रायपुर,26मई 2025(वेदांत समाचार)। आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर (लघु तीर्थ) में 26 मई को 16वें तीर्थंकर शांतिनाथ भगवान के जन्म, तप और मोक्ष कल्याणक महोत्सव पर भक्ति, श्रद्धा और उल्लास से भरी धार्मिक गतिविधियाँ संपन्न हुईं। इस अवसर पर मंदिर परिसर “भगवान शांतिनाथ के जयकारों” से गूंज उठा।
सुबह 8.30 बजे पार्श्वनाथ बेदी के समक्ष शांतिनाथ भगवान की पाण्डुक शिला पर प्रतिष्ठा की गई। मंत्रोच्चार के साथ रजत कलशों से जल अभिषेक किया गया और फिर शांति धारा का आयोजन हुआ। इस पुण्य अवसर पर श्रेयश जैन बालू को शांति धारा का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जबकि धीरज जैन गोधा ने मंत्रोच्चार किया।
निर्वाण कांड पाठ के साथ अष्टद्रव्यों से पूजन किया गया और फिर निर्वाण लड्डू अर्पित कर भगवान शांतिनाथ के मोक्ष कल्याणक की पावन स्मृति को नमन किया गया। पूजन के बाद विसर्जन पाठ किया गया।
इस धार्मिक आयोजन में श्रेयश जैन बालू, राजेंद्र उमाठे, प्रवीण जैन, आदेश जैन, संदीप जैन, राशु जैन, अशोक जैन, धीरज जैन, अमित जैन, प्रणीत जैन सहित अनेक श्रद्धालु शामिल हुए।
16 वे तीर्थंकर श्री शांति नाथ भगवान का संक्षिप्त जीवन परिचय
जैन धर्म के 16वें तीर्थंकर शांतिनाथ जी का जन्म हस्तीनापुर नगर में हुआ था। उनके जन्म से ही चारों ओर शांति का राज कायम हो गया था। अकूत संपदा के मालिक रहे राजा शांतिनाथ ने सैकड़ों वर्षों तक पूरी पृथ्वी पर न्यायपूर्वक शासन किया। तभी एक दिन वे दर्पण में अपना मुख देख रहे थे तभी उनकी किशोरावस्था का एक और मुख दर्पण में दिखाई पड़ने लगा, मानो वह उन्हें कुछ संकेत कर रहा था। उस संकेत देख वे समझ गए कि वे पहले किशोर थे फिर युवा हुए और अब प्रौढ़। इसी प्रकार सारा जीवन बीत जाएगा। लेकिन उन्हें इस जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा पाना है। यही उनके जीवन का उद्देश्य भी है।…और उसी पल उन्होंने अपने पुत्र नारायण का राज्याभिषेक किया और स्वयं दीक्षा लेकर दिगंबर मुनि का वेश धारण कर लिया। मुनि बनने के बाद लगातार सोलह वर्षों तक विभिन्न वनों में रहकर घोर तप करने के पश्चात अंतत: पौष शुक्ल दशमी को उन्हें केवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई और वे तीर्थंकर कहलाएं। तदंतर उन्होंने घूम-घूमकर लोक-कल्याण किया, उपदेश दिए। ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन सम्मेदशिखरजी पर भगवान शांतिनाथ को निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्म के पुराणों के अनुसार उनकी आयु एक लाख वर्ष कही गई हैं।