आंखों का कैंसर एक बेहद दुर्लभ बीमारी है. इसे रेटिनोब्लास्टोमा कहा जाता है. यह बीमारी अनुवांशिक है और बच्चों में ज्यादा होती है. यदि इस बीमारी का समय से पता चल जाए तो बच्चे की जान बचाई जा सकती है. एम्स में इस बीमारी का उपचार शुरु कर दिया गया है. एम्स में पहुंचने वाले उन सभी बच्चों का सफल इलाज किया गया है, जिनमें रेटिनोब्लास्टोमा का समय से पता चल गया था.क्या है रेटिनोब्लास्टोमा, यह क्यों होता है.आइए एम्स की डॉक्टर से इस बारे में जानते हैं.
रेटिनोब्लास्टोमा बचपन में होने वाला आंख का एक कैंसर है. हालांकि यह कैंसर बहुत दुर्लभ है और इस कैंसर के सफल इलाज और जीवित रहने की संभावना बहुत अधिक है. समय से इसका पता चल जाए तो 100 फीसदी बच्चों के बचाया जा सकता है.
एम्स की एनाटॉमी और जेनेटिक विभाग की प्रोफेसर डॉ रीमा दादा बताती हैं किरेटिनोब्लास्टोमा तब होता है जब आपकी आंख के पीछे रेटिना में कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं. यह एक आंख या दोनों आंखों में हो सकता है. इसके अलावा समय से इलाज नहीं करवाने पर आंख के बाहर भी फैल सकता है. हालांकि इसके लक्षण तुरंत ही उभरने शुरु हो जाते हैं, लेकिन उनकी पहचान होने में समय लग जाता है.
ये होते हैं लक्षण
डॉ रीमा दादा कहती हैं कि रेटिनोब्लास्टोमा में पहला लक्षण आंख की पुतली का सफेद (ल्यूकोकोरिया) होना या उसका रंग हल्का दिखना. इसका पता अक्सर तस्वीरों से लग सकता है. ऐसी जगह पर ली गई तस्वीर यहां रोशनी कम हो. यह दुर्लभ बीमारी बच्चों को तीन साल से कम आयु में होती है.
बच्चों को देखने में असुविधा होती है और वह किसी चलती हुई चीज को आसानी से नहीं देख पाते. आंखों की बनावट में बदलाव महसूस होना और बच्चे को आंख में दर्द होना. आंख में दर्द होने पर बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है, उसे सोने और दूध पीने में भी परेशानी हो सकती है. इसके अलावा आंख का बढ़ा हुआ होना, उभरा हुआ होना, आंख में खून दिखाई देना और आंख के आसपास सूजन दिखाई देना. रेटिनोब्लास्टोमा की शुरुआत में यह लक्षण उभर सकते हैं. इन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और डॉक्टर को दिखाना चाहिए.
एम्स में इस बीमारी का इलाज
एम्स दिल्ली में रेटिनोब्लास्टोमा का पूरा इलाज उपलब्ध है. अस्पताल में बहुत से उन बच्चों का सफल इलाज भी किया जा चुका है जिनमें शुरुआत में ही रेटिनोब्लास्टोमा का पता चल गया था. एम्स प्लाक ब्रेकीथेरेपी की मदद से रेटिनोब्लास्टोमा का इलाज किया जाता है. यह एक स्वदेशी तकनीक है और इसे भाभा परमाणु अनुसंधान सेंटर में विकसित किया गया है.
इस स्वदेशी तकनीक के जरिए निजी अस्पतालों में भी रेटिनोब्लास्टोमा का इलाज का खर्च 30 फीसदी तक कम हो जाएगा. यह तकनीक कैंसर प्रभावित आंख की रोशनी बचाने में मददगार है