कांकेर 11 जनवरी (वेदांत समाचार)। कांकेर जिले में चार सूत्रीय मांग को लेकर बेचाघाट में आंदोलन कर रहे आदिवासियों ने सोमवार को महापंचायत आयोजित की। सोमवार को आंदोलन का 34वां दिन जारी रहा। इस महापंचायत में आसपास के हजारो ग्रामीण, क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के अलावा दक्षिण बस्तर से शोनी सोरी समेत बारह सदस्यीय दल बेचाघाट पहुंचे। वक्ताओं ने अपनी अपनी बातें रखी।
इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कहा कि आदिवासियों की आवाज को सरकार दबाने की कोशिश कर रही है। जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दक्षिण बस्तर के सिलगेर एडसमेटा जैसे कई जगहों पर आंदोलन के बाद अब उत्तर बस्तर के बेचाघाट में हजारों आदिवासी आंदोलन करने को मजबूर हैं।
आंदोलन का आज 34वां दिन जारी रहा। लोग ठंड, बारिश में भी ठिठुर ठिठुर कर अपनी हक की लड़ाई के लिए आंदोलनरत हैं। बावजूद, सरकार कुंभकरण की नींद से जागने को मजबूर नहीं है, जो साफ झलकता है कि सरकार आदिवासियों के आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है। किंतु अब आदिवासी जाग चुके हैं और अपनी हक की लड़ाई को लेकर जंगल से शहर की ओर रुख करने की रणनीति बना रहे हैं। और बहुत जल्द हजारों आदिवासी जंगल से निकलकर शहर की ओर आंदोलन करने को विवश होंगे।
सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोढ़ी ने स्थानीय विधायक अनूप नाग पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि चुनाव के दरमियान राजनीतिक दल के तमाम नेता मंत्री ग्रामीणों के घर हाथ जोड़कर वोट बटोरने के लिए पहुंच जाते हैं। किंतु अब आंदोलन के 34वां दिन जारी होने के बाद भी तमाम राजनीतिक पार्टी के नेता मंत्री आंदोलन स्थल पर पहुंचे हैं और ना ही स्थानीय विधायक, जो बड़े ही शर्म की बात है।
सोनी सोढ़ी ने कहा कि स्थानीय विधायक को अपने राजनीतिक दौरे से फुर्सत नहीं है, अगर विधायक आंदोलन स्थल पर ग्रामीणों की समस्या का निराकरण करने नहीं पहुंचे तो जल्द ही आंदोलन स्थल से हजारों आदिवासी विधायक निवास कार्यालय का घेराव करने को विवश होंगे। दक्षिण बस्तर से लखेश्वर कोवाची, बजर कश्यप, बामन पोडियम, सोनी सोरी, आशु राम, मोती कुंजाम, हिड़मा, गंगा, राजू, सुरेश, सोनी, गुड्डू और स्थानीय स्तर से गज्जू पददा, सिया राम पुड़ो, मैनी कचलाम, बसंत ध्रुव, सहदेव उसेंडी, मैनु राम पोटाई, दया उसेंडी समेत आदिवासी प्रमुखजन और हजारो आदिवासी मौजूद थे।
बेचाघाट में चल रहे आंदोलनस्थल पर पखांजूर तहसीलदार शशिशेखर मिश्रा, नायब तहसीलदार सुनील ध्रुव आंदोलनकारियों के बीच मध्यस्था करने पहुंचे। परंतु आंदोलनकारी एक ही बात पर अडिग रहे, कि लिखित रूप से देने के उपरांत ही आंदोलन खत्म होगा। और बात लिखित दस्तावेज पर ही आकर टिक गई। और प्रदर्शनकारियों से बातचीत की पहल प्रशासन की एक बार फिर असफल रही।
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