साढ़े तीन करोड़ खर्च करने के बाद भी सड़कों पर कायम है श्वानों का खौफ

इंदौर 03 जनवरी (वेदांत समाचार)। श्वान नसबंदी के नाम पर साढ़े तीन करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी सड़कों पर श्वानों का खौफ कायम है। शहरवासियों का देर रात सूनी सड़कों से गुजरना मुश्किल है। निगम छह साल से श्वानों की नसबंदी के लिए अभियान चला रहा है। करोड़ों खर्च करने के बाद भी हालात जस के तस हैं। नगर निगम अधिकारी भी स्वीकारते है कि करोड़ों खर्च करने और वृहद स्तर पर नसबंदी अभियान चलाने के बावजूद श्वानों का खौफ जारी है। अब भी शहर में 50 हजार से ज्यादा श्वान है जिनकी अब तक नसबंदी ही नहीं हुई।

रोजाना 30 से 35 श्वानों की नसबंदी का दावा

इंदौर में श्वानों की नसबंदी का कार्यक्रम 2015 में शुरु हुआ था। निगम ने श्वानों की नसबंदी की जिम्मेदारी देवास की रेडिक्स इंफार्मेशन सोसायटी और हैदराबाद की वेट सोसायटी फार एनिमल वेलफेयर एंड रूरल डेवलमेंट को दिया था। रेडिक्स सोसायटी छावनी तो वेट सोसायटी ट्रेचिंग ग्राउंड ले जाकर श्वानों की नसबंदी करती है। निगम भी समय-समय पर वार्डवार श्वान नसबंदी अभियान चलाता है। निगम का दावा है कि रोजाना 30 से 35 नसबंदी रोजाना की जा रही है। नसबंदी के बाद श्वान के कान पर कट लगाया जाता है ताकि आसानी से पहचाना जा सके कि किस श्वान की नसबंदी हो गई है और किसकी नहीं। इन तमाम दावों के बावजूद सड़कों पर श्वानों का खौफ बना हुआ है।

सवा लाख श्वानों की हुई नसबंदी

पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम प्रभारी डा. उत्तम यादव के मुताबिक छह साल में सवा लाख श्वानों की नसबंदी की गई है। यादव के मुताबिक अब भी शहर की सड़कों पर 50 हजार श्वान हैं जिनकी नसबंदी होना बाकी है। श्वानों की संख्या पर नियंत्रण एक लंबी प्रक्रिया है। यादव ने कहा कि मुंबई में 20 साल से यह कार्यक्रम चल रहा है बावजूद इसके श्वानों पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका।

इस वजह से भी हो गए हैं खतरनाक

इंदौर स्वच्छता में लगातार पांच साल से पहले स्थान पर बना हुआ है। कभी यहां की सड़कों पर कचरा बिखरा होता था। सड़क पर बिखरे कचरे में श्वानों के खाने का इंतजाम हो जाता था लेकिन अब सड़कों पर कचरा नजर नहीं आता। यही वजह है कि श्वानों को खाना नहीं मिल पाता। भूख की वजह से वे खूंखार हो जाते हैं।

सिर्फ एक सरकारी अस्पताल में है टीके लगाने का इंतजाम

इंदौर में सिर्फ एक सरकारी अस्पताल हुकमचंद पाली क्लीनिक में ही रैबिज का टीका लगाने का इंतजाम है। आकस्मिक स्थिति में लोगों को निजी सेंटरों पर जाना पड़ता है। हुकमचंद पाली क्लीनिक प्रभारी डा.आशुतोष शर्मा के मुताबिक रविवार को भी अस्पताल में 70 टीके लगाए गए। हर साल जनवरी में श्वानों के हमले बढ़ जाते हैं। जनवरी 2020 में अस्पताल में 3331 टीके लगाए गए थे।

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