उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. इलेक्शन की तारीख की घोषणा कर दी गई है. ऐसे में अब नेता दल-बदलने में लग गए हैं. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि पिछले 24 घंटे में कई नेताओं का बीजेपी छोड़कर जाना आने वाले समय का केवल एक टीजर है. उन्होंने यह भी कहा कि अपने ओबीसी आधार को बरकरार रखना बीजेपी के लिए एक चुनौती होने वाला है. ओमप्रकाश राजभर ने ये बात हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए साक्षात्कार में कही है.
राजभर ने बीजेपी नेता और मंत्री के पार्टी छोड़ने पर कहा कि जब तीन साल पहले मैंने मंत्री पद से इस्तीफा दिया और बीजेपी छोड़ी थी. तब मुझे भी यही अनुभव हुआ था. तब मुझे एहसास हुआ कि वो पिछड़े वर्गों और दलितों के दुश्मन हैं. आज दारा सिंह चौहान और स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी इसी बात की पुष्टि की है. अगर आप बीजेपी नेताओं से स्पाई कैम पर बात करते हैं, तो वे वही जताते हैं कि कोई उनकी नहीं सुनता, वे असहाय हैं. मेरी बात मान लें, 10 मार्च को कोई भी बीजेपी नेता अपने घर से बाहर नहीं निकलेगा और वे अपने टीवी बंद कर देंगे.
बीजेपी की रहती है ओबीसी विरोधी नीति
बीजेपी की ओबीसी विरोधी नीति क्या है इसके जवाब में राजभर ने कहा कि उदाहरण के लिए, 69,000 शिक्षकों को भर्ती करना है जो ओबीसी के लिए एक सशक्तिकरण कदम माना जा रहा था. पिछड़ा वर्ग के राष्ट्रीय आयोग ने जब इस पर गौर किया तो पाया कि इन नियुक्तियों में 27 फीसदी ओबीसी कोटा भी पूरा नहीं हुआ. सीएम ने कहा कि वह इस विसंगति को ठीक कर देंगे लेकिन अगर आप केवल 6,000 पिछड़े उम्मीदवारों की भर्ती करते हैं तो इससे ओबीसी मानदंड कैसे पूरा होगा?
डेढ़ दर्जन मंत्री समाजवादी पार्टी के संपर्क में हैं
जब राजभर से पूछा गया कि आप कितने मंत्रियों की इस्तीफे की उम्मीद कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि कम से कम डेढ़ दर्जन मंत्री समाजवादी पार्टी के संपर्क में हैं. मैं अभी आपको उनके नाम नहीं बता सकता. साथ ही आप 14 तारीख को बीजेपी छोड़कर जाने वाले इन नेताओं के बारे में एक बड़े खुलासे की उम्मीद कर सकते हैं. वहीं जब उनसे पूछा गया कि बीजेपी त्वरित सुधार करने के लिए जानी जाती है. क्या होगा अगर वो वास्तव में अब सब कुछ लगाकर ओबीसी समुदाय को लुभाने की कोशिश करे तो, इस के जवाब में राजभर ने कहा कि कुछ नहीं होगा.
चुनाव आचार संहिता लागू होने की वजह से अब बहुत देर हो चुकी है. अब वे क्या कर सकते हैं? वे अब उत्तर प्रदेश में 28 साल तक नजर नहीं आएंगे. आप गांवों में जाएंगे तो वहां किसान परेशान हैं, युवाओं से मिलें वे बेरोजगारी से तंग आ चुके हैं और व्यापारियों से मिलें तो वे कहेंगे कि जीएसटी ने उनकी कमर तोड़ दी है.
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