कोरोना महामारी (Corona pandemic) की शुरुआत से हवा से कोरोना संक्रमण फैलने का दावा किया जा रहा है, लेकिन अभी तक यह सवाल अनसुलझा था कि कोरोना वायरस एक बार हवा के संपर्क में आने के बाद कितनी देर तक अपना प्रभाव दिखा सकता है. बीते दिनों संपन्न हुए एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के अध्ययन में इस सवाल का जवाब सुलझाने का दावा किया गया है. यह अध्ययन ब्रिस्टल विश्वविद्यालय (University Of Bristol) के वैज्ञानिकों की तरफ से किया गया है. जिसके तहत हवा के संपर्क में आने के 5 मिनट बाद ही कोरोना वायरस (Corona Airborne) अपनी 90 फीसदी ताकत खो देता है.
ब्रिस्टल विश्वविद्यालय की तरफ से किए गए अध्ययन में दावा किया गया है कि संक्रमित की तरफ से सांस छोड़ने के साथ जब कोरोना वायरस बाहर आता है, तो वह 5 मिनट बाद 90 फीसदी तक कमजोर हो जाता है. ब्रिस्टल विश्वविद्यालय की तरफ से किए इस अध्ययन की अभी पूरी तरह की समीक्षा की जाना ही है, लेकिन फिलहाल अध्ययन को Medrix जर्नल में ऑनलाइन प्रकाशित किया गया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने यह प्रयोग एक अनूठी सिमुलेशन तकनीक के माध्यम से किया था. जिसमें कोरोनावायरस के नमूनों को एक विशेष किट और एक विद्युत क्षेत्र में रखा गया था, जिसमें वायरस युक्त छोटी बूंदों को कई मिनटों तक ले जाने के लिए नियोजित किया गया. इस दौरान वैज्ञानिकों ने तापमान, प्रकाश और आर्द्रता को समायोजित किया और वायरस की संक्रामकता में परिवर्तन का आकलन किया. जिसके बाद यह नतीजे सामने आए हैं.
वैज्ञानिकों ने मॉस्क को बताया जरूरी
इस अध्ययन के बाद एक बार फिर कोरोना से बचाव में मॉस्क की भूमिका बढ़ गई है. हालांकि अध्ययन में कहा गया है कि कोरोना वायरस हवा में 5 मिनट तक ही अधिक प्रभावी रहता है, लेकिन वैज्ञानिक संक्रमण से बचाव और संक्रमित होने में 5 मिनटों की अवधि को अहम मान रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि संक्रमित की तरफ से जब एक बार सांस के माध्यम से कोरोना वायरस को बाहर निकाला जाएगा, तो वह 5 मिनट में बहुत लाेगों को संक्रमित कर सकता है. अध्ययन को लेकर ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के एयरोसोल रिसर्च सेंटर के निदेशक और अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रोफेसर जोनाथन रीड ने कहा कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए लोग कम हवादार स्थानों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और लोगों का मानना है कि एयरबॉर्न का संचरण एक मीटर तक या एक कमरे में ही हो सकता है. उन्होंने कहा कि वह यह नहीं कह रहा हैं कि ऐसा नहीं होता है, लेकिन उन्हें लगता है कि संक्रमण का जोखिम सबसे ज्यादा तब होता है जब आप किसी संक्रमित व्यक्ति के करीब होते हैं.
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