0 कांग्रेस ने बैंकों के निजीकरण का किया विरोध, हड़ताल को दिया नैतिक समर्थन
रायपुर 15 दिसम्बर (वेदांत समाचार)। केंद्र सरकार के राष्ट्रीयकृत बैंकों के निजीकरण का कांग्रेस ने विरोध किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने 16-17 दिसंबर को बैंक बचाओ देश बचाओ के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक यूनियन के हड़ताल का नैतिक समर्थन करते हुये कहा कि मोदी सरकार देश की परिसंपत्तियों को बेच रही है।
यह देश की जनता के साथ धोखा है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने देश के लोगों को साहूकारों के चंगुल से निकालने और सभी को बैंकिंग सुविधा देने के उद्देश्य से 19 जुलाई 1969 को भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। सही मायने में यह देश के लिए आर्थिक स्वतंत्रता थी क्योंकि इससे पहले निजी बैंक नियमित रूप से दिवालिया हो जाता था और लोगों को अपनी मेहनत की कमाई गंवानी पड़ती थी। राष्ट्रीयकरण के 5-6 वर्षों के बाद से हमारा देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने लगा और हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, नीली क्रांति संभव हुई। तब से राष्ट्रीयकृत बैंक राष्ट्रीय विकास का हिस्सा बन गया और सरकार की प्रायोजित सभी योजनाओं को सफल बनाने के लिए हमेशा कुशलता से महत्वपूर्ण योगदान दी और देश को अविकसित से मजबूत विकासशील अर्थव्यवस्था में ले गया। देश अब राष्ट्रीयकृत बैंक के बिना एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकता है। इस कोविड महामारी काल के दौरान राष्ट्रीयकृत बैंकों ने फिर से साबित कर दिया कि यह राष्ट्रीयकृत बैंक निर्भार भारत है।
मोहन मरकाम ने कहा कि मोदी सरकार की निजीकरण की नीति देश की अर्थव्यवस्था के लिये घातक है इससे ग्रामीण शाखाएं बंद रहेंगी और बैंक पहले की तरह शहरोन्मुखी होंगे। ब्याज के मूल्य निर्धारण में एकाधिकार होगा। आम जनता, वरिष्ठ नागरिक, पेंशनभोगियों को कम ब्याज मिलेगा। सर्विस चार्ज बढ़ेगा। कृषि में ब्याज की रियायती दर उपलब्ध नहीं होगी। सीमांत और छोटे किसान, छोटे व्यवसायी, बेरोजगार युवा, महिला स्वयं सहायता समूहों को गंभीर समस्या का सामना करना पड़ेगा।
छोटे और मध्यम आकार के उद्यमियों/व्यवसायियों को प्राथमिकता के आधार पर ऋण नहीं मिलेगा। विद्यार्थियों को शिक्षा ऋण मिलना मुश्किल होगा। बड़े-बड़े पूंजीपतियों को ज्यादा कर्ज देना और न चुकाने पर बट्टे खाते में डालना, जो वर्तमान में चल रहा है। ग्राहक सेवा खराब होगी क्योंकि ओवर लैपिंग शाखाएं बंद हो जाएगी। बहुत से युवा शिक्षित बेरोजगार होंगे और बेरोजगारी की दर बढ़ेगी। जमाकर्ताओं का पैसा सुरक्षित नहीं रहेगा क्योंकि सरकार द्वारा दी गयी सॉवरेन गारंटी वापस ले ली जाएगी। इसलिए किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक का निजीकरण करना आत्मघाती होगा।
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