Vedant Samachar

कोरबा में SECL अस्पताल की बदहाली : वेलफेयर सोसाइटी ने निरीक्षण में पाई कई अनियमिताएं…

Lalima Shukla
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कोरबा,04 अप्रैल 2025। कोल इंडिया वेलफेयर सोसाइटी (Coal India Welfare Society) के सदस्यों ने आज कोरबा जिले के एसईसीएल अस्पताल का निरीक्षण किया, जहां उन्होंने कई अनियमिताएं पाईं। निरीक्षण के दौरान, सदस्यों ने देखा कि मजदूर दवाई लेने के लिए लाइन में लगे हुए थे, और पसीने से तर बतर थे। इसके अलावा, अस्पताल में वेंटीलेटर की कमी भी पाई गई, जिससे वेलफेयर सोसाइटी के सदस्य नाराज हुए।

निरीक्षण में पाई गई अन्य खामियों में डॉक्टरों की कमी, सफाई व्यवस्था की कमी, और अन्य कई समस्याएं शामिल हैं। वेलफेयर कमेटी के सदस्यों में कोरबा से सुरेंद्र मिश्रा एचएमएस महामंत्री कोरबा एरिया, टिकेश्वर सिंह राठौर बीएमएस, शंकर बेहरा एचएमएस, अशोक यादव एटक, और पीएस पाण्डेय सीटू शामिल थे।

इस निरीक्षण से यह स्पष्ट होता है कि एसईसीएल अस्पताल में कई समस्याएं हैं, जिन्हें जल्द से जल्द हल करने की आवश्यकता है। वेलफेयर सोसाइटी के सदस्यों ने अस्पताल प्रशासन से इन समस्याओं का समाधान करने की मांग की है।

नवरत्न का अस्पताल या मज़ाक ? एसईसीएल का अस्पताल बना ‘रेफर सेंटर’, करोड़ों के खर्च के बाद भी ढर्रा जस का तस कोल इंडिया वेलफेयर बोर्ड की जांच में उजागर हुई गंभीर लापरवाही

जिस एसईसीएल को कोल इंडिया की ‘नवरत्न’ कंपनी होने का गौरव प्राप्त है, वही कंपनी अपने कर्मचारियों की जान से खिलवाड़ कर रही है। विभागीय अस्पतालों की स्थिति ऐसी है, मानो इलाज नहीं, सिर्फ रेफर करने की जगह हो। यह खुलासा तब हुआ जब कोल इंडिया वेलफेयर बोर्ड ने कोरबा के मुड़ापार स्थित मुख्य अस्पताल का औचक निरीक्षण किया।

वेलफेयर बोर्ड की रिपोर्ट में फूटी व्यवस्थाओं की पोल

निरीक्षण के दौरान दिखावे की सुविधाएं तो मिलीं, लेकिन डॉक्टरों की कमी, स्वास्थ्यकर्मियों का अभाव और विशेषज्ञ चिकित्सकों का नामोनिशान तक नहीं मिला। अस्पताल मरीजों की सेवा के बजाय उन्हें बाहर भेजने का जरिया बन चुका है। बोर्ड ने इसे गंभीर चिंता का विषय बताया।

करोड़ों खर्च, लेकिन नतीजा ‘शून्य’

कंपनी हर साल स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर करोड़ों रुपये फूंक रही है, लेकिन न तो डॉक्टर हैं, न ही दवाइयों की पुख्ता व्यवस्था। विभागीय कर्मचारी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उनका कहना है, “हम खदान में जान की बाजी लगाते हैं, लेकिन इलाज के लिए अस्पताल में भरोसा नहीं।”

जवाब देने से कतराए अधिकारी

मीडिया ने जब बोर्ड से यह सवाल पूछा कि अधूरे कामों के बाद भी ठेकेदारों को भुगतान कैसे हो जाता है, तो सदस्य बगलें झांकते नजर आए। उन्होंने केवल इतना कहा कि “विभागीय अधिकारियों से पूछताछ की जाएगी।”

हर बार रिपोर्ट, पर कोई कार्रवाई नहीं !

वेलफेयर बोर्ड समय-समय पर दौरे करता है, रिपोर्टें भेजता है, लेकिन कंपनी के अफसर कान में तेल डालकर बैठे हैं। नतीजा – कर्मचारी बदहाल हैं, और व्यवस्थाएं ढर्रे पर। बोर्ड को अब सिफारिशें नहीं, बल्कि ठोस दबाव और जवाबदेही की जरूरत है।

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