हीमोफीलिया बीमारी एक ब्लीडिंग डिसऑर्डर है. जिसमें शरीर में खून का थक्का बनना बंद हो जाता है. इसमें छोटी सी चोट से ही बहुत ज्यादा खून बहने का रिस्क होता है. ये बीमारी मरीज के शरीर में खून की कमी का भी कारण बनती है. चिंता की बात यह है कि ये मरीज की मानसिक स्थिति को भी बिगाड़ देती है. जब किसी व्यक्ति के शरीर में क्लॉटिंग करने वाले एक प्रोटीन का बनना बंद हो जाता है या तय मानक के हिसाब से कम होता है तो यह बीमारी हो जाती है.
आमतौर पर किसी व्यक्ति के शरीर में हल्की चोट लगती है तो उसका खून रूक जाता है. क्लॉटिंग के प्रोसीजर के कारण ऐसा होता है. लेकिन हीमोफीलिया में ऐसा नहीं होता है. इसमें अगर किसी को हल्की भी चोट लग गई तो बहुत ही ज्यादा खून बहने लग जाता है. इस बीमारी के मरीज के शरीर पर कई तरह के निशान होने लग जाते हैं. इनका रंग काला और नीला होता है.
हीमोफीलिया बीमारी क्यों होती है?
इसके बारे में पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ जुगल किशोर बताते हैं कि ये एक जेनेटिक बीमारी है जो माता-पिता से बच्चे में आती है. ये बीमारी जन्म के साथ ही हो जाती है और तीन तरीके की होती है. इनके ए, बी और सी हीमोफीलिया कहा जाता है. ये बीमरी घातक हो सकती है और मरीज में बहुत ज्यादा ब्लीडिंग के कारण मौत का खतरा भी होता है. कुछ लोगों में ये बीमारी ब्रेन हेमरेज तक का कारण बन सकती है. इससे जूझ रहे मरीज की मानसिक स्थिति भी बिगड़ सकती है.
हीमोफीलिया मानसिक सेहत को कैसे बिगाड़ती है?
इस बीमारी से जूझ रहे मरीज हमेशा तनाव और चिंता में रहता है. उसके मन में डर होता है कि कहीं मुझे कोई चोट न लग जाए. क्योंकि छोटी सी चोट या जरा सी ब्लीडिंग भी उसके लिए घातक हो सकती है.इस बीमारी के कारण मरीज में आत्मविश्वास में भी कमी हो जाती है. वह लगातार डर एवं चिंता के कारण ऐसा करता है. मनोचिकित्सक डॉ राहुल चंडोक बताते हैं कि इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों को हमेशाकिसी मनोचिकित्सक से मिलकर परामर्श करना चाहिए. इससे समस्या का सामना करना आसान हो जाता है. साथ में यह भी जरूरी है कि लोग इस ब्लीडिंग डिसऑर्डर्स के बारे में जागरूक रहें.