सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेंकेंडरी एजुकेशन (CBSE) ने अपने सभी संबद्ध स्कूलों को एक जरूरी निर्देश दिया है कि वह बच्चों के चीनी सेवन पर नजर रखें और उसे कम करने के लिए स्कूलों में शुगर बोर्ड लगाएं। सीबीएसई ने बताया कि पिछले दशक में बच्चों में टाइप-2 मधुमेह के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली, जो पहले वयस्कों में देखने को मिलता था। सीबीएसई के इस निर्देश पर दिल्ली एम्स की डॉक्टर ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।
एम्स की डॉक्टर ने कही ये बात
सीबीएसई द्वारा स्कूलों में छात्रों में डायबिटीज की बढ़ती समस्या को रोकने के लिए शुगर बोर्ड लगाने के निर्देश पर एम्स दिल्ली की मीडिया और एनाटॉमी विभाग की प्रोफेसर और प्रभारी डॉ. रीमा दादा ने कहा, “यह बहुत महत्वपूर्ण निर्देश है। बीते कई सालों से देखने में आ रहा कि 10 साल की उम्र से ही बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की समस्या हो रही है और ये उनके अनहेल्दी डाइट के कारण हो रहा है।”
डॉक्टर ने बताया पैमाना
उन्होंने एक पैमाना बताते हुए कहा, “बच्चों में कैलोरी का सेवन 5% से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन अब यह 15% तक जा रहा है। इसके प्रति न तो पैरेंट्स और न ही बच्चे जागरूक हैं और न ही उन्हें इसके बारे में कभी बताया जाता है। ऐसे में सीबीएसई का यह निर्देश बेहद स्वागत योग्य कदम है।” उन्होंने खान-पान को लेकर आगे कहा,”स्कूल कैंटीन में स्वस्थ विकल्प उपलब्ध होने चाहिए। हेल्थ ऑप्शन न केवल हमारे फिजिकल हेल्थ के लिए अच्छे हैं, बल्कि हमारे मेंटल हेल्थ के लिए भी अच्छे हैं”
सीबीएसई ने बताए थे कारण
सीबीएसई ने आगे बताया था कि पिछले दशक में बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज के मामले काफी आए हैं और यह अधिक चीनी के सेवन के कारण हुआ है, जो अक्सर स्कूल के आसपास मीठे स्नैक्स, ड्रिंक्स और प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स में आसानी से मिल जाता है। स्टडी से पता चलता है कि 4 से 10 साल की आयु के बच्चों के लिए रोजना के कैलोरी सेवन में चीनी का हिस्सा 13 प्रतिशत है, 11 से 18 की आयु के बच्चों में यह 15 फीसदी है, जो कि तय पैमाने की सीमा से 5 प्रतिशत अधिक है। आगे बताया गया कि इस अत्यधिक सेवन के लिए स्कूल में आसानी से मिलने वाले मीठे स्नैक्स, ड्रिंक्स और प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट जिम्मेदार हैं।
जानकारी दे कि सीबीएसई ने स्कूलों को यह निर्देश एनसीपीसीआर यानी नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के कहने पर जारी किया है। बोर्ड ने सभी स्कूलों को निर्देश दिया है कि 15 जुलाई से पहले सभी स्कूलों में यह बोर्ड लग जाना चाहिए।