्मर नहीं लग पाए हैं। सबसे ज्यादा परेशानी नगर निगम सीमा में जुड़े 55 गांव में है जिन्हें अभी भी गांव की तरह ही बिजली सप्लाई मिल रही है।
दरअसल पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने वित्तीय वर्ष के लिए बजट प्रस्तावित किया था। इसमें ट्रांसफार्मर स्थापित करने के लिए करीब 11 करोड़ रुपये से ज्यादा का प्रविधान किया गया। इसमें 463 ट्रांसफार्मर शहर और ग्रामीण इलाकों में लगाए जाने थे। शहरी क्षेत्र में 102 ट्रांसफार्मर थे तथा जबलपुर ग्रामीण के लिए 361 ट्रांसफार्मर अतिरिक्त स्थापित करना था ताकि बिजली की गुणवत्ता बेहतर बनाई जा सके। कोरोना संक्रमण की वजह से बिजली कंपनी ऐसा नहीं कर पाई। कई ठिकानों में ट्रांसफार्मर की जरूरत के बावजूद नहीं लगाया गया है। इस वजह से उस क्षेत्र में बिजली का भार एक ट्रांसफार्मर में आ रहा है। ऐसे में कई ट्रांसफार्मर आए दिन खराब होते हैं उसमें वोल्टेज कम मिलता है।
ऐसे समझे बिजली ट्रांसफार्मर की जरूरत : बिजली का भरपूर लोड मिले इसके लिए वितरण ट्रांसफार्मर कम उपभोक्ताओं के बीच होना बेहतर रहता है। ट्रांसफार्मर की क्षमता से ज्यादा उपभोक्ता उससे जुड़ते हैं तो घरों में वोल्टेज की समस्या आती है। घरेलू बिजली उपकरण का लोड नहीं उठता। रात के वक्त जब बिजली का उपयोग अधिक होता है उस वक्त ज्यादा समस्या आती है। यदि ट्रांसफार्मर क्षमता से 60 फीसद भार पर रहेगा तो बेहतर बिजली की सप्लाई होती है।
नगर निगम सीमा में करीब 55 गांव जुड़े हैं। जिन्हें अभी तक पुरानी व्यवस्था के तहत बिजली वितरण किया जा रहा है। ग्रामीण आए दिन इस संबंध में बिजली विभाग से शिकायत करते हैं। करमेता, रैगवां, मेडिकल, तिलवारा, बिलेहरी, मानेगांव, पनागर, महाराजपुर, कछपुरा समेत कई इलाकों में बिजली सप्लाई को लेकर शिकायत मिल रही है। उपभोक्ता कहते हैं कि शहरी क्षेत्र में बिजली का उपयोग करने के बावजूद गांव की तरह कम गुणवत्ता वाली बिजली सप्लाई की जा रही है। शिकायतों तक का निराकरण समय पर नहीं होता है।
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