अखिलेश यादव ने क्यों बोला, अब वे किसी बीजेपी विधायक या मंत्री को पार्टी में नहीं लेने वाले

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) से ठीक पहले दर्जन भर भारतीय जनता पार्टी (BJP) से मंत्री और विधायकों का इस्तीफा और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में शामिल होना, बड़े बदलाव का संकेत है. हालांकि यह बदलाव उत्तर प्रदेश की सरकार में होगा या इन नेताओं के राजनीतिक करियर में इस पर जरूर सवाल उठते हैं. क्योंकि जितने भी विधायक मंत्री और नेता बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं, उन्हें दबी जुबान में राजनीतिक विश्लेषक दगे हुए कारतूस करार दे रहे हैं.

लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य या फिर दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं के पार्टी छोड़ने से बीजेपी को कुछ नुकसान नहीं होगा ऐसा भी साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता. क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सरकार पिछड़ों और दलितों के समर्थन से बनी थी और इन तबकों का समर्थन इन्हीं नेताओं की बदौलत बीजेपी के पास आया था. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कुर्मी-कोरी के 57 फ़ीसदी और गैर यादव ओबीसी जातियों के लगभग 61 फ़ीसदी वोट हासिल हुए थे. हालांकि ऐसा नहीं है कि बीजेपी छोड़ कर एसपी में शामिल हो रहे नेता सिर्फ बीजेपी का ही खेल बिगाड़ सकते हैं. बल्कि आने वाले समय में ये नेता अखिलेश यादव के गले की भी फांस बन सकते हैं, क्योंकि जब इतनी भारी तादाद में किसी पार्टी में पैराशूटर्स आते हैं तो उस पार्टी के पुराने नेताओं में खलबली मच जाती है.

दरअसल जिन-जिन विधानसभा सीटों से नेता बीजेपी छोड़ कर एसपी में शामिल हो रहे हैं, उन विधानसभा सीटों के एसपी के पुराने नेता जो बीते पांच वर्ष से अपनी जमीन तैयार कर रहे हैं उन्हें लग रहा है कि कहीं उनका हक मार कर अखिलेश यादव पार्टी की नींव तो मजबूत नहीं करना चाहते. इसके पहले कि पार्टी में और असंतोष बढ़े शनिवार को पीसी में अखिलेश यादव ने खुद ही कह दिया कि अब वे बीजेपी के किसी विधायक या मंत्री को अपनी पार्टी में नहीं लेने वाले हैं. भारतीय जनता पार्टी निश्चिंत होकर अपनी पार्टी के लोगों के टिकट काट सकती है.

दल बदल से दोनों पार्टियों में खलबली

इतने भारी मात्रा में जब एक पार्टी से नेता दूसरी पार्टी में जाते हैं तो खलबली दोनों पार्टियों में होती है एक तरफ जहां बीजेपी में इस बात की खलबली है कि चुनाव से ऐन पहले नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं और राज्य में उसकी छवि धूमिल हो रही है. तो वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी में इसलिए खलबली है कि जिन नेताओं ने बीते 5 वर्षों से विधानसभा चुनाव के लिए जम कर तैयारी की है अब वहां से समाजवादी पार्टी किसी पैराशूटर्स को टिकट ना दे दे. कहा जा रहा है कि जैसे ही स्वामी प्रसाद मौर्य समाजवादी पार्टी में शामिल हुए, वैसे ही सपा के नेता मनोज पांडे बार-बार लखनऊ का दौरा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि मैं ऊंचाहार से ही चुनाव लड़ूंगा. दरअसल उन्हें डर है कि कहीं ऊंचाहार सीट से समाजवादी पार्टी स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट को टिकट ना देदे.

स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने से कितना प्रभाव पड़ेगा

भारतीय जनता पार्टी से जो विधायक और मंत्री इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी में गए हैं, उनसे 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी पर कितना प्रभाव पड़ेगा, यह समझने के लिए हमें पिछले विधानसभा चुनाव पर नजर डालनी होगी. सबसे पहले बात स्वामी प्रसाद मौर्य की करते हैं. 5 बार से विधायक और दिग्गज ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के पडरौना विधानसभा क्षेत्र से पिछले तीन बार से विधायकी का चुनाव जीतते आ रहे हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1980 के दशक में की थी. पहली बार 1996 में बीएसपी के टिकट पर विधायक चुनकर आए और बीजेपी समर्थित मायावती की सरकार में मंत्री बने.

बीएसपी के साथ वह लगभग दो दशक तक जुड़े रहे. इसके बाद 2016 में बीजेपी में शामिल हो गए. और अब 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है. उन्होंने अपनी बीजेपी छोड़ने की वजह दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों और व्यापारियों की अनदेखी को बताया. हालांकि अंदरखाने से खबर है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी इसलिए छोड़ी क्योंकि बीजेपी उनके बेटे को टिकट देने को तैयार नहीं थी. दूसरी एक बड़ी वजह यह है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को पता है कि पडरौना विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर इस बार उनका जीतना थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि इस सीट पर लगभग 19 फ़ीसदी ब्राह्मण हैं और वह इस बार बीजेपी से नाराज चल रहे हैं.

वहीं मौर्य अब जब समाजवादी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ेंगे तो उन्हें मुस्लिम यादव और अन्य पिछड़ी जातियों का वोट मिलेगा, जिससे उनकी जीत के चांसेज बढ़ जाएंगे. दूसरे स्वामी प्रसाद मौर्य को पता था कि बीजेपी में जब तक केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी में हैं उन्हें वह जगह नहीं मिलेगी, जो कभी बीएसपी में उनको मिलती थी. इस वजह से भी उन्होंने बीजेपी छोड़कर सपा के साथ जाना उचित समझा. हालांकि अगर स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने से बीजेपी पर पड़ने वाले प्रभाव को देखें तो यह इतना खास नहीं दिखता है. क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे. जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में ही उत्तर प्रदेश की मौर्य आबादी ने बीजेपी का समर्थन किया था. और मौर्य समाज में आज भी स्वामी प्रसाद मौर्य से ज्यादा बड़ा चेहरा केशव प्रसाद मौर्य का है.

अन्य नेताओं का भी यही हाल है

बात करें दारा सिंह चौहान की तो यह योगी कैबिनेट में मंत्री थे, लेकिन दल बदलने में वह पुराने खिलाड़ी हैं. दारा सिंह चौहान बीजेपी में आने से पहले बीएसपी में थे और बीएसपी में आने से पहले वह सपा के राज्यसभा सांसद हुआ करते थे. दरअसल साल 2000 से 2006 तक वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने घोसी से बीएसपी के टिकट पर जीत दर्ज की. लेकिन 2014 में बीजेपी के हरिनारायण से हार गए. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने मऊ की मधुबन विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. अब फिर से दारा सिंह चौहान एसपी में शामिल हो गए और माना जा रहा है कि वह इस बार के विधानसभा चुनाव में मधुबन विधानसभा की जगह किसी और विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं और इसीलिए उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़कर एसपी के साथ जाने का फैसला किया.

धर्म सिंह सैनी 2017 में सहारनपुर की नकुड़ विधानसभा सीट से विधायक चुने गए, वह बीजेपी से पहले बीएसपी के टिकट पर विधायक रह चुके हैं और अब 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है. धर्म सिंह सैनी की छवि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में एक मजबूत ओबीसी नेता की है. लेकिन अब जब समाजवादी पार्टी में धर्म सिंह सैनी और इमरान मसूद जो कि दोनों एक ही जिले के कद्दावर नेता हैं, समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं. तो सवाल उठ रहा है कि आखिर अखिलेश यादव इस बार किसे चुनाव में उतारेंगे. क्योंकि धर्म सिंह सैनी, इमरान मसूद को 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में करारी मात दे चुके हैं.

सपा में शामिल हो रहे नए नेता अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ाएंगे

अब तक समाजवादी पार्टी में दूसरे राजनीतिक पार्टियों से दर्जन भर से ज्यादा नेता शामिल हो चुके हैं. इनमें सबसे ज्यादा बीजेपी के नेता हैं. पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, पूर्व मंत्री धर्म सिंह सैनी, कानपुर बिल्हौर से विधायक भगवती सागर, एमएलसी विनय शाक्य, शाहजहांपुर से विधायक रोशनलाल वर्मा, शिकोहाबाद से विधायक डॉ मुकेश वर्मा, बांदा से विधायक बृजेश कुमार प्रजापति, सिद्धार्थ नगर से विधायक और अपना दल के नेता चौधरी अमर सिंह, रामपुर से पूर्व विधायक अली युसूफ, सीतापुर से पूर्व मंत्री राम भारती, शाहजहांपुर से पूर्व विधायक नीरज मौर्य, हरपाल सिंह, मुरादाबाद से पूर्व विधायक बलराम सैनी, मिर्जापुर से पूर्व विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह पटेल, पूर्व राज्यमंत्री विद्रोही धनप, पूर्व मंत्री सुखराम चौधरी, पूर्व मंत्री अयोध्या प्रसाद पाल, पदम सिंह, बंसी सिंह पहलिया, अमरनाथ सिंह मौर्य, राम अवतार सैनी, आर के मौर्य, दामोदर मौर्य, बलराम मौर्य, देवेश शाक्य, महेंद्र मौर्य, रजनीकांत मौर्य, राम लखन चौरसिया, देवेश श्रीवास्तव और चंद्रपाल सिंह सैनी जैसे नेता अब तक समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं.

अब अखिलेश यादव के साथ समस्या इस बात की है कि आगामी विधानसभा चुनाव में अगर वह इन नेताओं को समाजवादी पार्टी से टिकट देते हैं तो फिर समाजवादी पार्टी के उन पुराने नेताओं का क्या होगा जो बीते 5 वर्ष से जमीन पर एसपी के लिए संघर्ष कर रहे हैं और अगर चुनाव से पहले पार्टी के अंदर ही मतभेद शुरू हो गए तो फिर समाजवादी पार्टी के लिए विधानसभा चुनाव में इन विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज करना मुश्किल हो जाएगा.